राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शह-मात की लड़ाई हाईकोर्ट से होते हुए अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गई है. पायलट समेत 19 कांग्रेसी बागी विधायक बनाम स्पीकर मामले की सुनवाई गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में होनी है. हालांकि, हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रखा गया है. 24 जुलाई को सुनवाई तक स्पीकर के किसी तरह का फैसला लेने पर रोक लगाई गई है, ऐसे में स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
दरअसल, इस तरह की राजनीतिक स्थिति उत्पन्न होती है तो विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुछ समय पहले ऐसे ही सियासी हालत पैदा हो गए थे, जिसमें हम देख चुके हैं कि स्पीकर और बागी विधायकों का मामले में हाईकोर्ट या फिर सुपीम कोर्ट तक को दखल देना पड़ा. हालांकि, राजस्थान का मामला इन दोनों राज्यों से अलग है. मध्य प्रदेश और कर्नाटक में विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था जबकि, राजस्थान के स्पीकर ने अभी विधायकों को सिर्फ कारण बताओ नोटिस जारी किया है. ऐसे में देखा होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है?
कर्नाटक का मामला और फैसला
कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की 14 महीने की सरकार 24 जुलाई को विश्वास मत हासिल नहीं कर पाने से गिर गई थी. संकट एक जुलाई को शुरू हुआ जब 2 विधायकों ने इस्तीफा दिया और फिर यह संख्या 15 तक पहुंच गई. स्पीकर विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करने को तैयार नहीं थे वो सभी बागियों को अपने समक्ष पेश होने को कह रहे थे. ऐसे में बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. कोर्ट ने स्पीकर को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया और साथ ही कहा कि बागी विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. सदन में उपस्थित रहने या अनुपस्थित रहने की उन्हें आजादी है. इसके बाद स्पीकर ने बागी विधायकों का इस्तीफे स्वीकार किया और उन्हें अयोग्य ठहरा दिया दिया था और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी.
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स्पीकर के फैसले के खिलाफ बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर 2019 को कर्नाटक के श्रीमंत बालासाहेब पाटिल बनाम अध्यक्ष कर्नाटक विधानसभा नामक केस में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा पारित उक्त आदेश को तो वैध ठहराया जिसमें उन्होंने बागी विधायकों को अयोग्य घोषित किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन विधायकों की अयोग्यता की अवधि, जो कि राज्य की 15वीं विधानसभा की अवधि तक थी, उसे समाप्त कर दिया था. इसका अर्थ यह हुआ कि विधायक अयोग्य होने के बावजूद फिर से चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हो गए.
MP में स्पीकर ने आधी रात इस्तीफा स्वीकारा
मध्य प्रदेश में इसी साल 10 मार्च को 22 कांग्रेसी विधायकों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. स्पीकर ने 6 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए, जो मंत्री थे. इसके अलावा 16 बागी विधायकों के इस्तीफों पर फैसला नहीं किया. इसके चलते सरकार फ्लोर टेस्ट नहीं करा रही थी जबकि बीजेपी लगातार कह रही थी कि सरकार अल्पमत में आ गई है.
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मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने दोनों पक्ष की सुनवाई सुनने के बाद विधानसभा का सत्र फिर से बुलाए जाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार को 20 मार्च शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने और सदन की कार्यवाही का वीडियोग्राफी कराने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बागी विधायकों की सुरक्षा सुनिश्चित कराई जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 16 विधायकों पर विधानसभा में आने का कोई दबाव नहीं होगा. अदालत ने कहा कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक बागी विधायकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें. इसके बाद आधी रात को स्पीकर ने फ्लोर स्टेट से पहले विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए और कमलनाथ सरकार गिर गई.
उत्तराखंड मामला का हल कोर्ट से निकला
उत्तराखंड में 27 मार्च, 2016 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया था, क्योंकि 18 मार्च को विनियोग विधेयक पर मत विभाजन के दौरान कांग्रेस के 9 बागी विधायक उनके समर्थन में आए. सियासी संकट के बीच राष्ट्रपति शासन लगाया गया. इसके बाद स्पीकर ने कांग्रेस के 9 बागी विधायकों को अयोग्य करार दिया. मामला हाईकोर्ट में गया तो कोर्ट ने स्पीकर के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट गया. कोर्ट के दखल के बाद फिर राष्ट्रपति शासन को हटाया गया और कांग्रेस की सरकार बहाल हो गई.
मणिपुर का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था
सुप्रीम कोर्ट ने गत मार्च को न केवल मणिपुर सरकार के वन मंत्री टी श्यामकुमार को पद से हटा दिया बल्कि, विधानसभा में प्रवेश पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर विधानसभा के स्पीकर की ओर से अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं लेने से नाराज होकर यह आदेश दिया था. दरअसल 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को अयोग्यता पर 4 हफ्ते में फैसला लेने के लिए कहा था. लेकिन निर्णय नहीं हुआ. कांग्रेस के दो विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. श्यामकुमार ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और फिर भाजपा में शामिल होकर मंत्री बन गए थे, जिसके बाद उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा.