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सोनिया का अध्यक्ष पद छोड़ने का संकेत कांग्रेस में उनका करिश्मा खो जाने की मुनादी!

सोनिया गांधी के नाम सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड है. जिन्हें 20वीं सदी के आखिरी वर्षों में पतन के गर्त में जाती दिख रही कांग्रेस में दोबारा जान फूंककर उसे लगातार 10 साल तक देश की सत्ता में बैठाने का श्रेय जाता है. यूपीए सरकार में उनका फैसला ही अंतिम फैसला हुआ करता था. लेकिन इस बार जिस तरह उनके नेतृत्व को चुनौती दी गई है वो कांग्रेस में उनके करिश्मे के खो जाने की मुनादी जैसा है.

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कांग्रेस की कमान सबसे लंबे समय तक सोनिया के हाथ
  • सोनिया ने कांग्रेस को 10 साल तक केंद्र की सत्ता में रखा
  • अटल-आडवाणी को 2004 में सोनिया ने धूल चटाई

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में इस समय ऐसी उथल-पुथल चल रही है जैसी दशकों में कभी नहीं देखी गई. पार्टी के कुछ दिग्गज नेताओं ने जैसे अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिए हैं. उन्हीं सोनिया गांधी पर जिनके नाम कांग्रेस की सबसे ज्यादा समय तक अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड है. जिन्हें 20वीं सदी के आखिरी वर्षों में पतन के गर्त में जाती दिख रही कांग्रेस में दोबारा जान फूंककर उसे लगातार 10 साल तक देश की सत्ता में बैठाने का श्रेय जाता है. सोनिया करीब दो दशकों तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं. पार्टी और यूपीए सरकार में उनका फैसला ही अंतिम फैसला हुआ करता था. लेकिन इस बार जिस तरह उनके नेतृत्व को चुनौती दी गई है वो कांग्रेस में उनके करिश्मे के खो जाने की मुनादी जैसा है. 


कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पहले कार्यकाल में सोनिया ने 19 साल तक पार्टी की बागडोर संभाली. राहुल गांधी के पद छोड़ने के बाद एक साल से सोनिया कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम देख रही हैं. पहली पारी में सोनिया ने जहां पार्टी को करिश्माई नेतृत्व दिया, वहीं दूसरी पारी में वो नाइट वॉचमैन की भूमिका में ज्यादा नजर आईं. हालांकि राहुल अथवा प्रियंका के पद संभालने के लिए तैयार होने से पहले ही उन्हीं की पार्टी के नेता अब उन्हें आउट करार दे रहे हैं. 

वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी के वक्त हुई एंट्री

सोनिया ने 22 साल पहले जब पद संभाला तब देश की सियासत में अटल बिहारी वाजपेयी-लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी तूफान मचाए थी. थर्ड फ्रंट की राजनीति भी अपने सियासी उफान पर थी. क्षत्रपों के आगे कांग्रेस बेबस नजर आ रही थी. ऐसी हालत में सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभालकर कांग्रेस को नई संजीवनी दी और उसे फिर से राजनीति के शीर्ष पर पहुंचाया. 

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सोनिया 1998 से 2017 तक पार्टी की अध्यक्ष रहीं. 2004 में उन्होंने पार्टी के चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया. ये उन्हीं का करिश्मा था कि अटल बिहारी वाजपेयी की छह साल की उपलब्धियां और इंडिया शाइनिंग, फील गुड का नारा धूमिल पड़ गया. कांग्रेस ने धमाकेदार वापसी कर केंद्र में सरकार बनाई. सोनिया ने तब खुद प्रधानमंत्री बनने से इनकार करते हुए इस पद पर मनमोहन सिंह की ताजपोशी का फैसला किया, जिसे आज भी कई सियासी जानकार राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक मानते हैं.

सियासत में नहीं आना चाहती थीं सोनिया गांधी

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी राजनीति में आने को तैयार नहीं थीं. सियासत में उनकी भागीदारी धीरे-धीरे शुरू हुई. पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी अपने संस्मरण में लिखते हैं कि सोनिया को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय करने के लिए पार्टी के कई नेता मनाने में लगे थे. उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही थी कि उनके बगैर कांग्रेस खेमों में बंटती जाएगी और भारतीय जनता पार्टी का विस्तार होता जाएगा. 

