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वामपंथी विचारकों पर एक्शन, क्या सियासी ध्रुवीकरण की एक और कोशिश?

वामपंथी और दक्षिणपंथी के बीच लड़ाई विचाराधारा की है. यही वजह है कि देश की सत्ता पर नरेंद्र मोदी के विराजमान होने के बाद से ही वामपंथी सरकार के निशाने पर रहे हैं. पहले जेएनयू और अब वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी के पीछे राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं.

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जेएनयू में विरोध प्रदर्शन करते छात्र (फाइल फोटो)
जेएनयू में विरोध प्रदर्शन करते छात्र (फाइल फोटो)

देश की सत्ता पर मोदी सरकार विराजमान होने के बाद ही वामपंथी विचारधारा का केंद्र जेएनयू निशाने पर रहा. इसी का नतीजा था कि बीजेपी को नेशनल-एंटीनेशनल का राजनीतिक ध्रुवीकरण करने में मदद मिली. अब सरकार का टर्म पूरा होने से पहले देशभर में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी की जा रही है. ये विचाराधारा की लड़ाई है या फिर सियासी ध्रुवीकरण की बिसात बिछाने की कोशिश?

बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में मंगलवार को देश के कई हिस्सों में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी हुई. इसमें पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरिया और वरनोन गोंजालवेस को गिरफ्तार किया गया. पुलिस की छापेमारी महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, दिल्ली और झारखंड में की गई.

वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी से राजनीति गर्मा गई है. कांग्रेस सहित विपक्षी दल सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

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वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है, 'भारत में केवल एक एनजीओ के लिए जगह है, जिसका नाम आरएसएस है. बाकी सारे एनजीओ को ताला लगा दो. सारे एक्टिविस्टों को जेल में डाल दो और जो इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं उन्हें गोली मार दो. नए भारत में आपका स्वागत है.'

दलित चिंतक और अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष अशोक भारती ने कहा कि मोदी सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सिवा किसी दूसरी विचारधारा को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, जिसके चलते ये गिरफ्तारियां हुई हैं. इससे पता चलता है कि सरकार किस तरह से कुंठा की शिकार है.

अशोक भारती कहते हैं कि मोदी सराकर के खिलाफ देश में माहौल है. ऐसे में बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कई प्रयोग कर रही है. कभी हिंदू-मुस्लिम तो कभी नेशनल-एंटीनेशनल के मुद्दे बनाती है. इसके बावजूद उसे कोई बड़ा लाभ नहीं दिख रहा है. इसी कड़ी में मोदी सरकार ने वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी कराई है ताकि आगामी चुनाव में इसका फायदा उठाया जा सके.

राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल कहते हैं कि इस गिरफ्तारी का सीधा मतलब मोदी सरकार के खिलाफ बोलने की सजा है. सरकार ने ऐसे समय गिरफ्तारी कराई जब वो कई मुद्दों पर घिरी हुई थी. इन गिरफ्तारियों के जरिए सरकार अहम मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है.

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रतन लाल ने कहा कि मोदी सरकार इन गिरफ्तारियों के जरिए नेशनल-एंटीनेशनल को मुद्दा बनाना चाहती है. इस देश में संविधान इजाजत देता है कि वामपंथी विचाराधारा अपना सकते हैं. इसके बाद भी सरकार को एतराज है. उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ बोलने का मतलब देश के खिलाफ बोलना नहीं है.

बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा कि दलित, आदिवासियों और पिछड़ों के हक में आवाज उठाने वाले लोगों को सरकार डराने की साजिश कर रही है. मोदी सरकार ने जिस तरह बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं गिरफ्तार किया है उससे साफ जाहिर है कि देश का लोकतंत्र खतरे में है.

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