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मराठा अस्मिता-हिंदुत्व के बाद अब ये सोशल इंजीनियरिंग... क्या बिखरता जनाधार बचा पाएगी उद्धव की शिवसेना?

उद्धव को एक पूरी नई रणनीति पर काम करना पड़ रहा है, उस राह पर चलने की तैयारी करनी है जहां शायद आज से पहले शिवसेना कभी नहीं चली. इसे जातिवाद राजनीति कह सकते हैं, अंग्रेजी में सोशल इंजनीयिरिंग भी कहा जा सकता है.

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उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं. शिवसेना के वचर्स्व को बचाने की चुनौती, हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाने की चुनौती और सबसे बड़ा फिर महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय होने की. पिछले कुछ महीनों में जो घटनाक्रम हुए हैं, उन्होंने सिर्फ उद्धव और उनके गुट वाली शिवसेना को कमजोर करने का काम किया है. हाथ से सत्ता तो गई ही है, इसके अलावा पार्टी में भी ऐसी फूट पड़ी कि कई विधायक एकनाथ शिंदे के साथ चले गए. ऐसे में उद्धव को एक पूरी नई रणनीति पर काम करना पड़ रहा है, उस राह पर चलने की तैयारी करनी है जहां शायद आज से पहले शिवसेना कभी नहीं चली. इसे जातिवाद राजनीति कह सकते हैं, अंग्रेजी में सोशल इंजनीयिरिंग भी कहा जा सकता है. सरल शब्दों में मायावती स्टॉइल ऑफ पॉलिटिक्स भी है.

बाला साहेब की राजनीति और उद्धव का एक्सपेरिमेंट

ये उद्धव ठाकरे का वो एक्सपेरिमेंट है जिससे बाला साहेब ठाकरे हमेशा दूर रहे थे. शिवसेना की शुरुआत से सिर्फ दो ही मुद्दों पर राजनीति रही, स्थापना के समय मराठा अस्मिता उसके केंद्र में रहती थी तो 21 साल पहले हिंदुत्व की विचारधारा को भी साथ ले लिया गया. इन्हीं दो दिशाओं में इस पार्टी ने खुद का विस्तार भी किया और कई बड़े नेता देखने को मिल गए. लेकिन अब उद्धव लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं. वे जातियों के आधार पर अपनी नई राजनीति का आगाज करना चाहते हैं. उन दलों से हाथ मिलाना चाहते हैं जिनका जाति कनेक्शन जमीन पर मजबूत है, जो किसी एक समुदाय में अपनी अच्छी उपस्थिति रखते हैं.

उद्धव का जाति कार्ड, किनसे मिला रहे हाथ?

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इसी कड़ी में उद्धव ठाकरे दो पहलुओं पर ध्यान दे रहे हैं. पहला भीम शक्ति से हाथ मिलाने का और दूसरा लहू शक्ति को अपने साथ लाने का. यहां पर भीम शक्ति का मतलब है वो पार्टियां जो अंबेडकर के विचारों से प्रेरित हैं. वहीं लहू शक्ति के जरिए मतंग समुदाय को साधने की तैयारी है. बड़ी बाद ये है कि उद्धव ने अपनी इस सोशल इंजनीयरिंग को जमीन पर उतारना शुरू भी कर दिया है. वे ऐलान कर चुके हैं कि सांमभाजी ब्रिगेड से हाथ मिलाने वाले हैं. मराठा समुदायों की आवाज बुलंद करने वाला ये ब्रिगेड महाराष्ट्र की राजनीति में काफी सक्रिय है. विवादों से भी इसका पुराना नाता रहा है, लेकिन जातीय और दूसरे समीकरण साधने के लिए अब उद्धव ये रणनीति अपनाने को तैयार हो गए हैं. उनकी इस रणनीति का हिस्सा प्रकाश आंबेडकर और उनकी Vanchit Bahujan Aghadi (VBA) भी है. इस संगठन से भी उद्धव गठबंधन करने की कोशिश में लगे हैं.

हिंदुत्व को नहीं छोड़ेंगे पीछे, नई रणनीति से धार

दिलचस्प बात ये है कि उद्धव के दादा प्रभोधंकर ठाकरे और प्रकाश आंबेडकर के दादा बाबा साहेब आंबेडकर एक दूसरे के साथ हिंदू धर्म को सशक्त बनाने के लिए काम कर चुके हैं. हिंदू धर्म में सामाजिक सुधारों के लिए दोनों ने लंबे समय तक साथ मिलकर काम किया है. ऐसे में क्या उस कनेक्शन के दम पर उद्धव अब प्रकाश आंबेडकर के साथ भी कोई ऐसा ही गठजोड़ बना सकते हैं, इस पर सभी की नजर रहने वाली है. अब उद्धव आंबेडकर के सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहे हैं, मराठा समुदाय को साधने के लिए दलों से गठबंधन कर रहे हैं, इसके अलावा हिंदुत्व की राजनीति को धार देने के लिए ऐसे नेताओं को अपने साथ ला रहे हैं जिनकी जमीन पर जबरदस्त लोकप्रियता है और लोग उन्हें सुनने के लिए आतुर रहते हैं.

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अब उद्धव सिर्फ सोच नहीं रहे हैं, उनकी तरफ से लगातार इस दिशा में बड़े कदम उठाए जा रहे हैं. हाल ही में उद्धव फायरब्रेंड नेता सुष्मा अंधारे को अपने गुट में शामिल कर चुके हैं. सिर्फ तीन महीने के अंदर में उनका कद ऐसा हो गया कि वे राज्य में इस समय महा प्रबोधन यात्रा को लीड कर रही हैं. अंधारे का मराठवाड़ा में एक खानाबदोश जनजाति से आना भी उद्धव की वर्तमान राजनीति के लिए मुफीद साबित हो सकता है. 

इस समय उद्धव ठाकरे लहू सेना के साथ भी खुद को जोड़ने की कवायद में चल रहे हैं. लहुजी वस्ताद साल्वे का संगठन मतंग समुदाय में काफी ताकतवर है. महाराष्ट्र की राजनीति में इसकी अलग पहचान भी है. ऐसे में एक तय रणनीति के तहत उद्धव इन सभी अलग-अलग जातियों के समुदायों को साथ लाने की कोशिश में हैं.

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