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'फोन की बैटरी खत्म ना हो जाए...', भीमा कोरेगांव केस के दो आरोपियों को 5 साल बाद जमानत, कोर्ट ने रखीं ये शर्तें

कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जमानत दे दी. दोनों पांच साल से हिरासत में थे. कार्यकर्ताओं ने उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से संबंधित है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उनकी पांच साल की लंबी हिरासत को देखते हुए दिया. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि गोंसाल्वेस और फरेरा महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगे और अपने पासपोर्ट पुलिस को सौंप देंगे. इसने दोनों कार्यकर्ताओं को एक-एक मोबाइल का उपयोग करने और मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को अपना पता बताने का भी निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणी
बता दें कि एल्गार परिषद साजिश मामले में आरोपी दो कार्यकर्ताओं वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा  दोनों गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत कथित अपराधों के लिए अगस्त 2018 से जेल में बंद थे.  जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि हालांकि दोनों के खिलाफ आरोप गंभीर थे, लेकिन यह अकेले जमानत से इनकार करने का कारण नहीं हो सकता है, खासकर जब मामले में मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है.

जमानत के लिए लगाई गईं कड़ी शर्तें
अदालत ने यह भी कहा कि दोनों आरोपी अन्य आपराधिक मामलों का भी सामना कर रहे हैं, गोंजाल्विस को यूएपीए और विस्फोटक अधिनियम के तहत आरोपों के लिए स्पेशल कोर्ट द्वारा पिछले मामले में दोषी ठहराया गया था. अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने जमानत के लिए कड़ी शर्तें भी लगाई हैं. गोंजाल्विस और फरेरा को ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना महाराष्ट्र छोड़ने की अनुमति नहीं है. उन्हें अपना पासपोर्ट सरेंडर करना होगा और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को अपने पते और मोबाइल फोन नंबर की जानकारी देनी होगी.

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लोकेशन ट्रैक होने और एक मोबाइल कनेक्शन की शर्त रखी
उन्हें अपनी जमानत की अवधि के दौरान केवल एक मोबाइल कनेक्शन का उपयोग करने तक भी प्रतिबंधित किया गया है. अदालत ने निर्देश दिया कि गोंसाल्वेस और फरेरा के फोन को एनआईए जांच अधिकारी के डिवाइस के साथ जोड़ा जाए ताकि हर समय उनके स्थानों को ट्रैक किया जा सके.

"यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैटरी खत्म न हो जाए, उनके फोन को चौबीसों घंटे चार्ज रहना चाहिए. यदि इन शर्तों का कोई उल्लंघन होता है, या गवाहों को धमकाने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अभियोजन पक्ष को जमानत रद्द करने की मांग करने का अधिकार है." बेंच ने अपने फैसले में कहा.

मुकदमा अभी तक शुरू नहीं होने के बावजूद, आरोपी को लगभग पांच साल की कैद के बाद यह फैसला आया है. अदालत ने हिरासत में बिताए गए समय की अवधि को ध्यान में रखा, साथ ही इस तथ्य पर भी विचार किया कि आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं.

मामले में अभियोजन पक्ष ने 5,000 पन्नों से अधिक का आरोपपत्र दायर किया है और लगभग 200 गवाहों के नाम बताए हैं. इस मामले में सोलह लोगों को आरोपी बनाया गया है और वे दो से लेकर लगभग पांच साल तक न्यायिक हिरासत में रह चुके हैं.

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इन पांच शर्तों पर मिली है जमानत
पासपोर्ट करना होगा सरेंडर
सही पता और मोबाइल देना होगा
महाराष्ट्र छोड़ने की अनुमति नहीं
केवल एक मोबाइल यूज करने की अनुमति
लोकेशन ट्रैक के लिए 24 घंटे मोबाइल चार्ज रखना जरूरी

31 दिसंबर 2017 एल्गार परिषद से जुड़ा है मामला
कार्यकर्ताओं ने उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से संबंधित है, जिसे पुणे पुलिस के अनुसार माओवादियों की ओर से फंड किया गया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि वहां दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हिंसा हुई थी.

बता दें कि 31 दिसंबर, 2017 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पेशवाओं पर महार रेजिमेंट की जीत के 200 साल पूरे हुए थे. इसी उपलक्ष्य में पुणे के शनिवारवाड़ा में यल्गार परिषद ने जश्न मनाने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस जश्न के अगले ही दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई थी. 

एल्गार परिषद की रैली 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवार वाडा में आयोजित की गई थी. इस मौके पर कबीर कला मंच के बैनर तले नाटक, गीतों के आयोजन के साथ नक्सल साहित्य बांटा गया जो सीपीआई माओवादी से मिला था पुलिस के मुताबिक इस आयोजन का मकसद महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में गड़बड़ी फैलाना था.

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