डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक हैं.
एम. एस. स्वामीनाथन जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था.
हरित क्रांति के बाद ही भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो पाया.
भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने भारत में कृषि क्षेत्र की हालत बेहतर बनाने की ज़रूरत है.
स्वामीनाथन ने कहा कि भारत में एक बड़े कृषि संकट की आशंका उत्पन्न हो गई है.
स्वामीनाथन का कहना है कि भारत में दो-तिहाई आबादी कृषि पर निर्भर करते हैं, इसलिए कृषि की हालत में सुधार के बिना देश की हालत में सुधार नहीं हो सकता.
स्वामीनाथन का मानना है कि भारत की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिए सजग रहने की बहुत ज़रूरत है.
स्वामीनाथन का मानना है कि भारत में कृषि सिर्फ़ अनाज उत्पादन की मशीन नहीं है, बल्कि वह देश की बड़ी आबादी के लिए रीढ़ की हड्डी है.
स्वामीनाथन का कहना है कि कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा काम है, इसलिए किसान खेती करना छोड़ना चाहते हैं.
उनका कहना है कि अनिश्चित मौसम, अनिश्चित बाज़ार और कर्ज़ का दबाव किसानों पर बहुत भार डाल रहा है जिसकी वजह से किसान पूरी तरह थक चुके हैं.
स्वामीनाथन का मानना है कि जीवन के दूसरे ख़र्चे बढ़ते जा रहे हैं और कृषि से होने वाली आय छोटे किसानों के लिए पर्याप्त नहीं रह गई है.
स्वामीनाथन अब कुछ ऐसा ही करिश्मा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करना चाहते हैं.
एम. एस. स्वामीनाथन उन गिने-चुने लोगो में हैं, जिनके प्रयासो की बदौलत साठ के दशक में कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया.
स्वामीनाथन अब अपना ध्यान सूचना क्रांति को दूर-दराज़ के गांवों तक पहुंचाने में केंद्रित कर रहे हैं.
स्वामीनाथन कहते हैं कि हरित क्रांति से गेंहू और चावल की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिली थी, लेकिन ज्ञान क्रांति का असर हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा.
स्वामीनाथन कहते हैं कि उनके काम में नौकरशाहों का ज़्यादा रोल नहीं है.
एम. एस. स्वामीनाथन कहते हैं कि 1960 के दशक में हरित क्रांति के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब किसानों को बीज और तकनीक दी गई और फिर देखते-देखते क्रांति आ गई.
एम. एस. स्वामीनाथन को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1972 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. एम. एस. स्वामीनाथन को अब तक कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.
एम. एस. स्वामीनाथन ने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए.