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'आलोचनाओं को नजरअंदाज करना चाहिए...', सोशल मीडिया ट्रोल्स पर बोले कर्नाटक HC के जज

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस सेंथिलकुमार ने कहा कि सोशल मीडिया पर कोई भी सुरक्षित नहीं है, यहां तक कि जज भी आलोचना का शिकार होते हैं. फैशन डिजाइनर जॉय क्रिसेल्डा बनाम शेफ रंगराज के मामले में जस्टिस ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत हमलों और टिप्पणियों को अनदेखा करना ही उचित है.

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कर्नाटक हाईकोर्ट में एक डिजाइनर ने मानहानि याचिका दायर की थी. (सांकेतिक तस्वीर)
कर्नाटक हाईकोर्ट में एक डिजाइनर ने मानहानि याचिका दायर की थी. (सांकेतिक तस्वीर)

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस सेंथिलकुमार ने सोशल मीडिया पर बढ़ती आलोचना पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि आज के समय में सोशल मीडिया पर कोई भी सुरक्षित नहीं है. लोग बिना किसी अपवाद के सभी की आलोचना करते हैं. यहां तक कि जज भी अपनी न्यायिक आदेशों के कारण निशाने पर आते हैं. जस्टिस सेंथिलकुमार ने स्पष्ट किया कि ऐसी आलोचनाओं को अनदेखा करना ही सही है.

यह बयान मद्रास हाई कोर्ट में फैशन डिजाइनर जॉय क्रिसेल्डा और शेफ माथमपट्टी रंगराज के मामले की सुनवाई के दौरान आया. जॉय क्रिसेल्डा ने अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने शेफ रंगराज को सोशल मीडिया पर मानहानि संबंधी सामग्री पोस्ट करने से रोकने की मांग की थी. जॉय का आरोप था कि रंगराज ने उनके साथ शादी के बाद धोखा किया.

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सुनवाई के दौरान जस्टिस सेंथिलकुमार ने कहा, "सोशल मीडिया पर लोग किसी को नहीं छोड़ते. जज भी उनके आदेश देने के कारण आलोचना का शिकार होते हैं. व्यक्तिगत हमले किए जाते हैं, जिनमें परिवार के सदस्य और पुराने घटनाक्रम शामिल होते हैं. ऐसी टिप्पणियों को नजरअंदाज करना चाहिए और अनदेखा करना ही उचित है."

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अदालत ने सोशल मीडिया आलोचना पर क्या सुझाव दिया?

अदालत में यह मामला सोशल मीडिया पर बढ़ती मानहानि और आलोचना की गंभीरता को उजागर करता है. जस्टिस सेंथिलकुमार का बयान यह दर्शाता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आलोचना और ट्रोलिंग की समस्या गंभीर है. उनका मानना है कि पेशेवर और न्यायिक क्षेत्र के लोग ऐसी आलोचनाओं को व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए.

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न्यायिक प्रक्रिया और व्यक्तिगत जीवन को अलग रखना जरूरी

सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति, चाहे वह आम नागरिक हो या जज, आलोचना का सामना करता है. हालांकि, जस्टिस सेंथिलकुमार ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे व्यक्तिगत हमलों और नकारात्मक टिप्पणियों का प्रभाव कामकाज और निर्णय प्रक्रिया पर नहीं पड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि समाज में न्यायिक प्रक्रिया और व्यक्तिगत जीवन को अलग रखना जरूरी है.

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