तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में शुक्रवार शाम को एअर इंडिया के एक विमान का हाइड्रोलिक फेल हो गया था. इसके चलते विमान लैंड नहीं कर पा रहा था. कई घंटे हवा में चक्कर काटने के बाद विमान ने सुरक्षित लैंडिंग कर ली है. इस विमान में 140 लोग सवार थे. पायलट ने हाइड्रोलिक फेलियर के बारे में एयरपोर्ट को सूचित किया था.
इससे पहले विमान को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए बेली लैंडिंग की तैयारी की जा रही थी. हालांकि उसकी जरूरत नहीं पड़ी और विमान सुरक्षित लैंड कर गया. बेली लैंडिंग का इस्तेमाल अक्सर आपातकालीन परिस्थितियों में किया जाता है जिसमें विमान बेली यानी पेट के सहारे लैंड करता है. इस तरह की लैंडिंग में पायलट को बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है.
क्या होती है बेली लैंडिंग?
बेली लैंडिंग एक इमरजेंसी लैंडिंग प्रक्रिया होती है जिसमें विमान अपने लैंडिंग गियर को पूरी तरह या आंशिक रूप से खोले बिना ही लैंड करता है. इसे 'गियर-अप लैंडिंग' भी कहा जाता है. इस स्थिति में विमान के लैंडिंग गियर पूरी तरह से काम नहीं कर रहे होते हैं या खोले नहीं जा सकते. इसमें विमान अपने निचले हिस्से या बेली (Belly) या पेट के सहारे रनवे पर उतरता है. आमतौर पर यह स्थिति तब पैदा होती है जब लैंडिंग गियर सिस्टम में कोई खराबी या फेलियर आ जाती है.
किन कारणों से होती है?
-लैंडिंग गियर की खराबी: अगर लैंडिंग गियर सिस्टम खराबी के कारण नहीं खुल पाता तो पायलट को मजबूरी में बेली लैंडिंग करनी पड़ती है.
-इलेक्ट्रिकल या हाइड्रोलिक फेलियर: विमान के सिस्टम में इलेक्ट्रिकल या हाइड्रोलिक फेलियर हो जाने से लैंडिंग गियर ऑपरेट नहीं कर पाता.
-युद्ध या आपातकालीन स्थिति: युद्ध या इमरजेंसी जैसी कुछ विशेष परिस्थितियों में पायलट जानबूझकर बेली लैंडिंग करने का फैसला लेते हैं.
कैसे की जाती है बेली लैंडिंग?
बेली लैंडिंग के दौरान पायलट विमान को बहुत सावधानी से नियंत्रित करता है ताकि उसे धीरे और सुरक्षित रूप से जमीन पर उतारा जा सके. विमान पेट (बेली) के निचले हिस्से के साथ रनवे को टच करता है और पायलट अधिकतर रनवे की लंबाई का इस्तेमाल करते हुए विमान को धीरे-धीरे रोकने की कोशिश करता है. इसमें कुछ खतरे भी होते हैं. बेली लैंडिंग में विमान के निचले हिस्से को नुकसान हो सकता है लेकिन अगर सही ढंग से की जाए तो यह यात्रियों और क्रू के लिए सुरक्षित होती है.