हैदराबाद से सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय श्रेष्ठता के सिद्धांत को बरकरार रखा है. अदालतें ये तय नहीं कर सकतीं कि कौन किस कानून के तहत शादी करेगा.
ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "मेरा धर्म और अंतरआत्मा कहती है कि शादी सिर्फ महिला और पुरुष के बीच होती है. ये किसी चीज को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने की बात नहीं है. ये विवाह नामक संस्था को पहचान देने की बात है. ये बात सही है कि राज्य हर किसी या सभी को ये अधिकार नहीं दे सकता."
उन्होंने कहा कि मैं बेंच की उस टिप्पणी से चिंतित हूं कि ट्रांसजेंडर लोग स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकते हैं. ओवैसी ने आगे कहा, जहां तक इस्लाम का सवाल है तो यह सही व्याख्या नहीं है क्योंकि इस्लाम दो बायोलॉजिकल पुरुष या दो बायोलॉजिकल महिलाओं के बीच विवाह को मान्यता नहीं देता है.
सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली समलैंगिक शादी को वैधता, अब संसद के पाले में गेंद
AIMIM चीफ ने लिखा, मैं जस्टिस भट से सहमत हूं कि "स्पेशल मैरिज एक्ट की जेंडर न्यूट्रल व्याख्या कभी-कभी न्यायसंगत नहीं हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को अनपेक्षित तरीके से कमजोरियों का सामना करना पड़ सकता है.
सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया फैसला?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सेम सेक्स मैरिज पर अपना फैसला सुनाया. याचिकाकर्ताओं ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम सेक्स मैरिज को भी वैध बनाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे मान्यता देने इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने शादी को मौलिक अधिकार की श्रेणी से बाहर माना. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकों के संबंधों को वैध करने का आदेश सरकार को नहीं दिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि सरकार चाहे तो समलैंगिकों की चिंताओं पर विचार करने के लिए समिति बना सकती है.