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क्या किसान आंदोलन से डर गई सरकार? शीतकालीन सत्र रद्द होने पर विपक्ष ने उठाए सवाल

मुखर होते आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने इस बार शीतकालीन सत्र न कराने का फैसला किया है. अब विपक्ष ये सवाल उठा रहा है कि क्या सरकार दिल्ली की सीमाओं पर डटे पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत अन्य राज्य के किसानों से डर गई है और इसीलिए सत्र नहीं कराया जा रहा है?

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आंदोलन के दौरान एक किसान (फोटो-पीटीआई)
आंदोलन के दौरान एक किसान (फोटो-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी
  • इस बार नहीं होगा संसद का शीतकालीन सत्र
  • सरकार ने सत्र रद्द करने का कारण कोरोना को बताया

देश के किसान सड़कों पर हैं. वो संसद से पास तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं. विपक्ष भी उनकी आवाज बुलंद कर रहा है. मुखर होते इस आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने इस बार शीतकालीन सत्र न बुलाने का फैसला किया है. सरकार के इस कदम पर विपक्ष हमलावर है. वो सरकार के इस फैसले को किसान आंदोलन पर चर्चा के डर का असर बता रहा है. दूसरी ओर सरकार सत्र न बुलाने के पीछे कोरोना को वजह बता रही है.

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है, 'कोरोना महामारी के लिहाज से सर्दी के महीने काफी अहम हैं. हाल ही में कोरोना केस में इजाफा हुआ है, खासकर दिल्ली में. अभी हम दिसंबर के मध्य में हैं और जल्द ही कोरोना वैक्सीन की उम्मीद की जा रही है.'

यानी शीतकालीन सत्र न कराने के पीछे सरकार ने स्पष्ट तौर पर कोरोना महामारी को कारण बताया है. दूसरी ओर विपक्ष के अपने सवाल हैं. कांग्रेस ने कहा है कि जब कोरोना काल में बाकी काम हो रहे हैं तो सत्र क्यों नहीं बुलाया जा सकता है. 

कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस मसले पर ट्वीट करते हुए लिखा है, 'मोदी जी, कोरोना काल में NEET/JEE व IAS की परीक्षाएं संभव हैं. स्कूलों में कक्षाएं, यूनिवर्सिटी में परीक्षाएं संभव हैं. बिहार-बंगाल में चुनावी रैलियां संभव हैं. तो संसद का शीतकालीन सत्र क्यों नहीं? जब संसद में जनता के मुद्दे ही नहीं उठेंगे तो लोकतंत्र का अर्थ ही क्या बचेगा?'

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नहीं की विपक्ष से चर्चा

विपक्ष की तरफ से ये आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि सरकार ने सत्र को रद्द करने का फैसला लेने से पहले चर्चा तक नहीं की है. राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप जयराम रमेश ने बताया कि राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद से इस मसले पर चर्चा नहीं की गई है. 

सरकार के लिए सबसे खतरनाक जगह संसद: शिवसेना

किसान आंदोलन पर पुरजोर तरीके से बीजेपी का विरोध कर रही शिवसेना ने भी संसद का शीत सत्र न बुलाए जाने पर सरकार को घेरा है. पार्टी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, ''भारत सरकार के हिसाब से, चुनाव हो सकते हैं, चुनावी रैली हो सकती हैं, स्कूल खुल सकते हैं, कॉलेज में एग्जाम हो सकते हैं, होटल्स और रेस्त्रां भी खुल सकते हैं, फिटनेस सेंटर भी खुल सकते हैं, लेकिन सिर्फ एक जगह जो सरकार को सबसे ज्यादा खतरनाक लगती है वो है संसद, इसीलिए सत्र नहीं.''

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अकाली ने कहा-जिम्मेदारी से ना भागे सरकार

कृषि कानूनों के मुद्दे पर बीजेपी का साथ छोड़ने वाले अकाली दल ने भी सत्र न होने पर सरकार को उसकी जिम्मेदारी याद दिलाई है. अकाली दल ने सरकार के इस फैसले को सीधे किसान आंदोलन से जोड़ दिया है. कुछ वक्त पहले तक मोदी सरकार में मंत्री रहीं अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा है कि शीतकालीन सत्र रद्द करने का एनडीए सरकार का निर्णय हैरान करने वाला है. हरसिमरत ने अपने ट्वीट में लिखा, 'तीन नफरत भरे कृषि कानून लादकर सरकार को किसानों की शिकायतों का समाधान करने की जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए. सरकार को एक दिन का विशेष संसद सत्र बुलाना चाहिए. निश्चित ही एक दिन के सत्र के लिए एहतियात बरते जाएंगे.'

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उत्तराखंड के किसानों के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर- PTI

विपक्ष भले ही कोरोना काल में एहतियात के साथ सत्र बुलाने की मांग कर रहा हो लेकिन सरकार उसे कोई मौका नहीं देना चाहती. ऐसे समय में जब उसने किसान आंदोलन से निपटने के लिए हर तरफ से जोर लगाया हुआ हो, संसद का सत्र बुलाना धरने पर बैठे किसानों को ही मजबूत करेगा. किसानों का मुद्दा ऐसा है कि पूरा विपक्ष सदन में सरकार के खिलाफ एकजुट हो सकता है. यहां तक कि एनडीए के सहयोगी भी इस मुद्दे पर सरकार के समर्थन में उस तरह नहीं आएंगे जैसा कि वे दूसरे मुद्दों पर आते रहे हैं. इसलिए सत्र भले ही कोरोना की वजह से टाला जा रहा हो सरकार को इसमें राहत ही दिख रही है.

बीजेपी और सरकार अभी किसान आंदोलन से कई मोर्चों पर निबट रही है. वो बिल के समर्थक किसानों को अपने पक्ष में लामबंद कर रही है. खुद पीएम नरेंद्र मोदी विपक्ष पर किसानों को डराने और भड़काने के आरोप लगा रहे हैं. बातचीत का दौर भी जारी है. बीच-बीच में बीजेपी नेता इस आंदोलन पर खालिस्तानी प्रभाव और अल्ट्रा लेफ्ट द्वारा इसे हाईजैक कर लेने के दावे भी करते हैं. सदन में इस तरह की बातें सरकार को सियासी नुकसान करा सकती हैं, इसीलिए अब मामला बजट सत्र तक के लिए टाल दिया गया है. बजट सत्र जनवरी के तीसरे या चौथे हफ्ते में बुलाया जा सकता है तब तक किसानों पर सरकार को समझौते का कोई रास्ता निकलने की उम्मीद है.

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