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कभी राजीव गांधी तो कभी मनमोहन के सलाहकार रहे सैम पित्रोदा, 5 मौकों पर बन गए कांग्रेस के लिए मुसीबत

भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की रंगभेदी तुलना करने से पहले उन्होंने विरासत टैक्स को लेकर भी बयान दिया था. कांग्रेस के सत्ता में आने पर आर्थिक सर्वे कराने के राहुल गांधी के बयान पर पित्रोदा ने अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र किया था.

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सैम पित्रोदा
सैम पित्रोदा

भारत में रंगभेद को लेकर दिए गए अपने बयान पर घिरे सैम पित्रोदा ने इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा जरूर दे दिया है. लेकिन उनके इस बयान पर विवाद अभी भी बना हुआ है. हालांकि, ये उनका पहला बयान नहीं है, जिस पर विवाद हुआ है. वह इससे पहले भी ऐसी कई बयानबाजियां कर चुके हैं, जिन्होंने राजनीतिक घमासान मचा दिया.   

भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की रंगभेदी तुलना करने से पहले उन्होंने विरासत टैक्स को लेकर भी बयान दिया था. कांग्रेस के सत्ता में आने पर आर्थिक सर्वे कराने के राहुल गांधी के बयान पर पित्रोदा ने अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र किया था.

जब विरासत टैक्स का छोड़ा था शिगूफा

पित्रोदा ने कहा था कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है. अगर किसी शख्स के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है. उसके मरने के बाद 45 फीसदी संपत्ति उसके बच्चों को ट्रांसफर हो जाती है जबकि 55 फीसदी संपत्ति पर सरकार का मालिकाना हक हो जाता है. 

उन्होंने कहा था कि ये बहुत ही रोचक कानून है. इसके तहत प्रावधान है कि आपने अपने जीवन में खूब संपत्ति बनाई है और आपके जाने के बाद आपको अपनी संपत्ति जनता के लिए छोड़नी चाहिए. पूरी संपत्ति नहीं बल्कि आधी, जो मुझे सही लगता है. लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है. यहां अगर किसी के पास 10 अरब रुपये की संपत्ति है. उसके मरने के बाद उनके बच्चों को सारी की सारी संपत्ति मिल जाती है, जनता के लिए कुछ नहीं बचता. मुझे लगता है कि इस तरह के मुद्दों पर लोगों को चर्चा करनी चाहिए. मुझे नहीं पता कि इस चर्चा का निचोड़ क्या निकलेगा. हम नई नीतियों और नए प्रोग्राम की बात कर रहे हैं, जो लोगों के हित में हो ना कि सिर्फ अमीरों के हित में हो. मालूम हो कि पित्रोदा के इस बयान पर खूब विवाद हुआ था. 

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'1984 दंगा हुआ तो हुआ'

सैम पित्रोदा ने 2019 में पिछले लोकसभा चुनाव में 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर एक बयान दिया था. बीजेपी के इन आरोपों पर कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर सिख दंगे हुए थे. पित्रोदा ने इसे झूठ बताते हुए कहा था कि अब क्या है, 84 का? आपने क्या किया 5 साल में, उसकी बात करिए. 1984 में हुआ तो हुआ. 

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान उनके 'हुआ तो हुआ' बयान पर खूब हंगामा मचा था. पीएम मोदी ने फरवरी 2024 में संसद के भीतर कहा था कि कांग्रेस पार्टी के एक मार्गदर्शक अमेरिका में बैठे हैं, जो अपने हुआ तो हुआ बयान से लोकप्रिय हुए हैं. कांग्रेस परिवार उनके बेहद नजदीक है. 

'मिडिल क्लास स्वार्थी नहीं बने'

सैम पित्रोदा ने ऐसा ही एक और विवादित बयान अप्रैल 2019 में भी दिया था. उन्होंने टीवी इंटरव्यू के दौरान कहा था कि देश के मिडिल क्लास को स्वार्थी नहीं बनना चाहिए और उन्हें पार्टी की प्रस्तावित न्याय योजना को फंड करने के लिए अधिक से अधिक टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए.

पित्रोदा ने कहा था कि मिडिल क्लास को अधिक अवसर और रोजगार मिलेंगे. अगर न्याय योजना को अमल में लाया जाता है तो इससे मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ बढ़ सकता है. ऐसे में मिडिल क्लास को स्वार्थी नहीं बनना चाहिए. उनके इस बयान से बहुत विवाद खड़ा हुआ था और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को डैमेज कंट्रोल में जुटना पड़ना था. 

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'पुलवामा जैसे हमले होते रहते हैं'

पुलवामा हमले के जवाब में फरवरी 2019 में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी. लेकिन पित्रोदा ने इस एयरस्ट्राइक पर भारत सरकार के दावों पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि पुलवामा जैसे हमले होते रहते हैं. मैं इन हमलों के बारे में ज्यादा नहीं जानता. ये हर समय होते रहते हैं. मुंबई में भी हमला हुआ था. हमने इस पर प्रतिक्रिया दे सकते थे और हमारे प्लेन भेज सकते थे लेकिन ये सही तरीका नहीं है. मेरे अनुसार आप वैश्विक समस्याओं से ऐसे डील नहीं कर सकते.

साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि कुछ मुट्ठीभर लोगों के हमले की वजह से पाकिस्तान के सभी नागरिकों को जिम्मेदार ठहराना गलत है. उन्होंने भारत सरकार से बालाकोट एयस्ट्राइक ऑपरेशन के सबूत भी मांगे थे.

'मंदिरों से रोजगार नहीं मिलता'

जून 2023 में सैम पित्रोदा के एक और बयान से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था. उन्होंने कहा था कि मंदिरों से बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी भारत की समस्याओं का हल नहीं होगा. हमारे देश में बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसी समस्याएं हैं. इनके बारे में कोई बात नहीं करता. लेकि नहर कोई राम, हनुमान और मंदिर की बात करते हैं. मैंने पहले भी कहा है कि मंदिरों के निर्माण से आपको रोजगार नहीं मिलेगा. पित्रोदा ने ये बयान अमेरिका में राहुल गांधी की मौजूदगी में दिया था. 

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कौन हैं सैम पित्रोदा?

सैम पित्रोदा का पूरा नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा है. उनकी पहचान टेलीकॉम इन्वेंटर और एंटरप्रेन्योर के तौर पर है. वो लगभग पचास साल से टेलीकॉम और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं. भारत के ओडिशा के तितिलागढ़ के गुजराती परिवार में 1942 में उनका जन्म हुआ था. सात भाई-बहनों में पित्रोदा तीसरे नंबर पर हैं.

गुजरात के एक बोर्डिंग स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वड़ोदरा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी से फिजिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर्स डिग्री ली. आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए. 1964 में शिकागो के इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उन्होंने फिजिक्स में मास्टर्स डिग्री हासिल की.

इलेक्ट्रॉनिक डायरी के आविष्कार के जनक

वह पढ़ाई पूरी करने के बाद 1965 में वो टेलीकॉम इंडस्ट्री से जुड़ गए. 1975 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक डायरी का आविष्कार किया था. ये उनका पहला पेटेंट था. अपने करियर में उन्होंने कई पेटेंट दाखिल किए. उन्होंने मोबाइल फोन पर बेस्ट ट्रांजेक्शन टेक्नोलॉजी का पेटेंट भी दायर किया था. 

इंदिरा गांधी के कहने पर भारत लौटे थे पित्रोदा

पित्रोदा का परिवार गांधीवादी रहा है. कांग्रेस से उनकी नजदीकियां भी रही थीं. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम पित्रोदा को भारत लौटने को कहा. इंदिरा गांधी के कहने पर वो भारत लौट आए. भारत की नागरिकता लेने के लिए उन्होंने अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी थी. क्योंकि भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है. 

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जब पित्रोदा राजीव गांधी के बने सलाहकार

भारत लौटने के बाद 1984 में ही उन्होंने टेलीकॉम पर काम करने वाली एक स्वायत्त संस्था सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स की शुरुआत की. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तो पित्रोदा उनके सलाहकार बन गए. 1987 में राजीव गांधी ने उन्हें टेलीकॉम, वॉटर, शिक्षा और डेयरी समेत छह टेक्नोलॉजी मिशन का हेड नियुक्त किया गया. भारत की इन्फॉर्मेशन इंडस्ट्री में बदलाव करने के लिए उन्होंने राजीव गांधी के साथ मिलकर कई सालों तक काम किया. उनका काम भारत के हर कोने तक डिजिटल टेलिकॉम का विस्तार करना था. 

1990 के दशक में अमेरिका लौट गए

भारत में कई सालों तक काम करने के बाद 1990 के दशक में पित्रोदा वापस अमेरिका लौट आए. यहां शिकागो में रहते हुए उन्होंने कई कंपनियां शुरू कीं. मई 1995 में वो इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन WorldTel इनिशिएटिव के पहले चेयरमैन बने.

2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में UPA सरकार बनी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पित्रोदा को नेशनल नॉलेज कमीशन का अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित किया. मनमोहन सिंह के न्योते पर पित्रोदा दोबारा भारत लौटे. 2005 से 2009 तक पित्रोदा नेशनल नॉलेज कमीशन के अध्यक्ष रहे.

2009 के चुनाव के बाद यूपीए सरकार जब दोबारा सत्ता में आई तो अक्टूबर 2009 में उन्हें मनमोहन सिंह का सलाहकार नियुक्त किया गया. इसके साथ ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया.

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100 से ज्यादा पेटेंट्स कर चुके हैं दाखिल

सैम पित्रोदा की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, वो इंडिया फूड बैंक, द ग्लोबल नॉलेज इनिशिएटिव और द इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसडिसिप्लीनरी हेल्थ जैसे पांच एनजीओ भी शुरू कर चुके हैं. 

इसके अलावा वो यूनाइटेड नेशंस ब्रॉडबैंड कमीशन फॉर डिजिटल डेवलपमेंट के फाउंडिंग कमिश्नर भी रहे हैं. पित्रोदा इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के एम-पावरिंग डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, जिसका काम विकासशील देशों में मोबाइल टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना है.

उन्होंने अमेरिका में कई कंपनियां शुरू की हैं. इसके साथ ही उन्होंने दुनियाभर में 100 से ज्यादा पेटेंट्स दाखिल किए हैं. वह पांच किताबें भी अब तक लिख चुके हैं. फिलहाल सैम पित्रोदा शिकागो के इलिनोइस में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं.

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