आजतक एक चैनल नहीं, एक भरोसा है. आजतक एक धुआं उगलती भठ्ठी नहीं है. न जोर से बजते कर्कश एक आलाप. जीतने की कोशिश में न तोड़ी है मर्यादा, न लांघी है लक्ष्मण रेखा. बंदर के हाथ में तलवार देखकर भले ही क्षणिक मनोरंजन हो जाता हो. लेकिन इससे खत्म नहीं हो जाते अघटित खतरे, अनर्थ की आशंकाएं, इसलिए दीवार के सुराख से हमने नहीं देखा किसी घटना को. न समाचारों के बहुवचन को एक वाक्य तक सीमित किया. हम खबरों के ताने-बाने पर एक-एक धागा सुलझाते रहे. ताकि सच के चादर में गांठें न हों. इसलिए जहां सच है, वहां है आजतक.