समलैंगिक अधिकारों के समर्थक कार्यकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में आज तर्क दिया कि समलैंगिक सेक्स को अपराध मुक्त घोषित करने से समाज पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है जैसा कि इसका विरोध करने वालों ने आशंका जतायी थी.
स्वयंसेवी संगठन, नाज फाउंडेशन ने आज अपने जवाब में कहा, ‘‘फैसले को लगभग नौ माह बीत चुके हैं और भारतीय समाज या संस्कृति या परंपराओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.’’ गौरतलब है कि इस संगठन की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सेक्स को कानूनी करार दिया था. संगठन ने इस तर्क का विरोध किया था कि समलैंगिक सेक्स को कानूनी करार देने से समाज में एड्स फैलेगा और कहा कि इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
संगठन ने समलैंगिक संबंधों का विरोध करने वाले उन कार्यकर्ताओं और धार्मिक संगठनों द्वारा दायर विभिन्न याचिकाओं के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया दायर की है जिन्होंने दो जुलाई को उच्च न्यायालय द्वारा दिये ऐतिहासिक फैसले को खारिज करने की मांग की थी.
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने निजता में आपसी सहमति से कायम होने वाले समलैंगिक संबंधों को कानूनी करार दे दिया था. इससे पहले इसे अपराध माना जाता था और दोषी पाये जाने पर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान था. संगठन ने दावा किया, ‘‘समलंगिकता भारतीय संस्कृति के लिए कोई बेगानी बात नहीं है. दरअसल यह भारतीय संस्कृति और समाज में सन्निहित अंग रहा है. इसके विपरीत समलैंगिकता सहित सेक्सुआलिटी को अपराध ठहराना भारतीय संस्कृति के लिए अनजानी बात है.’’
उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले केन्द्र को एक ईसाई संगठन, योग गुरू रामदेव के एक शिष्य और एक ज्योतिषी सुरेश कुमार कौशल की याचिका पर केन्द्र को एक नोटिस जारी किया था जिसमें उन्होंने समलैंगिक सेक्स को कानूनी करार देने संबंधी उच्च न्यायालय के फैसले पर इस आधार पर स्थगन की मांग की थी कि इसका समाज के नैतिक ताने बाने पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.