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हड़प्पा-ऋग वैदिक काल में सोने के सिक्के इस्तेमाल करते थे इंड‍ि‍यंस, रिसर्च में खुला 5000 साल से भी पुराना राज

भारत के टॉप पुरातत्वव‍िद बीआर मणि की नई रिसर्च से पता चलता है कि हड़प्पा वाले और वैदिक लोग सोने के सिक्कों का इस्तेमाल कर रहे थे, जिन्हें निष्क कहा जाता था. ये सिक्के मुद्रा के रूप में, व्यापार की संपत्ति के रूप में, अनुष्ठान की भेंट के रूप में और स्टेटस सिंबल के रूप में इस्तेमाल होते थे, मणि कहते हैं कि यह खोज भारतीय सोने के सिक्कों की समयरेखा को लगभग तीन सहस्राब्दियों पीछे धकेल देती है, जो उपमहाद्वीप की प्राचीन अर्थव्यवस्था और संस्कृति के बारे में हमारी समझ को नया आयाम देगी.

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निष्क सोने के सिक्के हड़प्पा स्थलों जैसे मोहनजोदाड़ाे, लोथल, राखीगढ़ी और मंडी में पाए गए हैं. (Image: Author/India Today)
निष्क सोने के सिक्के हड़प्पा स्थलों जैसे मोहनजोदाड़ाे, लोथल, राखीगढ़ी और मंडी में पाए गए हैं. (Image: Author/India Today)

भारत में सोने के सिक्कों पर एक सिंपल चैटजीपीटी प्रॉम्प्ट बताता है कि वे कुषाण शासन (पहली-तीसरी शताब्दी ईस्वी) के दौरान व्यापक रूप से इस्तेमाल में आए. हमारे इतिहास की किताबें हमें यही बताती थीं. लेकिन यह तथाकथित तथ्य न केवल गलत है बल्क‍ि ये पुराना भी होने वाला है. कुषाणों से लगभग 3,000 साल पहले, हड़प्पा काल के लोग और बाद में वैदिक युग में सोने के सिक्कों (निष्क) का इस्तेमाल कर रहे थे, भारत के शीर्ष पुरातत्वविद बीआर मणि ने दावा किया है. यह व्यापार और अर्थव्यवस्था और प्राचीन भारत में धातु विज्ञान की हमारी समझ को नई समझ देता है.

नई दिल्ली के नेशनल म्यूजियम ऑडिटोरियम में गुरुवार शाम को मणि ने अपने लेक्चर में सुझाव दिया कि निष्क भारत के सबसे शुरुआती सोने के सिक्कों का प्रतिनिधित्व करता है, जो हड़प्पा या सिंधु-सरस्वती सभ्यता के परिपक्व चरण तक जाता है. इस ऑड‍िटोर‍ियम में नुमिस्मेटिक स्कॉलर्स, आर्ट हिस्टोरियंस और पुरातत्वविदों का जमावड़ा था जिसमें पद्म भूषण अवार्डी कैलाश नाथ दीक्षित भी शामिल थे. 

मण‍ि ने लंबे समय से मानी गई धारणा को चुनौती देते हुए कहा कि भारत में सोने के सिक्के कुषाण काल से पहले मौजूद नहीं थे. गोलाकार, डिस्क के आकार के बीच में छेद वाले सोने के सिक्के, जिन्हें लंबे समय से 'बीड्स' कहा जाता था. ये भारत के सबसे शुरुआती सोने के सिक्के हैं. निष्क भारतीय सोने के सिक्कों की उत्पत्ति को हजारों साल आगे बढ़ाते हुए तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक पीछे धकेल देते हैं. वहीं अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि मणि का दावा प्राचीन भारतीय इतिहास को देखने के तरीके को बदलने वाला है, जिसमें इसका व्यापार और वाणिज्य भी शाम‍िल है. 

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गुरुवार को नेशनल म्यूजियम ऑडिटोरियम में लेक्चर देते बीआर मणि (Image:Author/India Today)

क्या निष्क प्राचीन भारतीय सोने के सिक्के हैं?

