पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने दावा किया है कि पाकिस्तान में संदिग्ध आतंकवादियों से महत्वपूर्ण सूचनाएं उगलवाने के लिए उनके उत्पीड़न को ब्रिटेन की मौन सहमति मिली हुई थी.
एक कार्यक्रम में मुशर्रफ द्वारा किए गए इस खुलासे से ब्रिटेन के इस सार्वजनिक रुख पर संदेह के बादल मंडराने लगेंगे कि विभिन्न देश स्वयं ब्रिटिश नागरिकों का उत्पीड़न नहीं करें.
वर्ष 2002 से 2005 तक ब्रिटेन के सुरक्षा एवं खुफिया समन्वयक रहे सर डेविड ओमांड ने हाल ही में कहा है, ‘मैं इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हूं कि हमारा उत्पीड़न में कोई हाथ नहीं है और नहीं रहा है. मुझे यह कहने में कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान और अमेरिका समेत संबंधित देश इस बात से वाकिफ हैं कि ब्रिटिश नीति क्या है यानी हम ऐसा (उत्पीड़न) नहीं करते और हम अन्य लोगों से भी ऐसा करने को नहीं कहते.’ {mospagebreak}
लेकिन मुशर्रफ ने कहा है कि उन्हें यह कतई याद नहीं है कि कभी ब्रिटिश सरकार ने कहा हो कि आईएसआई को ब्रिटिश नागरिकों का उत्पीड़न नहीं करना चाहिए. मुशर्रफ ने कहा, ‘कभी नहीं, एक बार भी नहीं, मुझे तनिक भी याद नहीं है. संभवत: वे हमसे चाहते थे कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी रखें. हम जो कुछ कर रहे थे, उसके प्रति यह मौन सहमति थी.’
इस तरह के दावे किए जा रहे हैं कि ब्रिटेन पाकिस्तान समेत अन्य देशों में संदिग्ध आतंकवादियों के उत्पीड़न में संलिप्त था. इन दावों की एक पूर्व अपीली अदालत के न्यायाधीश सर पीटर गिब्सन द्वारा स्वतंत्र जांच होनी है. सन् 1999 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे मुशर्रफ ने सूचनाएं जुटाने के लिए खुफिया अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न को कुछ हद तक सही ठहराया.
संदिग्ध आतंकवादी बिनयाम मोहम्मद को आतंकवादी हमले की साजिश रचने के संदेह में 2002 में पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था और उसे गुआंतनामो में हिरासत में रखा गया. बीबीसी ने खबर दी थी कि मोहम्मद को कलाई से लटका दिया गया और उसे चमड़े के पट्टे से पीटा गया. एक बार तो उसे छद्म फांसी से भी गुजरना पड़ा. यह सब ब्रिटेन की सुरक्षा सेवाओं के संज्ञान में हुआ. हालांकि एमआई 5 के पूर्व महानिदेशक मैन्निंघम बुलेर ने मौन सहमति संबंधी दावे का खंडन किया है.