उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में सियासी दिग्गज नेता अपने-अपने राजनीतिक गढ़ को बचाने के लिए जोड़तोड़ और सियासी गणित बैठाने में जुटे हुए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गृह जनपद गोरखपुर तो मुलायम सिंह यादव अपने गढ़ इटावा में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराने में कामयाब रहे हैं. वहीं, अब गांधी परिवार के मजबूत किला माने जाने वाले रायबरेली में कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला है जबकि, अमेठी में बीजेपी और सपा के बीच शह-मात का खेल जारी है.
यूपी के 75 जिले में से 22 जिला पंचायत अध्यक्ष (Zila Panchayat Adhyaksh) निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं, जिनमें 21 बीजेपी और एक सपा के हैं. ऐसे में अब 53 जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए 3 जुलाई को मतदान होना है. इनमें से 37 जिला पंचायत सीटें ऐसी हैं, जहां पर सिर्फ दो-दो उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी पार्टी को जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव से बाहर कर लिया है जबकि सपा पूरे दम खम के साथ चुनावी मैदान में है.
वहीं, कांग्रेस यूपी में महज एक जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर ही किस्मत आजमा रही है. यह सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की है, जहां कांग्रेस को सपा ने वॉकओवर देख रहा था. इसके बावजूद कांग्रेस को अपना किला गढ़ बचाने के लिए बीजेपी से उसे दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. वहीं, रायबरेली की बदले कांग्रेस ने अमेठी में सपा को अपना समर्थन दे रखा है.
रायबरेली में बीजेपी-कांग्रेस आमने-सामने
उत्तर प्रदेश में रायबरेली एकलौता जिला है, जहां कांग्रेस के जिला पंचायत सदस्य दहाई का आंकड़ा पार किया था. इसके अलावा सूबे के बाकी जिलों में कांग्रेस एक अंक में सिमट गई थी. यही वजह है कि रायबरेली के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर कांग्रेस ने काबिज होने की कवायद में जुटी है ताकि गांधी परिवार की प्रतिष्ठा को बचाया जा सके. हालांकि, यह सीट जितना कांग्रेस के लिए अहम उस कम बीजेपी के भी नहीं है.
कांग्रेस ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में पूर्व सांसद स्व.अशोक सिंह की बहू व मनीष सिंह की पत्नी आरती सिंह को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, बीजेपी ने निर्दलीय चुनाव जीती रंजना चौधरी को मैदान में उतारा है, जिसे जिताने का सारा दरोमदार एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह के ऊपर है. इसके चलते रायबरेली जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है और यहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला माना जा रहा है.
रायबरेली में जिला पंचायत पर पिछले दो चुनाव से कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन दिनेश प्रताप सिंह के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले जाने से जिला पंचायत अध्यक्ष का पद से सियासी वर्चस्व खत्म हो गया था. इसकी वजह यह थी कि दिनेश सिंह के परिवार के सदस्य ही जिला पंचायत अध्यक्ष बन रहे थे.
रायबरेली जिला पंचायत के कुल 52 सदस्य हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 15 सपा, 12 कांग्रेस और 8 बीजेपी के जीते थे. इसके अलावा 17 निर्दलीय सदस्यों ने चुनाव जीत दर्ज किए हैं. सपा के समर्थन के बाद कांग्रेस की रायबरेली में जिले में स्थिति मजबूत मानी जा रही है, लेकिन सत्ता में रहने के चलते बीजेपी के होने से उसे कम नहीं आंका जा सकता है.
मनीष सिंह बनाम दिनेश सिंह
हालांकि, कांग्रेस प्रत्याशी आरती सिंह के पति मनीष सिंह कहते हैं कि बीजेपी के लोग सत्ता का कितना भी गलत इस्तेमाल कर लें, लेकिन रायबरेली कांग्रेस का मजबूत गढ़ है, उसे हरहाल में हम बरकरार रखेंगे. पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने जिस भरोसे से हमें टिकट दिया है उस पर हम खरे उतरेंगे और जिला पंचायत की सीट हरहाल में जीतकर कांग्रेस को देंगे. पिछले कुल सालों में जिस तरह से जिला पंचायत को भ्रष्टातार का अड्डा बना दिया गया था, उसे मुक्त कराएंगे.
वहीं, बीजेपी में जाने के बाद से दिनेश प्रताप सिंह के खिलाफ जिस तरह से एक गुट सक्रिय है, उससे उनका सियासी ताकत जिला में लगातार कमजोर हुआ है. 2019 में लोकसभा चुनाव हार चुके हैं और जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में उनके भाई की पत्नि को करारी मात मिली है. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने करीबी नेता को जिताकर अपनी राजनीतिक आधार को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस ने मनीष सिंह की पत्नी को उतारकर उनके सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है.
