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योगी की कैबिनेट में ग्रामीण नेताओं पर जोर, यूपी में बीजेपी क्यों चली गांव की ओर?

कानपुर से लेकर लखनऊ और प्रयागराज से लेकर मेरठ तक योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में इस बार बड़े शहरों को कोई खास जगह नहीं मिली है. राजधानी लखनऊ से योगी मंत्रिमंडल में इस बार सिर्फ एक जगह मिल सकी है, जबकि पिछली बार आधा दर्जन मंत्री यहीं से थे.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भाजपा ने खुद को ब्राह्मण-वैश्यों की पार्टी के तमगे से किया मुक्त
  • शहर के मुकाबले ग्रामीण इलाकों के नेताओं को मंत्रिमंडल में तवज्जो
  • कानपुर नगर की 6 सीटें जीतने के बाद भी यहां से एक भी मंत्री नहीं

कभी बीजेपी को आमतौर पर शहरी इलाकों और ब्राह्मण-वैश्यों की पार्टी माना जाता था. बीजेपी ने पहले दलितों और ओबीसी समुदाय को अपने साथ जोड़कर ब्राह्मण-वैश्यों की पार्टी के तमगे से खुद को मुक्त किया तो अब यूपी में उसका जोर शहरी पार्टी होने के नैरेटिव को तोड़ने पर है. योगी सरकार के नए मंत्रिमंडल में भी इसकी झलक देखने को मिली. योगी के मंत्रिमंडल में शहरी इलाके के नेताओं को इस बार उतनी तवज्जो नहीं मिली, जितनी सूबे में अभी तक रही बीजेपी सरकारों में मिलती रही है. 

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कानपुर से लेकर लखनऊ, प्रयागराज, मेरठ, बरेली जैसे बड़े शहरों को कोई खास जगह नहीं मिली. सूबे की राजधानी लखनऊ से इस बार योगी मंत्रिमंडल में महज एक जगह मिली, जबकि पिछली बार आधा दर्जन मंत्री यहीं से थे. इनमें उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, बृजेश पाठक, महेंद्र सिंह, आशुतोष टंडन, स्वाति सिंह, मोहिसन रजा शामिल थे, लेकिन इस बार सिर्फ बृजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया है. 

वहीं, बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले कानपुर नगर जिले में 10 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से छह सीटों पर बीजेपी, एक पर उसकी सहयोगी अपना दल को जीत मिली है. इसके बाद भी यहां से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया, जबकि पिछले कार्यकाल में सतीश महाना और नीलिमा कटियार जैसे मंत्री यहां से थे. सतीश महाना को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा रहा है. 

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कानपुर नगर नहीं, कानपुर देहात का दबदबा

कानपुर नगर को योगी कैबिनेट में भले ही जगह नहीं मिली, लेकिन कानपुर देहात का दबदबा कायम है. कानपुर देहात में जिले की चार सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है और योगी कैबिनेट में तीन नेताओं को शामिल किया गया है. कानपुर देहात से राकेश सचान कैबिनेट मंत्री बने हैं तो अजीत पाल और प्रतिभा शुक्ला राज्य मंत्री बनी हैं. इस तरह बीजेपी ने कानपुर नगर से ज्यादा कानपुर देहात को तवज्जो दी है. 

प्रयागराज में एक दर्जन सीट पर महज एक मंत्री

प्रयागराज जिले में एक दर्जन विधानसभा सीट हैं, लेकिन योगी कैबिनेट में उसे महज एक जगह मिल सकी है. यहां से नंदगोपाल नंदी को मंत्री बनाया गया है, जबकि इससे पहले दो मंत्री हुआ करते थे. ऐसे ही मुरादाबाद से भी एक ही मंत्री बनाए गए हैं तो अलीगढ़ के ग्रामीण इलाके वाली सीट से जीते हुए विधायक मंत्री बने हैं. मथुरा शहर के बजाय ग्रामीण क्षेत्र से जीते विधायक को कैबिनेट में शामिल कर प्रतिनिधित्व दिया है. 

बुंदेलखंड से इस बार 2 की जगह 3 मंत्रियों को मौका

बीजेपी बुंदेलखंड की सभी सीटें पिछली बार की तरह जीतने में कामयाब रही है, जिसके चलते इस बार कैबिनेट में दो के बजाय तीन मंत्री यहां से हैं. पूर्वांचल का सबसे बड़ा शहर गोरखपुर माना जाता है, जहां से योगी आदित्यनाथ खुद हैं. बीजेपी ने गोरखपुर से अपने किसी भी दूसरे नेता को कैबिनेट में जगह नहीं दी है. ऐसे ही मेरठ, सहारनपुर और बरेली यूपी के बड़े शहरों में से हैं, लेकिन बीजेपी ने मेरठ के ग्रामीण इलाके हस्तिनापुर से जीतने वाले विधायक को मंत्री बनाया है तो सहारनपुर की देवबंद सीट से जीते विधायक मंत्री बने हैं. 

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गांव को प्राथमिकता देना सोची-समझी रणनीति

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल में जिस तरह से शहरी इलाके के बजाय गांवों को प्रतिनिधित्व दिया गया है, वो पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. बीजेपी की सूबे की सत्ता में वापसी के पीछे ग्रामीण वोटरों की अहम भूमिका रही है. 

ग्रामीण इलाकों में सियासी जड़ें जमाना रखना उद्देश्य

यूपी में बीजेपी का हार्डकोर वोटर शहरी है, लेकिन ग्रामीण इलाके को प्रतिनिधित्व देकर पार्टी गांव में अपनी सियासी जड़ें जमाए रखना चाहती है. ग्रामीण इलाके में निषाद, जाटव, कुर्मी, लोध, दलित और अति पिछड़ी जातियां हैं, जो एक समय बसपा का कोर वोट बैंक मानी जाती थीं. बीजेपी ने इस बार अति पिछड़े वोटों के साथ-साथ जाटवों का बड़ा हिस्सा अपने साथ लिया है. पार्टी उसे अपने साथ बनाए रखना चाहती है. 

मायावती के पारंपरिक जाटव वोटबैंक को साधने की तैयारी

अनुसूचित जातियों में जाटव समाज के लोग हमेशा बसपा प्रमुख मायावती के साथ रहे हैं. इस बार के चुनाव में बसपा का पत्ता साफ हो चुका है. ऐसे में जाटव समाज से आने वालीं बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट मंत्री और असीम अरुण को राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाकर बीजेपी ने जाटव वोट बैंक को बड़ा संदेश दिया है. अनुसूचित जाति के मन्नू कोरी को भी इसी समीकरण का लाभ मिला है. इस तरह अति पिछड़ी जातियों के नेताओं को भी कैबिनेट में जगह दी गई है, जो बीजेपी के भविष्य की राजनीति की पिच तैयार करेंगे. इसी कड़ी में बीजेपी ने इस बार मुस्लिम सवर्ण जाति की बजाय ओबीसी मुस्लिम से आने वाले दानिश आजाद अंसारी को कैबिनेट में रखा है. मुस्लिम समुदाय का अंसारी समुदाय भी ग्रामीण इलाके में ही ज्यादा रहता है.

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