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लोकसभा के आखिरी दिन सदन में रोए 'फादर ऑफ द हाउस' लालकृष्ण आडवाणी

15वीं लोकसभा के आखिरी दिन जब विदाई का वक्त आया तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भावुक हो गए. मुश्किल से उन्होंने आंसुओं को संभाला. दरअसल, आखिरी दिन समापन भाषण के दौरान मुलायम ने आडवाणी ती तारीफ की तो सीपीएम नेता बासुदेव आचार्य ने भी उन्हें फादर ऑफ हाउस कहा. आडवाणी भावुक हो चले.

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लाल कृष्ण आडवाणी
लाल कृष्ण आडवाणी

15वीं लोकसभा के आखिरी दिन जब विदाई का वक्त आया तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भावुक हो गए. मुश्किल से उन्होंने आंसुओं को संभाला. दरअसल, आखिरी दिन समापन भाषण के दौरान मुलायम ने आडवाणी की तारीफ की तो सीपीएम नेता बासुदेव आचार्य ने भी उन्हें फादर ऑफ हाउस कहा. आडवाणी भावुक हो चले.

आडवाणी संसद के वरिष्ठ सदस्यों में से हैं. वे 1971 में पहली बार सासंद बने. जटिल मुद्दों की समझ और उन्हें सुलझाने के तरीकों को लेकर हर कोई आडवाणी का लोहा मानता है.

आखिरी दिन जब सीपीएम नेता बासुदेव आचार्य ने जैसे ही उन्हें फादर ऑफ हाउस कहा. इसके बाद आडवाणी की तारीफ करने वालों का तांता लग गया. कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे भी इस कतार में लग गए. एक तरफ तारीफ हो रही थी तो दूसरी तरफ आडवाणी बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोके हुए थे. हालांकि उनके चेहरे के हावभाव ने सबकुछ बयान कर दिया.

वैसे, पंद्रहवीं लोकसभा को इतिहास याद रखेगा. वो भी इसलिए कि इसमें रिकॉर्ड हंगामा हुआ. लेकिन लोकसभा के आखिरी दिन जब विदाई का वक्त आया तो क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष, ऐसे मिले और बैठे जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

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15वीं लोकसभा में बहुत कम काम हुआ: मीरा कुमार
लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के चेहरे की मुस्कान बताती रही 15वीं लोकसभा का आखिरी दिन कितना सुकून भरा रहा. आखिरी दिन हंगामा हुआ तो जरूर लेकिन सदन स्थगित नहीं करना पड़ा. हंगामा करने वाले सांसद चाहे बिहार के रहे हों, तमिलनाडु के या फिर यूपी के. हंगामा तो सबने काटा लेकिन सदन स्थगित कराने की मंशा किसी की नहीं दिखी. वहीं स्पीकर का समापन भाषण पूरा दर्द बयान कर गया. मीरा कुमार ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि विगत लोकसभाओं के मुकाबले 15वीं लोकसभा के दौरान बहुत कम काम हुआ तथा कई अप्रत्याशित और अवांक्षित घटनाओं ने सदन के निर्बाध संचालन और कामकाज को पंगु कर दिया.

देश ले सकता है मुश्किल फैसले: मनमोहन
प्रधानमंत्री भी जानते थे कि विदाई की बेला है, लेकिन वो आपसी राजनीतिक विवाद भुलाकर सदन की पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहे. प्रधानमंत्री ने माना कि मतभेद बहुत रहे लेकिन देश हित में सबने कोशिश की तो रास्ता निकला. मनमोहन सिंह ने कहा कि तेलंगाना विधेयक के पारित होने से संकेत मिलता है कि ये देश ‘मुश्किल’ फैसले ले सकता है. सिंह ने उम्मीद जतायी कि देश को नये रास्तों पर आगे ले जाने के लिए आम सहमति की एक नयी भावना उभरी है. साथ ही कहा कि इस कहासुनी और तनाव वाले माहौल से उम्मीद का एक नया माहौल उभरेगा.

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सुषमा ने बांधे सोनिया, मनमोहन और आडवाणी की तारीफों के पुल
बारी विपक्ष के नेता की आई तो उन्होंने खरी-खरी ही सुना डाली. सुषमा स्वराज ने कहा कि ये विसंगतियों से भरी लोकसभा रही जिसमें सबसे ज्यादा काम बाधित हुआ. वहीं सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण विधेयक भी पास हुए. सुषमा ने चुटकी भी ली कि कमलनाथ अपनी शरारतों से कई बार सदन में मामला उलझाते तो शिंदे अपनी शराफत से उसे सुलझाते. इसमें सोनिया की मध्यस्थता और आडवाणी की न्यायप्रियता से सदन सुचारू रूप से चला. नेता विपक्ष ने सरकार को चेताया भी कि हम विरोधी हैं पर शत्रु नहीं.

मुलायम भी बुजुर्ग की भूमिका में रहे. कहा कि कड़े शब्द इस्तेमाल किये हैं तो ये हमारी भूमिका का हिस्सा था. बीजेपी को नसीहत दी कि आडवाणी यहां सबसे बुजुर्ग नेता हैं, उनको पीछे हटाया इसलिए बीजेपी की ताकत और घटती चली गई.

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