बुधवार को राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने दण्ड प्रक्रिया शनाख्त विधेयक 2022-The Criminal Procedure (Identification) Bill, 2022 पेश किया. 4 अप्रैल को यह बिल लोकसभा से पास हो चुका है. राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा की शुरुआत कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने की और बिल का विरोध किया.
अमित शाह ने कहा कि अंग्रेजों के समय में बना हुआ यह कानून, आज के समय के हिसाब से पर्याप्त नहीं है. विधि आयोग ने यह जरूरत समझी कि बंदी शनाख्त अधिनियम 1920 को बदलने की ज़रूरत है. विधि आयोग ने यह भी कहा कि पहचान के प्रायोजन से संकलित किए जाने वाले डेटा की श्रेणियों को सीमित नहीं रखना चाहिए. उन्नत वैज्ञानिक खोज से लिए जाने वाले सारे मपों की सूची में निरंतर वृद्धि होनी चाहिए. इसके साथ ही यह अनुशंसा भी की गई कि जिन व्यक्तियों के माप ली जा रही है उसके दायरे को विस्तृत करना चाहिए.
चिदंबरम ने बिल पर कही ये बात
इस बिल पर चर्चा करते हुए कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने बिल का विरोध किया. उन्होंने कहा कि मुझे दुख है कि इस तरह का बिल पेश किया गया और पास किया गया. हम जाने-अनजाने में हर रोज संविधान तोड़ रहे हैं. मैं जानता हूं कि इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया. मैंने पढ़ा कि लोकसभा में बिल को पारित करने और उन्हें स्टैंडिंग कमेटी और सलेक्ट कमेटी को देने के लिए कई सुझाव दिए गए. लेकिन मुझे अफसोस है कि सरकार ने एक भी सुझाव को स्वीकार नहीं किया. बिल लोकसभा से पास हो गया. मुझे डर है कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए, बिना सुझाव माने यह बिल राज्यसभा से भी पास हो जाएगा.
इस सुझाव को क्यों माना नहीं गया कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी या स्टैंडिंग कमेटी को सौंपा जाए. अगर हमने इस बिल के लिए 102 सालों का इंतजार किया है, तो क्या हम इसके लिए 102 दिनों का इंतजार नहीं कर सकते थे. इतनी जल्दी क्या थी. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता, इस बिल का मसौदा तैयार करने की ओनरशिप कौन ले रहा है. उन्होंने कहा कि मैं बताता हूं कि यह बिल खराब और खतरनाक क्यों है.
अदालत की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए चिदंबरम ने कहा कि 2010 से देश में नार्को टेस्ट असंवैधानिक है. उन्होंने कहा कि बिल असंवैधानिक है. यह लोगों की स्वतंत्रता, गोपनीयता और गरिमा का उल्लंघन करता है. सरकार ने सेल्वी और पुट्टस्वामी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में नहीं रखा.
उन्होंने कहा कि सेल्वी मामले में, अदालत ने कहा कि पॉलीग्राफी, नार्कोएनालिसिस और ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल (BEAP) किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
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