केरल सरकार द्वारा लाए गए "यूनिवर्सिटी लॉ (संशोधन) विधेयक 2025" को लेकर एक खबर में दावा किया गया कि यह विधेयक शिक्षकों को राज्य सरकार की आलोचना करने से रोकता है, जबकि केंद्र सरकार की नीतियों पर खुलकर बोलने की अनुमति देता है.
इस खबर के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया और राज्य सरकार पर मुक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगाया गया. हालांकि, इस पूरे मामले पर केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने सफाई दी है और उस खबर को "तथ्यों का तोड़-मरोड़" बताया है.
उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू ने कहा कि यह दावा गलत है कि विश्वविद्यालय विधेयक शिक्षकों को राज्य सरकार की आलोचना करने की अनुमति नहीं देता है और केंद्र सरकार की आलोचना करने की अनुमति देता है. उन्होंने कहा, “यह प्रावधान वास्तव में शिक्षकों को अपनी राय व्यक्त करने की आजादी देता है. यदि आप इसे पढ़ेंगे, तो यह आसानी से समझ में आ जाएगा.”
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क्या हैं प्रावधान
शिक्षक या उनके समूह या संगठन विश्वविद्यालय की नीति और राज्य कानून के अनुरूप लिखित, मुद्रित या इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को कैंपस में पूर्व अनुमति के बिना वितरित या प्रदर्शित कर सकते हैं. ऐसी सामग्री के जिम्मेदार लोगों के नाम स्पष्ट रूप से दर्शाए जाने चाहिए."
विपक्ष और आलोचकों का कहना है इससे कॉलेजों में सरकार का दखल बढ़ेगा. इस पर मंत्री बिंदु ने कहा, "पहले प्रो-चांसलर की भूमिका अस्पष्ट थी, अब हमने इसे स्पष्ट किया है, कोई नया अधिकार नहीं जोड़ा गया है."