अमेठी में कांग्रेस ने छोड़ा मैदान
कांग्रेस का 2019 से पहले रायबरेली की तरह अमेठी भी मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन राहुल गांधी के चुनाव हारने के बाद से पार्टी का सियासी ग्राफ कमजोर हुआ है. यही वजह कि इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस ने मैदान छोड़ दिया है. यह पहली बार नहीं है कि कांग्रेस ने खुद को बाहर कर लिया है, 2016 के जिला पंचायत चुनाव में भी अंतिम समय में पार्टी प्रत्याशी ने पर्चा उठा लिया था, जिसके चलते सपा प्रत्याशी निर्विरोध जीत दर्ज किए थे.
अमेठी में सपा और बीजेपी में मुकाबला
अमेठी जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए इस बार सपा व बीजेपी में सीधा मुकाबला है. सपा अपनी परंपरागत सीट बचाने के लिए मैदान में है तो भाजपा अमेठी की बदली हुई फिजा में भगवा रंग और चटक करने के लिए ताकत लगाए हुए है. सपा की ओर से विधायक राकेश प्रताप सिंह मैदान संभाले हुए हैं तो बीजेपी की ओर से सांसद प्रतिनिधि विजय गुप्ता एक-एक वोट का गणित दुरुस्त करने में जुटे हैं.
इस बार अमेठी जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनारक्षित है. सपा ने एक बार फिर से गौरीगंज विधायक की पत्नी शीलम सिंह पर अपना दांव लगाया है. वहीं, बीजेरी ने उद्योगपित राजेश अग्रहरि को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है. राजेश को केंद्रीय मंत्री स्मृति का बेहद खास माना जाता है. ऐसे में अमेठी का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है और बीजेपी जिले में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है.
अमेठी में कुल 36 जिला पंचायत सदस्य है. इनमें सबसे ज्यादा 12 निर्दलीय जीतकर किंगमेकर की भूमिका में है. वहीं, स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र में बीजेपी को महज आठ सदस्य है जबकि सपा समर्थित दस प्रत्याशी चुनाव जीतकर आए हैं. बसपा के तीन और जनसत्ता दल लोकत्रंतिक पार्टी के एक प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस के दो सदस्य जीते हैं. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष पर काबिज होने के लिए कम से कम 19 सदस्यों का समर्थन हासिल करना होगा.
इटावा में मुलायम परिवार का कब्जा
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गृह जनपद इटावा में तीन दशक सपा का सियासी वर्चस्व कायम है. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में इस बार भी सपा के अंशुल यादव निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं, यहां बीजेपी को चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी ही नहीं मिल सका. हालांकि, शिवपाल यादव और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के अंदुरुनी गठजोड़ के आगे बीजेपी की यहां एक नहीं चल सकी. इटावा में बीजेपी का महज एक ही जिला पंचायत सदस्य जीतकर आया है जबकि यहां पार्टी के मौजूदा सांसद और दो विधायक हैं. इसके बावजूद बीजेपी ने सपा के लिए मैदान के लिए छोड़ दिया.
योगी के गढ़ गोरखपुर में बीजेपी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में बीजेपी जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध कराने में सफल रही है. यहां से बीजेपी से साधना सिंह के खिलाफ कोई भी प्रत्याशी नामांकन नहीं कर सका, जिसके चलते उन्हें निर्विरोध घोषित कर दिया गया है. साधना सिंह यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह की पत्नी है. इससे पहले भी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं.
गोरखपुर में सपा कन्फ्यूजन में ही रह गई. सबसे पहले समाजवादी पार्टी की तरफ से अधिकृत प्रत्याशी आलोक कुमार गुप्ता ने नामांकन से किनारा कर लिया था जबकि विकल्प के तौर पर पार्टी द्वारा उतारे गए धर्मेंद्र यादव भी नामांकन के लिए तैयार नहीं हुए. ऐसे में पार्टी ने आखिरी दिन नामांकन के कुछ घंटे पहले जितेंद्र यादव को सपा प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन वे भी नामांकन नहीं कर सके. ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी साधना सिंह निर्विरोध निर्वाचित हो गई.
अखिलेश के आजमगढ़ में कांटे का मुकाबला
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए सपा और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा. यहां से सपा अधिकृत उम्मीदवार विजय यादव और भाजपा के संजय कुमार निषाद के बीच लड़ाई है. ऐसे ही मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी में भी बीजेपी और सपा के बीच फाइट है. मैनपुरी में कुल 30 सदस्यों में से सपा समर्थित 13 और बीजेपी समर्थित आठ सदस्य ही जीते हैं जबकि आठ सदस्य निर्दलीय और एक सदस्य कांग्रेस समर्थित भी है. ऐसे में यहां मुकाबला काफी रोचक है.
(रायबरेली से शैलेंद्र प्रताप सिंह और अमेठी से आलोक श्रीवास्तव के इनपुट के साथ)