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पान मसाला और तंबाकू अलग-अलग क्यों बिकते हैं? सुप्रीम कोर्ट में खुला राज! 

सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार द्वारा पान मसाला और तंबाकू पर अस्थायी रोक लगाने को लेकर सुनवाई हुई. बहस के दौरान खुलासा हुआ कि कानून की पकड़ से बचने के लिए दोनों अलग-अलग पैक करके बेचे जाते हैं.

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सांकेतिक फोटो
सांकेतिक फोटो

पान मसाला और तंबाकू को अलग-अलग बेचने का राज सुप्रीम कोर्ट में खुल गया. कोर्ट में बहस के दौरान खुलासा हुआ कि कानून की पकड़ से बचने के लिए दोनों अलग-अलग पैक करके बेचे जाते हैं. उसके बाद पुड़िया खुलती है, मिक्स होती है और चबाने वाली की सेहत खराब करते हैं. पान मसाला और तंबाकू मिक्स होने के बाद ये गुटखा हो जाता है, जोकि मुंह में कैंसर की वजह बन सकती है. 

तमिलनाडु में इसकी बिक्री पर पाबंदी पर रोक की अधिसूचना को चुनौती देने वाले उत्पादकों की याचिका पर बहस के दौरान दिलचस्प दलीलें सामने आईं. गुटखा पर पाबंदी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि आप कोई अमृत नहीं बेच रहे हैं. गुटखा बिक्री पर स्थायी पाबंदी क्यों नहीं लगाते? तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने इस पर कहा कि नहीं लगा सकते क्योंकि निर्माता कंपनियां पान मसाला और गुटखा अलग-अलग पाउच में बेचती हैं.  

लोग अलग-अलग पाउच खरीदते हैं और मिलाकर गुटखा बना लेते हैं. अब आप ही बताइए कि तंबाकू और पान मसाले की खरीद-फरोख्त पर कैसे पाबंदी लगाई जाए? दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया, जिसमें गुटखा, पान-मसाला, चबाने वाली तंबाकू जैसे उत्पाद की खरीद फरोख्त पर पाबंदी लगा दी थी. मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा कि हर साल ऐसी अधिसूचना जारी करने के बजाए स्थायी रूप से पाबंदी क्यों नहीं लगा देते? ये कोई अमृत थोड़े ही है. 

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तमिलनाडु सरकार की ओर से जनवरी में खाद्य सुरक्षा आयुक्त की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया गया था, जिसमें जन स्वास्थ्य के मद्देनजर ये पाबंदी लगाई गई थी. पान मसाला और गुटखा उत्पादक मद्रास हाई कोर्ट गए. हाई कोर्ट ने आदेश को दरकिनार कर दिया क्योंकि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट और सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स (एडवरटाइजमेंट एंड रेगुलेशन ऑफ ट्रेड एंड कॉमर्स सप्लाई एंड डिस्ट्रीब्यूशन) एक्ट के मुताबिक भी सिगरेट और चबाने लायक सुगंधित तंबाकू के बिना फोटो चेतावनी वाले विज्ञापन पर तो पाबंदी तो सही है, लेकिन बिक्री पर पूर्ण पाबंदी नहीं लगाई जा सकती.  

तमिलनाडु ने 2013 में लगाई थी अस्थायी तौर पर पाबंदी 

राज्य सरकार ने 2013 में अस्थायी तौर पर पाबंदी लगाई थी. हर साल सरकार इसे साल भर के लिए एक्सटेंड करती है. फिर वही कोर्ट कचहरी की कवायद होती है. गुटखा निर्माताओं की ओर से सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही इनकी खरीद बिक्री पर अस्थायी पाबंदी लगाई जा सकती है. कंप्लीट बैन यानी पूर्ण पाबंदी मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क के तहत नहीं हो सकती, ये अधिसूचना उसके बाहर है.  

सिंघवी बोले- अधिसूचना हो चुकी बेअसर 

पान मसाला, गुटखा और तंबाकू उत्पाद के एक अन्य निर्माता और पक्षकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि 2006 के उस एक्ट पर आधारित अधिसूचना तो वर्षों पहले ही कब की बेअसर हो चुकी है. अब उसके आधार पर हर साल पाबंदी की अधिसूचना जारी करना स्वीकार्य नहीं है. इस पर तमिलनाडु सरकार के वकील ने जवाब दिया कि हर साल यही दलीलें देना भी तो उचित नहीं है क्योंकि ये उत्पाद साल बीतने के बाद भी जनता की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक हैं. क्या साल बीतने के बाद उत्पादों के सेवन से कैंसर का खतरा भी खत्म हो जाता या टल जाता है? ये कैसी दलील दी जा रही है? 

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हाई कोर्ट ने गुटखा को तंबाकू नहीं माना 

जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि आप सीधे नहीं कर पा रहे तो घुमा-फिरा कर पाबंदी लगा रहे हैं! सिब्बल ने कहा कि हाई कोर्ट ने इसे फूड प्रोडक्ट माना है तो हमने एफएसए के तहत इसे नियमित किया है. इस पर वैद्यनाथन ने फिर दलील दी कि हाई कोर्ट ने गुटखा को खाद्य का उपादान माना है लेकिन तंबाकू नहीं. सिब्बल ने अपील की कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को इस अधिकार और छूट का आदेश पारित कर दे कि राज्य में पान मसाला और तंबाकू अलग-अलग बेचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है. लेकिन सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि FSA की धारा 30(2)(a) के मुताबिक ये पाबंदी सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही मान्य है.  

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में तंबाकू उत्पादों पर लगाया था बैन 

सिब्बल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय साल 2016 में राज्य में तंबाकू उत्पाद पर बैन का आदेश जारी कर चुकी है. हम नहीं चाहते कि हाई कोर्ट उस आदेश की राह में रोड़े अटकाए. हालांकि पीठ ने इतने वाद विवाद और संवाद के बाद भी कोई आदेश पारित नहीं किया, अब इस मामले पर 18 अप्रैल की सुबह ही पहले मुकदमे के तौर पर सुनवाई जरूर तय कर दी. 

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