राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आज बैंकों की हड़ताल का मुद्दा उठाया. इसी के साथ बैंकों के निजीकरण पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बयान देने की मांग भी रखी. जानें क्या-क्या कहा खड़गे ने.
बैंकों के निजीकरण से होंगे बुरे परिणाम
मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन में शून्यकाल के दौरान अपनी बात रखी. उन्होंने सरकारी बैंकों के निजीकरण का विरोध करते हुए कहा कि देश पर इसके बहुत बुरे परिणाम होंगे. दो दिनों से नौ बैंकों के यूनियनों से जुड़े लाखों कर्मचारी हड़ताल पर हैं, जिस कारण आम लोगों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है.
LIC, General Insurance कंपनियों की भी हड़ताल
खड़गे ने कहा कि अंधाधुंध निजीकरण के चलते भारी असंतोष है. बैंक कर्मचारियों की हड़ताल के बाद 17 मार्च को जनरल इंश्योरेंस कंपनियों और 18 मार्च को LIC के कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर रहेंगे.
बैंकों के ग्राहक भी स्टेकहोल्डर
खड़गे ने कहा कि देश में एक दर्जन राष्ट्रीयकृत बैंकों की एक लाख शाखाएं और उनमें 75 करोड़ खाते हैं. इसमें 13 लाख कर्मचारी कार्य करते है. बैंकों में अकाउंट रखने वाले ग्राहक भी बैंक के स्टेकहोल्डर होते हैं. लेकिन सरकार ने उनको भरोसे में लिए बिना इन बैंकों के निजीकरण का फैसला ले लिया.
2008 की मंदी से बचाया सरकारी बैंकों ने
खड़गे ने कहा कि इंदिराजी ने अपने प्रधानमंत्री काल में दूरदर्शी नजरिए से गरीबों की मदद के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था. उसका बहुत फायदा हुआ. यहां तक जब विश्व में आर्थिक मंदी आयी तो भारत को इन्हीं राष्ट्रीयकृत बैंकों ने 2008 में बचाया.
वित्त मंत्री दें सदन में बयान
नेता प्रतिपक्ष ने मांग की है कि बैंक कर्मचारियों के मुद्दे को सुलझाया जाये और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस पर सदन में बयान दें.
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