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39 सालों का BJP का सफर, पढ़ें- 2 से 303 सीटों तक पहुंचने की कहानी

1986 में लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बने. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू किया. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार सफलता का स्वाद चखा और इसकी सीटें 86 हो गईं.

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गृह मंत्री अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (फोटो-PTI)
गृह मंत्री अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (फोटो-PTI)

  • बीजेपी का 39 साल का सफर
  • 2 सीटों से 303 पर पहुंची भाजपा
  • 39 साल में मिला 11वां अध्यक्ष

बीजेपी का जो गौरवशाली वर्तमान है इसके पीछे अतीत का लंबा संघर्ष है. संघर्ष की ये परंपरा आजादी के कुछ ही दिनों बाद 1951 में शुरू होती है. जब स्वतंत्रता सेनानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. भारतीय राजनीति में जनसंघ नाम से लोकप्रिय ये राजनीतिक दल देश की राजनीतिक व्यवस्था में कांग्रेस के बढ़ते वर्चस्व को कम करने के लिए और लोगों के सामने एक राजनीतिक विकल्प देने के लिए बनाया गया था. ये राजनीतिक विचारधारा हिन्दू राष्ट्रवाद से प्रभावित थी और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे पर चलकर सत्ता हासिल करने को अपना लक्ष्य मानती थी.

संघ की छत्रछाया में जनसंघ

जनसंघ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आशीर्वाद हासिल रहा. तत्कालीन मीडिया और बौद्धिक जगत की बहस-डिबेट में जनसंघ को आरएसएस का राजनीतिक मंच कहा जाने लगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासित सदस्य वैचारिक और संगठनात्मक रूप से जनसंघ के लिए जी-जान से काम करते रहे.

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का एजेंडा

जनसंघ ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया और इसका जोरदार विरोध किया. जनसंघ ने 1953 में कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश-एक निशान-एक विधान का नारा दिया. मई 1953 में कश्मीर में प्रवेश करने के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अगले महीने श्रीनगर में उनकी मौत हो गई. कुछ दिनों के बाद जनसंघ की कमान दीनदयाल उपाध्याय के हाथों में आ गई. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का नारा दिया.

चुनावी अखाड़े में कामयाबी नहीं

राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने के बावजूद जनसंघ चुनावी राजनीति में कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर सकी. 1967 तक दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के महासचिव बने रहे. इस वक्त तक जनसंघ की राजनीति में दो ऐसे युवा नेता प्रवेश कर चुके थे जो आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति का चेहरा बदलने वाले थे. ये दो शख्स थे अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी. 1968 में वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष बन गए. इस दौरान पार्टी की तीन मुख्य मांगे थीं- पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना, गौहत्या पर रोक और जम्मू-कश्मीर को दिए विशेष दर्जे की समाप्ति.

आपातकाल और जनसंघ

1975 में इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लागू किया तो जनसंघ सक्रिय होकर इसके खिलाफ आंदोलन में कूद पड़ा. जनसंघ के कई नेता गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए. 1977 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल खत्म करने की घोषणा की इसके साथ देश में आम चुनाव की प्रक्रिया भी शुरु हो गई.

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जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. कई दलों के विलय से बने जनता पार्टी का मकसद इंदिरा गांधी को परास्त करना था. इस चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली और मोरारजी देसाई पीएम बने. इस चुनाव में जनसंघ के आए नेताओं को अच्छी कामयाबी मिली. अटल बिहारी वाजपेयी को मोरारजी कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाया गया.

बीजेपी की स्थापना

इंदिरा के खिलाफ किया गया ये प्रयोग विफल साबित हुआ और 1979 में ये सरकार गिर गई. इसके बाद 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई और अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने.

2 सीटें जीत पाई अटल आडवाणी की बीजेपी

1984 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि में देश में आम चुनाव हुए. सहानुभूति के अभूतपूर्व लहर में कांग्रेस ने विरोधियों का सफाया कर दिया. इस चुनाव में बीजेपी मात्र 2 सीटें जीत पाई.

आडवाणी और राम मंदिर आंदोलन

1986 में लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बने. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू किया. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार सफलता का स्वाद चखा और इसकी सीटें 86 हो गईं. इसके बाद बीजेपी लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गई. 1991 के लोकसभा चुनाव राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए थे. इस चुनाव में कांग्रेस ने वापसी तो की लेकिन बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 120 सीटों पर जीत हासिल की.

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पहली बार अटल बने पीएम

1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. निश्चित रूप से बीजेपी के साथ सरकार बनाने का संख्या बल नहीं था. लेकिन सहयोगियों के समर्थन पर भरोसा कर अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने, लेकिन समर्थन न मिलने की वजह से मात्र 13 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई.

1998 में बीजेपी ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया और पार्टी ने इस बार के लोक सभा चुनाव में 182 सीटें जीतीं. एनडीए के बैनर तले अटल फिर पीएम बने, इस बार उनकी सरकार 13 महीने चली.

1999 में तीसरी बार पीएम बने अटल

वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद 1999 में देश में एक बार फिर से मध्यावधि चुनाव हुए. बीजेपी को इस बार भी 182 सीटें ही मिली लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सहयोगियों के दम पर पूरे पांच साल तक सरकार चलाने में सफल रहे.

2004 से 14 तक विपक्ष का रोल

पहली बार पांच साल तक सरकार चलाने के बाद 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा. बीजेपी ने 'इंडिया शाइनिंग' और 'फील गुड' का नारा दिया. लेकिन चुनावी समय में बीजेपी धराशायी हो गई. पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. एनडीए के कई सहयोगियों ने बीजेपी का साथ जोड़ दिया. इसके बाद 2004 से लेकर 2014 तक बीजेपी विपक्ष में रही. 2009 में आडवाणी के नेतृत्व में लड़े गए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का ही मुंह देखना पड़ा.

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बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत

2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद से केंद्र की राजनीति में आ गए थे. 2014 में बीजेपी ने उनके नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा और प्रचंड रूप से केंद्र की सत्ता में वापसी की. 282 सीटें लेकर बीजेपी ने पहली बार केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई. 2019 के चुनाव में भी नरेंद्र मोदी कामयाबी के रथ पर सवार रहे. इस बार के चुनाव में उन्होंने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया और 303 सीटों के रिकॉर्ड बहुमत के साथ दिल्ली में अपना दबदबा और भी बढ़ा लिया. 39 सालों के बीजेपी के सफर में पार्टी को 10 अध्यक्षों ने अपनी सेवा दी है. सोमवार को बीजेपी को जेपी नड्डा के रूप में 11वां अध्यक्ष मिल गया.  

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