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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: 53 साल के रेप के दोषी को नाबालिग मानकर सुनाई जाएगी सजा, जानिए क्या है तर्क

ये मामला बताता है कि नाबालिग होने का दावा समय की कोई सीमा नहीं देखता. चाहे कितने साल बीत जाएं या आरोपी की उम्र अब कितनी भी हो, यह दावा मान्य है. यह केस इस बात को मजबूत करता है कि नाबालिगों के साथ अलग तरह से व्यवहार करना चाहिए, भले ही अपराध कितना भी गंभीर हो. साथ ही यह भी दिखाता है कि जुवेनाइल जस्टिस कानून पुराने मामलों पर भी लागू हो सकते हैं. 

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 In 2025, the accused appealed to the Supreme Court, raising a plea of juvenility (Photo: Hemant Chawla/India Today)
In 2025, the accused appealed to the Supreme Court, raising a plea of juvenility (Photo: Hemant Chawla/India Today)

सुप्रीम कोर्ट ने एक चौंकाने वाला फैसला सुनाया है. इसमें 1988 में एक नाबालिग लड़की से रेप के दोषी 53 साल के व्यक्ति को अब नाबालिग के तौर पर सजा दी जाएगी. ये मामला राजस्थान के अजमेर का है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस व्यक्ति को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजे बोर्ड) के सामने पेश किया जाए जहां उसे सजा मिलेगी. आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि यह फैसला क्यों लिया गया और इसके पीछे भारत के जुवेनाइल जस्टिस कानून कैसे काम करते हैं.  

क्या है मामला?

साल 1988 में राजस्थान के एक व्यक्ति पर नाबालिग से रेप का आरोप लगा था. निचली अदालत ने उसे सात साल की कठोर जेल की सजा सुनाई थी. फिर साल 2024 में राजस्थान हाई कोर्ट ने भी इस सजा को सही ठहराया. लेकिन 2025 में इस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और दावा किया कि जब उसने अपराध किया था, तब वो सिर्फ 16 साल का था. उसने अपने स्कूल के रिकॉर्ड दिखाए, जिनमें उसकी जन्मतिथि 1 जुलाई 1972 दर्ज थी. यानी अपराध के समय वह 18 साल से कम उम्र का था, मतलब नाबालिग.  

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष का केस मजबूत था. पीड़िता का बयान, गवाहों की बातें और मेडिकल सबूत इसकी पुष्टि करते थे. लेकिन स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर कोर्ट ने माना कि अपराध के समय आरोपी नाबालिग था. बता दें कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत स्कूल रिकॉर्ड को पक्का सबूत माना जाता है. राजस्थान सरकार के वकील ने इसका विरोध किया और कहा कि इतने साल बाद नाबालिग होने का दावा नहीं मानना चाहिए लेकिन कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों का हवाला दिया कि नाबालिग होने का दावा कभी भी उठाया जा सकता है, चाहे केस खत्म होने के बाद ही क्यों न हो.  इसलिए, कोर्ट ने पुरानी सजा को रद्द कर दिया, क्योंकि जुवेनाइल जस्टिस कानून के तहत यह सजा सही नहीं थी. 

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कोर्ट ने जेजे बोर्ड को आदेश दिया कि वह इस मामले में सही फैसला ले. अब जेजे बोर्ड इस व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा तीन साल के लिए स्पेशल होम भेज सकता है, जैसा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में लिखा है. 

जुवेनाइल जस्टिस कानून क्या कहता है?

जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 के मुताबिक 18 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति नाबालिग है.  
नाबालिगों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है, न कि आम अदालतों में.  
उन्हें उम्रकैद या फांसी जैसी सजा नहीं दी जा सकती.  
उनके लिए सुधार पर ध्यान दिया जाता है, जैसे काउंसलिंग या ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक जुवेनाइल होम में रखना.

बता दें कि 1988 में जब यह अपराध हुआ तब जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 1986 लागू था. उसमें लड़कों के लिए नाबालिग की उम्र 16 साल और लड़कियों के लिए 18 साल थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के कानून को लागू किया जिसमें सभी बच्चों के लिए नाबालिग की उम्र 18 साल है, क्योंकि यह ज्यादा फायदेमंद है.  

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