मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के डूडा टोरा गांव की गिनती पहले बिगडै़ल गांव के तौर पर हुआ करती थी, क्योंकि यहां की पहचान से शराब जुड़ चुकी थी. गांव में शराब बनाने का काम भी बड़े पैमाने पर होता था और अधिकतर लोग शराब पीने के शौकीन थे.
मगर एक महिला सरपंच राम बाई लोधी की अगुवाई में इस गांव की तस्वीर ही बदल गई है. अब यहां न तो शराब बनती है और न ही कोई शराब पीता है, क्योंकि ऐसा करने वाले को सजा जो मिलने का खतरा है. जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बसा है डूडा टोरा गांव.
इस गांव की पहचान शराब से ऐसी जुड़ी कि यहां शराबियों का जमघट लगा रहता था. हालत इतनी खराब हो चली थी कि बच्चों तक की जुबान पर शराब का स्वाद चढ़ने लगा था. यह स्थिति यहां की महिला के लिए सबसे ज्यादा कष्टदायक होती थी, क्योंकि उन्हें घर के अंदर एवं बाहर दोनों जगह इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ता था. शराबखोरी के चलते ही दूसरे गांव के लोग यहां रिश्ता करने तक को तैयार नहीं होते थे. कोई भी परिवार अपनी बेटी की शादी डूडा टोरा के युवक से करना पसंद नहीं करता था.
लेकिन जब इस गांव की कमान राम बाई लोधी के हाथ में आई तो हर किसी के मन में इस पहचान से छुटकारा मिलने की उम्मीद जगी, जिसकी वजह से वे जग हंसाई का पात्र बन गए थे. इसके लिए सभी ने मिलकर राम बाई की अगुवाई में पंचायत बुलाई और शराब बंदी का फैसला कर डाला.
गांव के बलदेव लोधी बताते हैं कि एक मार्च 2012 को हुई पंचायत में सर्वसम्मति से शराबबंदी का फैसला लिया गया. इतना ही नहीं एक पंचनामा तैयार किया गया कि जो भी शराब पीएगा या बनाता पाया जाएगा उसे जूतों की माला पहनाकर गांव में घुमाया जाएगा. इसके अलावा उसपर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा. साथ ही उसका समाज से बहिष्कार कर दिया जाएगा.
गांव के चारों मुहानों पर अब भी जूते साफ टंगे नजर आते है. इसके अलावा गांव के लोगों पर नजर रखने के लिए निगरानी समिति भी बनाई गई है. राम बाई बताती हैं कि यह निर्णय गांव वालों की आपसी सहमति से लिया गया है.
बाई हों या कल्ली बाई लोधी सभी शराब बंदी के बाद से काफी खुश हैं. वे कहती हैं कि अब गांव में न तो ज्यादा झगड़े होते हैं और न हीं उन्हें अब अपने बच्चों के बिगड़ने की चिंता है. इतना ही नहीं उन्हें इस बात की भी उम्मीद है कि अब दूसरे गांव के लोग यहां रिश्ता जोड़ने से नहीं कतराएंगे.
डूडा टोरा के नजदीकी गांव बड़ागांव धसान के पत्रकार चरण सिंह बुंदेला बताते हैं कि कभी शराब का गढ़ रहे इस गांव की तस्वीर बदली-बदली नजर आने लगी है. एक महिला सरपंच की अगुवाई में गांव के लोगों ने एक साहसिक फैसला कर वर्षो से चली आ रही कुरीति को पल भर में ही खत्म कर दिया है. ऐसा कम ही देखने को मिलता है.