प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे पर मालदीव सरकार की मंत्री मरियम शिउना और दूसरे नेताओं द्वारा दिए गए आपत्तिजनक बयानों के बाद दोनों देशों में हंगामा मचा हुआ है. सोशल मीडिया पर #ExploreIndianIslands और #BycottMaldives ट्रेंड कर रहा है. मामला तूल पकड़ता देख मालदीव सरकार तुरंत हरकत में आई और विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर सफाई देते हुए बयानों से किनारा किया और बाद में तीन मंत्रियों को सस्पेंड कर दिया.
दरअसल मालदीव में नई सरकार के आने के बाद से ही मालदीव और भारत के संबंधों अनिश्चिता देखी गई है. चीन का पक्ष लेने वाले राष्ट्रपति मुइज्जू ने चुनाव में भारत विरोधी कैंपेन 'इंडिया आउट' का नारा दिया था और जीत हासिल की. वहीं इससे पहले के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की नीति'इंडिया फर्स्ट' की थी. मुइज्जू के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही दोनों देशों में कड़वाहट देखने को मिली है.

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5 लाख है मालदीव की आबादी
मालदीव और भारत के बीच लगभग दो हजार किलोमीटर की दूरी है. भारत ही है जो मालदीव का सबसे करीबी पड़ोसी है. इस द्वीप शृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भाग में दो महत्त्वपूर्ण 'सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन' स्थित हैं मालदीव की आबादी की बात करें तो हिंद महासागर में फैले इस देश की आबादी 5 लाख से कुछ अधिक हैं और यहां 1,000 से अधिक छोटे द्वीप यानि आईसलैंड हैं जहां लोग छुट्टियां मनाने सबसे अधिक जाते हैं. इसका कुल क्षेत्रफल समुद्र सहित लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. मालदीव भौगोलिक रूप से दुनिया के सबसे बिखरे हुए संप्रभु राज्यों में से एक है और सबसे छोटा एशियाई देश है और अधिकतम मुस्लिम आबादी रहती है.
भारत और मालदीव के आपसी संबंधों की बात करें तो दोनों देश प्राचीन समय से ही जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक संबंध साझा करते हैं. 1965 में मालदीव की आजादी के बाद उसे मान्यता देने और देश के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले उन देशों में भारत भी पहले नंबर पर था.भारत ने 1972 में सीडीए के स्तर पर और 1980 में रेजिडेंट उच्चायुक्त के स्तर पर यहां अपना मिशन स्थापित किया. मालदीव ने नवंबर 2004 में नई दिल्ली में एक पूर्ण उच्चायोग खोला, जो उस समय दुनिया भर में इसके केवल चार राजनयिक मिशनों में से एक था.

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भारत किन क्षेत्रों में कर रहा है मालदीव से सहयोग
रक्षा और सुरक्षा ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहां भारत और मालदीव के बीच सहयोग होता रहा है. भारत ने मालदीव की रक्षा प्रशिक्षण और उपकरणों की आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत लचीला रूख रखता रहा है. रक्षा साझेदारी को मजबूत करने के लिए अप्रैल 2016 में रक्षा के लिए एक व्यापक कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किए गए थे.
भारत मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) के लिए सबसे बड़ी संख्या में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करता है, जो उनकी लगभग 70% रक्षा प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करता है. भारत ने पिछले 10 वर्षों में 1500 से अधिक एमएनडीएफ प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित किया है. एमएनडीएफ विभिन्न सैन्य-से-सैन्य गतिविधियों में भी भाग ले रहा है जैसे कि संयुक्त समुद्री गश्त, मादक द्रव्य विरोधी अभियान, एसएआर, समुद्री सवार कार्यक्रम, एचएडीआर अभ्यास, साहसिक शिविर, नौकायन आदि. भारतीय नौसेना ने एमएनडीएफ को हवाई सेवाएं भी प्रदान की हैं जिनमें हवाई निगरानी, मेडवैक, एसएआर आदि शामिल हैं.
मालदीव के साथ भारत का रक्षा सहयोग संयुक्त अभ्यास, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता, हार्डवेयर का उपहार, बुनियादी ढांचे के विकास आदि क्षेत्रों तक भी फैला हुआ है. रक्षा क्षेत्र में प्रमुख परियोजनाओं में एमएनडीएफ के लिए समग्र प्रशिक्षण केंद्र (सीटीसी), तटीय रडार प्रणाली (सीआरएस) और नए रक्षा मंत्रालय मुख्यालय का निर्माण शामिल हैं. पूर्व राष्ट्रपति सोलिह की अगस्त 2022 की भारत यात्रा के दौरान, एमएनडीएफ को पहले प्रदान किए गए जहाज-सीजीएस हुरवे के बदले दूसरे लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट (एलसीए) और अन्य वाहनों को उपहार में देने की घोषणा की गई थी. अक्टूबर 2022 में विदेश सचिव की मालदीव यात्रा के दौरान 24 उपयोगिता वाहन मालदीव को सौंपे गए.

