प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का दावा है कि किसानों को कम प्रीमियम पर ज्यादा मुआवजा दिया जा रहा है. लेकिन जब आंकड़ों की पड़ताल की जाती है तो तस्वीर कुछ और ही निकलती है. असली फायदा किसानों का नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों का हो रहा है. इसी बारे में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में कहा कि 2016 से अब तक किसानों ने करीब 36 हज़ार करोड़ का प्रीमियम दिया, जबकि 1.83 लाख करोड़ रुपये क्लेम के तौर पर बांटे गए. पहली नज़र में यह बयान किसान हितैषी लगता है, लेकिन असलियत इससे अलग है.
कंपनियों की बल्ले-बल्ले
पूरा खेल प्रीमियम के तीन हिस्सों किसान, राज्य और केंद्र सरकार का है. चौहान ने सिर्फ किसानों के हिस्से का जिक्र किया, जबकि बाकी रकम का जिक्र गायब रहा. दरअसल योजना शुरू होने के बाद से बीमा कंपनियों ने 2.56 लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम लिया और सिर्फ 1.81 लाख करोड़ रुपये क्लेम के तौर पर लौटाया. यानी करीब 75 हज़ार करोड़ रुपये का फायदा उनकी जेब में गया. सालाना औसत मुनाफा करीब 9,400 करोड़ रुपये है.
सरकार क्यों छुपा रही पूरी तस्वीर?
सवाल ये है कि राज्य और केंद्र सरकार का जो हिस्सा प्रीमियम के रूप में कंपनियों को जाता है, क्या वो भी देश के टैक्सपेयर का पैसा नहीं है? सरकारी विज्ञप्तियों में हमेशा यही दिखाया जाता है कि किसानों ने थोड़ा दिया और बदले में बहुत पाया. लेकिन असली रकम का बड़ा हिस्सा कंपनियों के पास ही ठहर जाता है.
आखिर है क्या कंपनियों का काम?
फसल का नुकसान सरकार का राजस्व और कृषि विभाग ही आकलन करता है. दफ्तर भी ज्यादातर जगहों पर कंपनियों के नहीं मिलते. किसान अपनी परेशानी बताने कहां जाए? एक टोल फ्री नंबर छोड़कर कंपनियों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं दिखती. यानी पूरा सर्वे सरकार करे और मुनाफा कंपनियां खाएं.
अजीबोगरीब शर्तें
किसानों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि 30% तक नुकसान पर उन्हें बीमा का क्लेम ही नहीं मिलता. क्लेम तभी मिलेगा जब नुकसान इससे ज्यादा हो. ऊपर से, किसान हर खेत का अलग प्रीमियम भरते हैं, लेकिन क्लेम खेत के आधार पर नहीं बल्कि गांव या पटवारी मंडल को एक यूनिट मानकर दिया जाता है. यानी किसान ने जितना लगाया, उसका हिसाब नहीं, बल्कि समूह आकलन से कम मुआवजा.
किसान संगठनों की नाराजगी
किसान नेताओं का कहना है कि यह बीमा नहीं, बीमाधड़ी है. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के मुताबिक, अगर 2.56 लाख करोड़ रुपये सरकारें खुद सीधे किसानों को देतीं, तो कहीं ज्यादा राहत मिलती. लेकिन मौजूदा ढांचे में कंपनियां बिना मेहनत के मोटा मुनाफा कमा रही हैं.