आपसी रजामंदी से वयस्कों द्वारा एकांत में समलैंगिक संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी से हटाने और उसे वैध बनाने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय सोमवार को सुनवाई करेगा.
न्यायमूर्ति जी. एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए. के. गांगुली की पीठ समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से हटाने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोग और संगठन इस विवादास्पद मुद्दे पर आये अदालती फैसले के पक्ष में हैं और कई इसके खिलाफ सामने आये हैं. कई राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल कर इस मुद्दे पर अंतिम फैसला सुनाने का अनुरोध किया है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता बी. पी. सिंघल ने समलैंगिक यौन संबंधों को कानूनी मान्यता दिये जाने का दिल्ली उच्च न्यायालय में विरोध किया था. उन्होंने अदालती फैसले को उच्चतम न्यायालय में भी चुनौती देते हुए कहा है कि इस तरह के कृत्य अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के नैतिक मूल्यों के खिलाफ हैं.
इसी तरह के विचार जाहिर करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपॉस्टोलिक चर्चेज अलायंस ने भी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया है.{mospagebreak}
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, तमिलनाड़ु मुस्लिम मुन्न कझगम, ज्योतिषविद्, सुरेश कुमार कौशल और योगगुरु बाबा रामदेव ने भी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का शीर्ष अदालत में विरोध किया है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो जुलाई 2009 को सुनाये अपने फैसले में एकांत में आपसी रजामंदी वाले वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध बनने की स्थिति में लागू होने वाले दंडात्मक प्रावधान :भारतीय दंड संहिता की धारा 377: को असंवैधानिक करार दिया था. अदालती फैसले से पहले इस तरह का अपराध दंडनीय श्रेणी में आता था और इसमें उम्र कैद तक की सजा हो सकती थी.
उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध कर रहे पक्षों की दलील है कि सभी मानदंडों के अनुरूप समलैंगिक कृत्य ‘अप्राकृतिक’ है और इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिये.
शीर्ष अदालत ने फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था, ‘अगर जरूरी हुआ तो उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ किसी भी अंतरिम आदेश पर संबंधित पक्षों को सुनने के बाद ही विचार किया जायेगा.’