टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियिमितता की जांच कर रही लोक लेखा समिति (पीएसी) की मसौदा रिपोर्ट में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा को पूरी तरह से दोषी करार देने के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय पर करारा प्रहार किया गया है.
इसमें ‘दोषनिवारक कदम’ नहीं उठाने के लिए कैबिनेट सचिवालय और कुछ ‘दुर्भाग्यपूर्ण भूलों’ के आरोप में प्रधानमंत्री को भी नहीं बख्शा गया है.
समझा जाता है कि पीएसी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की ओर से सदस्यों को भेजी गई मसौदा रिपोर्ट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम की इस बात के लिए कड़ी आलोचना की गई है कि उन्होंने राजस्व को नुकसाने पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह देने की बजाय प्रधानमंत्री से कहा कि ‘‘मामले को समाप्त माना जाए.’’ ऐसी संभावना है कि समिति में शामिल संप्रग के सदस्यों की ओर से इस रिपोर्ट के प्रति विरोध जताया जाएगा.
टू-जी स्पेक्ट्रम मामले से संबंधित इस विस्तृत रिपोर्ट में समझा जाता है कि प्रधानमंत्री के बारे में कुछ अप्रिय शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. इसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपने को टू जी मामले से इतना अधिक दूर रखा कि ए राजा को अपने ‘अनुचित और मनमाने’ कार्यों को अंजाम देने में मदद मिली.
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री तीन जनवरी 2008 को पीएमओ को इससे दूर रखना चाहते थे, जिससे ऐसा लगा कि राजा को इस मामले में आगे बढ़ने और अपने गलत एवं मनमाने कार्यों को अंजाम देने की परोक्ष रूप से हरी झंडी मिल गई हो.
राजा की ओर से लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के विवादास्पद वितरण विषय को कैबिनेट के समक्ष 10 जनवरी 2008 को लाया गया. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस विवादास्पद निर्णय से 1.76 लाख करोड़ रूपये का राजस्व नुकसान हुआ.
समिति के समक्ष विचार के लिए सामने आने वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय निश्चित तौर पर या तो पूर्वानुमान करने में विफल रहा या महज मूकदर्शक बना रहा.
इसमें कहा गया है कि समिति यह जानकर उद्विग्न है कि दूरसंचार मंत्रालय के घटनाक्रम के बारे में प्रधानमंत्री ने नवंबर 2007 को लिखे पत्र में जो सलाह एवं चिंता जाहिर की, राजा ने उसकी पूरी तरह अनदेखी की.
रिपोर्ट के अनुसार, राजा ने प्रधानमंत्री को यह कहकर गुमराह किया कि स्पेक्ट्रम की नीलामी के मुद्दे पर विचार किया गया, लेकिन दूरसंचार आयोग और ट्राई ने इसकी सिफारिश नहीं की. इसमें कहा गया, ‘‘मंत्री आधा सच बोल रहे थे और दूसरे हिस्से तथा अपने गुप्त उद्देश्यों को छिपा रहे थे.’’
प्रधानमंत्री कार्यालय की आलोचना करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएमओ के इस तर्क से समिति संतुष्ट नहीं है कि विधि मंत्री की ओर से मंत्रियों की उच्चाधिकार समिति के गठन का कोई सुझाव प्राप्त नहीं हुआ था.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘पीएमओ को विधि मंत्री के सुझाव की जानकारी थी लेकिन किन्हीं अनजान कारणों से दूरसंचार मंत्री के विपरीत विचारों को विधि मंत्री के विचारों पर तरजीह दी गई और पीएमओ की ओर से मंत्रियों के उच्चाधिकार समिति के गठन का प्रयास नहीं किया गया.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘प्रधानमंत्री कार्यालय निश्चित तौर इसका पूर्वानुमान लगाने में विफल रहा या महज मूकदर्शक बना रहा.’’
बहरहाल, रिपोर्ट में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के लिए प्रशंसा के शब्द कहे गए हैं. इसमें कहा गया है कि मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को भेजे नोट में सरकार की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए नीतियों में बदलाव, संशोधन और इसे तैयार करने के कार्य को पारदर्शी ढंग से शब्दश: अमल करने का सुझाव दिया था.
मुखर्जी ने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट तौर पर कहा कि नये लाइसेंस जारी करने के दौरान लाइसेंस प्रदान करने के मापदंडों को मजबूत बनाने के साथ इसे यथाशीघ्र सार्वजनिक किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने राजा को कोई गलत सलाह नहीं दी जिसके तथ्यों को बाद में राजा ने तोड़-मरोड़ कर प्रधानमंत्री को लिखा.
इसमें कहा गया कि राजा ने विधि मंत्री के स्पेक्ट्रम से जुड़े मामले को मंत्रियों की उच्चाधिकार समिति को भेजने के सुझाव को उद्दंडतापूर्वक ‘विषय से इतर’ बताया. यही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री को सूचित किया कि स्पेक्ट्रम की कमी के कारण अंतिम तिथि को 25 सितंबर 2007 निर्धारित कर दिया गया है जबकि इसे पहले उन्होंने कहा था कि कुछ नये परिचालकों को स्पेक्ट्रम आवंटित करने काफी गुंजाइश है.
मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘‘ उनका (राजा) प्रधानमंत्री को यह आश्वासन कि वह स्थापित और वर्तमान प्रक्रिया से नहीं भटक रहे हैं. पूरी तरह से झूठ था क्योंकि उन्होंने ‘पहले आओ, पहले पाओ’ नीति के स्वरूप को बिगाड़ दिया था.’’
चिदंबरम पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति यह जानकर हैरान और स्तब्ध रह गई कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने 15 फरवरी 2008 में अपने नोट में स्वीकार किया कि स्पेक्ट्रम दुर्लभ संसाधन है...स्पेक्ट्रम की कीमत, इसकी दुर्लभता और उपयोगिता के आधार पर तय होनी चाहिए. लेकिन इसके साथ उन्होंने इस मामले को बंद माने जाने की अद्भुत सलाह भी दे दी.’’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘समिति का मानना है कि जवाबदेही का तकाज़ा है कि सरकार को गलत तरीके से पहुंचाये गए नुकसान की भरपायी होनी चाहिए और दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए.’’
‘‘समिति इसे अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मानती है करदाताओं के संरक्षक और लोक कल्याण में संसाधनों का सदुपयोग सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निभाने वाले (तत्कालीन) वित्त मंत्री राजस्व नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तीव्र गति से कड़ी कार्रवाई को आगे बढ़ाने की बजाए प्रधानमंत्री को यह लिखते हैं कि इस मामले को बंद समझा जाए.’’
समिति ने पाया कि आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) के सचिव इस विषय को कैबिनेट सचिव के संज्ञान में लाने में विफल रहे और यहां तक कि उन्होंने इस विषय पर अनियमितता के सार्वजनिक होने के बाद भी वित्त मंत्री को भी कुछ नहीं लिखा, जबकि राजस्व के भारी नुकसान पर व्यापक चर्चा हो रही थी. समिति ने डीईए के तत्कालीन सचिव समेत इस विषय पर चुप्पी साधने वाले सभी लोगों से स्पष्टीकरण मांगा है.