दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को मोस्ट वांटेड आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को गिरफ्तार कर लिया. लश्कर-ए-तैयबा का बम एक्सपर्ट टुंडा पहले एक कारपेंटर हुआ करता था. आतंकवादी बनने से पहले टुंडा ने कबाड़ का कारोबार और कपड़ों का व्यापार भी कर चुका है.
पुलिस ने बताया कि 80 के दशक में पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के गुर्गो के माध्यम से लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आने के बाद टुंडा ने कट्टरपंथ को अपना लिया. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के कारण वह पुलिस के निशाने पर आया.
पुलिस ने बताया कि मुंबई बम ब्लास्ट में संलिप्त होने से पहले टुंडा ने जालीस अंसारी के साथ मिलकर मुंबई में मुस्लिम समुदाय के लिए काम करने के उद्देश्य से एक संस्था 'तंजीम इस्लाह-उल-मुस्लिमीन' की स्थापना की. मध्य दिल्ली के दरियागंज में छत्ता लाल मियां इलाके में एक गरीब परिवार में जन्मे टुंडा ने अपने पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में पिलखुआ गांव के बाजार खुर्द इलाके में कारपेंटर का काम शुरू किया था.
उसने अपने पिता को मदद देनी शुरू कर दी, टुंडा के पिता जीवनयापन के लिए तांबा, जस्ता और एल्युमिनियम जैसे धातुओं को गलाने का काम करते थे. पिता की मौत के बाद टुंडा ने आजीविका के लिए कबाड़ का काम शुरू किया तथा कट्टरपंथी जेहादी आतंकवादी बनने से पहले उसने कपड़ों का कारोबार भी किया.
टुंडा ने तीन विवाह रचाए, उसने 65 की उम्र में एक 18 वर्षीय लड़की से तीसरा विवाह रचाया. टुंडा का छोटा भाई अब्दुल मलिक आज भी कारपेंटर है. वह टुंडा के परिवार का भारत में जीवित एकमात्र सदस्य है. 1992 में भारत से बांग्लादेश भाग गए टुंडा ने बांग्लादेश और बाद में पाकिस्तान में आतंकवादियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया.
पुलिस ने बताया कि टुंडा 1996 और 1998 में बम हमलों की साजिश रचने के लिए ढाका से भारत लौट आया. 1996 से 98 के बीच दिल्ली में हुए लगभग सभी बम विस्फोटों में टुंडा संलिप्त था. इसके बाद टुंडा गाजियाबाद के अपने घर से 1998 में पाकिस्तान होते हुए बांग्लादेश चला गया. टुंडा ने 2010 में भारत में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स से ठीक पहले सीरियल ब्लास्ट करने की कोशिश भी की थी.