राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के ढाई साल का यानी आधा कार्यकाल पूरा कर लिया है. इसके बावजूद अभी तक राजनीतिक नियुक्तियों की उम्मीदें कांग्रेस नेताओं की पूरी नहीं हो सकीं. हालांकि, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट से लेकर उनके तमाम समर्थक विधायकों और कांग्रेस के नेताओं द्वारा राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर लगातार आवाज उठाई जाती रही हैं. इसके बाद भी अभी तक मुख्यमंत्री गहलोत ने राज्य के किसी निगम या बोर्ड के अध्यक्ष और मेंबर को नियुक्त नहीं किया है, जिसके चलते तमाम कांग्रेस नेताओं के सपने अधूरे हैं?
बता दें कि राजस्थान में गहलोत सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार है. सचिन पायलट के साथ-साथ उनके समर्थक विधायकों ने मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां जल्द करने की आवाज उठा रहे हैं. सचिन पायलट ने कहा था कि प्रदेश में सरकार बने ढाई साल का वक्त हो गया है और अब प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का विस्तार में देरी नहीं होनी चाहिए. पायलट के बाद उनके सहयोगी विधायकों ने भी उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिए और कई विधायकों ने भी इस मांग को दोहराया.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल के विस्तार के मूड में फिलहाल नहीं दिख रहे हैं. इसकी वजह यह है कि गहलोत अपने पिछले कार्यकाल में भी राजनीतिक नियुक्तियां आखिर के दो सालों में करते रहे हैं. इसी ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री गहलोत राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर अभी कुछ समय और भी ले सकते हैं.
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हालांकि, कांग्रेस प्रभारी अजय माकन ने वादा किया था कि 15 फरवरी तक प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों को पूरा कर लिया जाएगा. लेकिन, तीन सीटों पर उपचुनाव और पांच राज्यों के विधानसभा के चलते यह मामला टल गया था. वहीं, अब जब सचिन पायलट गुट जिस तरह से राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर मुखर है, ऐसे में अब इस मामले को ज्यादा टालना कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है.
राजस्थान में प्रदेश स्तर पर तकरीबन 70 राजनीतिक नियुक्तियां होनी है जबकि जिला स्तर पर करीब 2 हजार से ज्यादा पदों पर नियुक्तियां होनी हैं. ऐसे में जिला स्तर की नियुक्तियों को लेकर ज्यादा सियासी खींचतान नहीं है, लेकिन प्रदेश स्तर की नियुक्तियों को लेकर पायलट और गहलोत दोनों ही खेमे नजर बनाए हुए हैं. हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण पदों पर गहलोत अपने करीबी नेताओं की नियुक्तियां धीरे-धीरे कर चुके हैं.
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प्रदेश स्तर पर राजनीतिक नियुक्तियों में अति महत्वपूर्ण माने जाने वाले राज्य वित्त आयोग, हाऊसिंग बोर्ड, आरपीएससी, मानवाधिकार आयोग, सूचना आयोग और कर्मचारी चयन बोर्ड में नियुक्तियां हो चुकी हैं. बोर्ड और आयोगों में गहलोत एक-एक कर पहले ही अपने समर्थकों को एडजस्ट कर चुके हैं, लेकिन इनके अलावा भी करीब 65 से ज्यादा आयोग अभी खाली हैं.
ऐसे में गहलोत समर्थक विधायक उम्मीद लगाए बैठे हैं कि मंत्रिमंडल में उन्हें अगर हिस्सेदारी नहीं मिलती है तो कम से कम राजनीतिक नियुक्तियों में उन्हें जगह दी जाएगी, क्योंकि इनमें से कई को आयोगों के जरिए सरकार मंत्री का दर्जा भी देती है. आयोगों और बोर्डों के अध्यक्ष को राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री का ओहदा तक मिलता है. इसीलिए सभी की नजर बनी हुई है.
हालांकि, गहलोत अभी एक साथ सभी नियुक्तियां करके किसी तरह से अपनी सरकार के लिए जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहते हैं. इसीलिए फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं ताकि पार्टी में किसी तरह की कोई फूट न हो सके. ऐसे में सचिन पायलट को साधने के लिए उपचुनाव नतीजों के बाद गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं, साथ ही राजनीतिक नियुक्तियों को धीरे-धीरे करने की रणनीति अपना सकते हैं?