इसके अलावा मालदीव को भारत कई बड़े आर्थिक अनुदान भी दे चुका है जिसमें माले में हुकुरु मिस्की का रिनोवेशन, उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाएं (एचआईसीडीपी) और अन्य द्विपक्षीय परियोजनाएं शामिल हैं. यानि भारत की बात करें तो भारत बिना किसी स्वार्थ और कर्ज के मालदीव को मदद कर रहा था दूसरी तरफ चीन ने मालदीव में भी परियोजनाएं शुरू की उसमें जमकर कर्ज दिया औऱ देश को कर्ज में डुबो दिया.
भारत ने हमेशा की मदद
जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी तो तब भी भारत ने मालदीव की मदद की थी और एक लाख से ज्यादा वैक्सीन की खुराक एयर इंडिया के विशेष विमान से मालदीव पहुंचाई गई थी. जब-जब मालदीव पर संकट आया तो भारत हमेशा मदद के लिए आगे रहा है. जब सुनामी आई तो भारत मदद के लिए सबसे आगे रहा. वर्ष 1988 के सैन्य विद्रोह हुआ तो भारत सबसे आगे रहा फिर जल संकट और कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने सबसे मालदीव को मदद पहुंचाई.
भारतीय सैलानियों पर निर्भर है मालदीव की अर्थव्यवस्था
मालदीव की इकोनमी काफी कुछ भारतीय सैलानियों पर निर्भर है. हर साल बड़ी तादाद में भारतीय मालदीव सैर करने जाते हैं. 2020 में जहां मालदीव में 63 हजार भारतीय सैलानी गए थे तो 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर दो लाख 93 हजार हो गया और 2022 में 2 लाख 41 हजार तथा 2023 में तक 1 लाख 93 हजार सैलानी, ये मालदीव जाने वाले हिंदुस्तानी सैलानियों का आंकड़ा है.यानि औसतन हर साल भारत से करीब दो लाख से ज्यादा मालदीव की यात्रा करते हैं.

भारत के व्यापारिक रिश्ते
पश्चिम एशिया में अदन और होमुर्ज की खाड़ी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. मालदीव के छोटे-बड़ द्वीप उस शिपिंग लेन के बगल में है, जहां से चीन, जापान और भारत को एनर्जी सप्लाई होती है. भारत के विदेशी व्यापार का लगभग 50% और इसकी ऊर्जा आयात का 80% हिस्सा अरब सागर में इन एसएलओसी के माध्यम से होता है. इसके अलावा भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और दक्षिण एशिया उप-छेत्रीय आर्थिक सहयोग (एसएएसईसी) जैसे मुख्य संगठनों के सदस्य हैं. इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए भी भारत को मालदीव के साथ की जरूरत है.
व्यापारिक नजरिये से देखें तो हर साल भारत और मालदीव के बीच कारोबार बढ़ते जा रहा है. 2023 में भारत ने मालदीव से जहां 41.02 करोड़ डॉलर का निर्यात किया था था तो 61.9 लाख डॉलर का आयात भी किया था. 20222 में निर्यात का आंकड़ा 49.54 करोड़ डॉलर था जबकि आयात का आंकड़ा 61.9 लाख डॉलर था.
मुश्किल समय में भारत की मदद
2016 में उरी हमले के बाद जब पाकिस्तान में सार्क समिट हुई थी, तो भारत ने इसे बायकॉट करने की अपील की थी. तब मालदीव इकलौता ऐसा देश था, जिसने भारत का साथ दिया था. दिसंबर, 2014 में जब माले में जल संकट हो गया था, तब भारत ने तत्काल मदद करते हुए आइएनएस सुकन्या और आइएनएस दीपक को पेयजल के साथ रवाना किया था. इसके अतिरिक्त भारतीय वायुसेना ने भी हवाई जहाजों के जरिए मालदीव को पानी पहुंचाया था. इस संपूर्ण ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन नीर’ के नाम से जाना जाता है.