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वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि सोनिया कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार 1997 में गईं. उन्होंने पद लेने के बजाए पार्टी के लिए प्रचार से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. 1998 में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी को मजबूत किया.  वो न तो बहुत ही अच्छे से हिंदी बोलती थीं और न ही राजनीति के दांवपेच से बहुत ज्यादा वाकिफ थीं. इसके बाद भी पार्टी पर उनकी पकड़ काबिले तारीफ थी. 

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सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ी. लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वाजपेयी की अगुवाई वाली बीजेपी को उस चुनाव में करगिल युद्ध और पोखरण परमाणु विस्फोट का राजनीतिक लाभ मिला.

2004 के लोकसभा चुनाव में दिखाया असर

शकील अख्तर कहते हैं कि 2004 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों के वक्त बतौर अध्यक्ष सोनिया गांधी की सूझबूझ और सियासी समझ सबसे प्रमुखता के साथ दिखी. सोनिया गांधी ने सत्ताधारी बीजेपी के मुकाबले के लिए एक प्रभावी गठबंधन तैयार किया. वे कांग्रेस से मिलती-जुलती विचारधारा वाले ऐसे दलों को कांग्रेस के साथ लाने में सफल रहीं, जिनकी राजनीति ही कांग्रेस के विरोध में खड़ी हुई थी. इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्र की सरकार में कांग्रेस की वापसी हो गई.

 
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन सोनिया ने यूपीए की प्रमुख के तौर पर सरकार चलाने के राजनीतिक पक्ष को देखा. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के तौर पर सरकार के नीतिगत पक्ष को भी उन्होंने प्रभावित किया. नीतियां बनाने के मामले में अधिकार आधारित नीतियों को प्रमुखता दिए जाने को सोनिया गांधी का योगदान माना जा सकता है. कांग्रेस के 10 साल के कार्यकाल में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, वन अधिकार, भोजन का अधिकार और उचित मुआवजे और पुनर्वास का अधिकार संबंधित कानून सरकार ने बनाए.

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सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो केंद्र में ही नहीं राज्यों में भी पार्टी की चूलें दरक चुकी थीं. उत्तर प्रदेश और बिहार से तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया था. राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से भी कांग्रेस बाहर हो चुकी थी. सोनिया गांधी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उन्होंने राज्यों में कांग्रेस को सांगठनिक रूप से मजबूत किया और उसे सत्ता में लाने में कामायाब रहीं. 

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उनके पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल में सत्ता में आने में कामयाब रही. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी बतौर अध्यक्ष कांग्रेस को सत्ता के करीब ही नहीं लाई, पार्टी को सांगठनिक मजबूती भी देने का काम किया और राज्यों मे मजबूत नेतृत्व तैयार किया. 

दिल्ली में शीला दीक्षित, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजस्थान में अशोक गहलोत और आंध्र प्रदेश में राजशेखर रेड्डी इसके उदाहरण हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस 15 सालों तक सत्ता में रही लेकिन नेतृत्व संकट उभरा तो सोनिया ने हर बार नए चेहरे का मौका देकर इसे टाला. विलास राव देशमुख, अशोक चह्वाण और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे नेता सामने आए. दूसरी पारी में उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई. ऐसे में निश्चित तौर पर सोनिया ने कांग्रेस को नई बुलंदी देने का काम किया. 

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कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया खासी सक्रिय नजर आईं. कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान किया तो उस वक्त सोनिया गांधी ने सरकार द्वारा देरी से उठाए गए कदम पर सवाल खड़े किए. कांग्रेस कार्यसमिति की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक कर उन्होंने पीएम मोदी को कोरोना से लेकर चीन के मामले तक में कुछ अहम सुझाव भी दिए. इस तरह सोनिया विभिन्न अहम मुद्दों पर पार्टी की ओर से मजबूती से अपना पक्ष रखने के साथ-साथ मोदी सरकार को घेरती नजर आईं. सोनिया ने अब जिस तरह से कांग्रेस की कमान छोड़ने का संकेत दिया है और पार्टी की कमान संभालने के लिए राहुल गांधी अभी तक कोई फैसला नहीं ले सके हैं, इससे कांग्रेस का सियासी संकट और भी गहरा सकता है.

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