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इलेक्टोरल बॉन्ड हुआ रद्द, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार तलाश रही है नए विकल्प

सूत्रों के अनुसार इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार विकल्प तलाश रही है. Electoral Bond की सुविधा बंद होने से आगामी चुनाव में काला धन का बोलबाला बढ़ सकता है. चुनावों में कालाधन का इस्तेमाल न हो इसी मकसद से सरकार इलेक्टोरल बांड लेकर आई थी.

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Electoral Bond
Electoral Bond

सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड को बंद करने का निर्देश दिया.

शुरू होने के साथ ही सवालों के घेरे में थी चुनावी बॉन्ड योजना
बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना के शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने जब इसे असंवैधानिक करार दिया है तो चर्चा है कि, अब सरकार इसके लिए विकल्प की तलाश कर रही है. 

सूत्रों के अनुसार इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार विकल्प तलाश रही है. Electoral Bond की सुविधा बंद होने से आगामी चुनाव में काला धन का बोलबाला बढ़ सकता है. चुनावों में कालाधन का इस्तेमाल न हो इसी मकसद से सरकार इलेक्टोरल बांड लेकर आई थी.

क्या कहता है Banking Act
Banking Act के तहत ग्राहक की पहचान जाहिर करना Breach of Trust का मुद्दा है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बैंक को पहचान जाहिर करनी पड़ेगी. हालांकि तुरंत डोनर की लिस्ट पब्लिश करना आसान नहीं होगा. इलेक्टोरल रिफॉर्म की दिशा में इलेक्टोरल बांड एक सकारात्मक कदम है. 

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2018 में आई थी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 2018 में लाया गया था. हालांकि, 2019 में ही इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई थी. तीन याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम के खिलाफ याचिका दायर की थी. वहीं, केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा था कि इससे सिर्फ वैध धन ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है. साथ ही सरकार ने गोपनीयता पर दलील दी थी कि डोनर की पहचान छिपाने का मकसद उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिशोध से बचाना है.

अब क्या हैं विकल्प? 
जब चुनावी बॉन्ड नहीं होते थे, तब पार्टियों को चेक से चंदा दिया जाता था. चंदा देने वाले का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों को चुनाव आयोग को देनी होती थी. वहीं, लगभग चार दशक पहले पार्टियों के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और लोगों से चंदा वसूलते थे. इलेक्टोरल बॉन्ड रद्द हो जाने के बाद पार्टियों के पास और भी रास्ते हैं जहां से वो कमाई कर सकतीं हैं. इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है. इसके अलावा कॉर्पोरेट डोनेशन से भी पार्टियों की कमाई होती है. इसमें बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं.

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महंगे होते जा रहे चुनाव 
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सात राष्ट्रीय पार्टियों को साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड मिला था. इन पार्टियों ने दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया था. 2019 में बीजेपी को 4,057 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी. इसमें से उसने 1,142 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि, कांग्रेस को 1,167 करोड़ रुपये का फंड मिला था, जिसमें से उसने 626 करोड़ रुपये खर्च किए थे
 

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