इसके पहले भी 1988 में तत्कालीन मालदीव के राष्ट्रपति के अनुरोध पर भारत ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ को अंजाम दिया था. इसमें सिर्फ नौ घंटे के भीतर भारतीय कमांडो मालदीव पहुंच गए थे और मालदीव में तख्तापलट को कोशिश को नाकाम कर दिया था..लेकिन अब चीन मालदीव को अपने शिकंजे में लेने की कोशिश कर रहा है.
चीन के कर्जजाल में फंसा मालदीव!
मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मुइज्जू का चुनावी नारा 'इंडिया आउट' था. मुइज्जू की जीत के बाद उन्हें मुबारकबाद देने वालों में सबसे पहले माले में चीन के राजदूत थे मुइज़्ज ने मालदीव में चीन के विकास कार्यक्रमों की खुलकर तारीफ़ करते रहे हैं. यहां तक कहा कि इस निवेश ने माले शहर का कायापलट किया है. मुइज्जू के गठबंधन में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की पार्टी भी है जिन्होंने मालदीव को चीन के नज़दीक लाने में अहम भूमिका निभाई थी. यामीन के कार्यकाल में मालदीव चीन के काफी करीब पहुंच गया था.
यामीन की सरकार में मालदीव की आर्थिक स्थिति भी काफी बिगड़ गई थी. मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के कारण भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को कर्ज देने से इनकार कर दिया. आखिरकार चीन ने उसकी मदद की. यामीन की सरकार वने चीन से भारी भरकम कर्ज लिया. 2018 के आखिर तक मालदीव के कुल बाहरी कर्ज में 70 फीसदी से ज्यादा अकेले चीन का था. 2018 में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने बताया कि मालदीव पर चीन का कर्ज़ तीन अरब 10 करोड़ डॉलर का है. इसमें सरकार से सरकार को दिया कर्ज़, सरकारी कंपनियों और मालदीव की सरकार की इजाज़त से मिला प्राइवेट सेक्टर का कर्ज़ भी शामिल है. यानि मालदीव की हालत भी श्रीलंका जैसी हो सकती है जो चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस गया है.
जीडीपी का 10 फीसदी हिस्सा चीन को कर्ज देने में
आज मालदीव की हालत ये है कि उसने चीन से जो भी कर्ज लिया है उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. मालदीव की जीडीपी 540.56 करोड़ अमेरिकी डॉलर की है और मालदीव के बजट का करीब 10 फीसदी हिस्सा चीन को कर्ज देने में चला जाता है. चीन मालदीव में व्यापक स्तर पर निवेश कर रहा है जिसमें बुनियादी ढांचे, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्रों पर उसकी पकड़ बढ़ गई है.वहीं मालदीव लगातार चीन के इस कर्जजाल में फंसता चला जा रहा है.
कई ऐसे प्रोजक्ट्स हैं जिनमें चीन और मालदीव मिलकर आइलैंड पर होटल बना रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति नशीद कह चुके हैं इन परियोजनाओं में पैसा नहीं होने के कारण ही मालदीव चीन का पार्टनर बना है और आगे चलकर चीन पैसा देकर इन होटल्स को खरीद सकता है. नशीद मानते हैं कि भविष्य में ये आइलैंड चीन के हाथों में चले जाएंगे.