संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2050 तक 35 करोड़ बच्चे होंगे तथा उनके कल्याण और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए देश को जलवायु की गंभीर स्थिति और पर्यावरणीय खतरे जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना होगा.
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत में अभी की तुलना में बच्चों की संख्या में 10.6 करोड़ की कमी आएगी, लेकिन फिर भी यह चीन, नाइजीरिया और पाकिस्तान के साथ वैश्विक बाल आबादी के 15 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करेगा.
यूनिसेफ की ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024’ रिपोर्ट बुधवार को दिल्ली में जारी की गई जिसका शीर्षक ‘द फ्यूचर ऑफ चिल्ड्रन इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ है. इसमें तीन वैश्विक प्रवृत्तियों- जनसांख्यिकीय बदलाव, जलवायु संकट और अग्रणी प्रौद्योगिकियों को रेखांकित किया गया है, जो 2050 तक बच्चों के जीवन को नया आकार देने में भूमिका निभा सकती हैं.
2050 तक गंभीर होगीं चुनौतियां
यह रिपोर्ट यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्रे ने द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) की सुरुचि भड़वाल और यूनिसेफ यूथ एडवोकेट कार्तिक वर्मा के साथ जारी की. पीटीआई के मुताबिक, रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 के दशक तक, बच्चों को गंभीर जलवायु और पर्यावरणीय खतरों का सामना करना पड़ेगा और 2000 के दशक की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक बच्चों के अत्यधिक गर्मी के प्रकोप का सामना करने की संभावना है.
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रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु और पर्यावरणीय संकट में यह वृद्धि इस तथ्य से और भी जटिल हो जाती है कि और अधिक बच्चे निम्न आय वाले देशों में, खासकर अफ्रीका में रह रहे होंगे जिनकी व्याख्या ऐसे देशों के रूप में की जा सकती है जहां इन चुनौतियों से निपटने के संसाधन सीमित हो सकते हैं.
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत में जहां 2050 तक 35 करोड़ बच्चे होने का अनुमान है और उसे उन बच्चों के कल्याण और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना होगा. मैककैफ्रे ने कहा, ‘आज लिए गए निर्णय हमारे बच्चों को विरासत में मिलने वाली दुनिया को आकार देंगे. बच्चों और उनके अधिकारों को रणनीतियों तथा नीतियों के केंद्र में रखना एक समृद्ध, टिकाऊ भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है.’
रिपोर्ट में AI का भी जिक्र
दुनिया भर में लगभग एक अरब बच्चे पहले से ही उच्च जोखिम वाले जलवायु खतरों का सामना कर रहे हैं और बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत 26वें स्थान पर है. रिपोर्ट में पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है कि जलवायु संकट बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा पर तथा पानी जैसे आवश्यक संसाधनों तक उनकी पहुंच पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी प्रौद्योगिकियां बच्चों के लिए अच्छी और बुरी दोनों तरह की हो सकती हैं. हालांकि, डिजिटल विभाजन काफी गहरा है. निम्न आय वाले देशों में केवल 26 प्रतिशत लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में 95 प्रतिशत से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हैं.
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रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और टिकाऊ शहरी अवसंरचना में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी. साल 2050 तक भारत की करीब आधी आबादी के शहरी क्षेत्रों में रहने का अनुमान है जिससे बच्चों के लिहाज से अनुकूल और जलवायु परिवर्तन के लिहाज से जुझारू शहरी नियोजन की जरूरत होगी.