निष्क गोलाकार, डिस्क-आकार के सोने के सिक्के हैं जिनके केंद्र में एक छेद है, मूल रूप से ये सजावटी बीड्स माने जाते थे. हड़प्पा काल की खुदाइयों जैसे मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान), लोथल (गुजरात) और राखीगढ़ी (हरियाणा)से अलग-अलग वज़न और छेद-आकार वाले परफोरेटेड (छिद्रयुक्त) गोल्ड कॉइंस मिले हैं. 1950–60 के दशक में लोथल की खुदाई करने वाले पुरातत्वविद् एस.आर. राव ने इन्हें 'माइक्रो-बीड्स' कहा था, जिनका डायमीटर 0.25 मिमी तक छोटा था.

परफोरेटेड गोल्ड कॉइंस का मंडी (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) के खजाने से मिला संग्रह जो परिपक्व हड़प्पा सभ्यता की पूर्वी सीमा पर है, निष्क के असली प्रयोजन को समझने में निर्णायक साबित हुआ. मंडी के 40 सिक्कों के अध्ययन से बी.आर. मणि ने इन गोल्ड डिस्क्स की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट की. मणि के मुताबिक ये सिर्फ सजावटी चीजें नहीं थीं बल्कि ये मुद्रा, व्यापारिक संपत्ति, धार्मिक अर्पण और सोशल स्टेटस चारों रूपों में काम आती थीं. किसी धनी व्यक्ति की संपत्ति 100 निष्क या 1,000 निष्क में गिनी जाती थी.

The Golden Economy: हड़प्पा से वैदिक काल तक

मणि ने आगे बताया कि हमारी परंपरा केवल कल्पना पर आधारित नहीं हो सकती. निष्क को हड़प्पा के बाद के वैदिक ग्रंथों में बार-बार संदर्भित किया गया है, जैसे ऋग वेद, अथर्व वेद, पतंजलि की महाभाष्य, पाणिनि के काम, जातक कथाएं, गोपथ ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण और अन्य.में इसका जिक्र है. ये मुद्रा के रूप में, व्यापार की संपत्ति के रूप में, अनुष्ठान की भेंट के रूप में और स्टेटस सिंबल के रूप में इस्तेमाल होते थे. मात्र आभूषण होने से हटके ये सिक्के उस समय की आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा थे, उनके छेदों से शायद परिवहन या गिनती की आसानी के लिए स्ट्रिंगिंग की सुविधा होती थी.

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मणि का ये दावा इतिहासकारों को हड़प्पा वालों और वैदिक युग के लोगों की धातु विज्ञान, व्यापार नेटवर्क और अनुष्ठान प्रथाओं की परिष्कृतता को देखने के तरीके को नया आयाम दे सकता है. ये दिखाता है कि भारतीय सभ्यता का सोने के साथ जुड़ाव व्यावहारिक और प्रतीकात्मक दोनों था. यह भारत की सोने के सिक्कों की समयरेखा को लगभग तीन सहस्राब्दियों से पहले के संकेत देता है. कुषाणों से बहुत पहले जिन्हें पारंपरिक रूप से उपमहाद्वीप में सोने के सिक्कों को पेश करने का श्रेय दिया जाता है.

यह एक सामान्य धारणा है कि कुषाण सम्राट विम कदफिसेस ने भारत के पहले सोने के सिक्कों को पेश किया, जिन्हें रोमन डेनारियस से प्रेरित उनके वजन और डिजाइन के नाम पर दीनार कहा जाता था. कुषाण सिक्कों में आमतौर पर एक तरफ सम्राट और दूसरी तरफ देवताओं या प्रतीकात्मक मोटिफ्स चित्रित होते थे. 

(इमेज: इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक की अध्ययन सामग्री)

बता दें कि बीआर मणि ने साल 2003 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा आदेशित राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई का नेतृत्व किया. उन्होंने निष्क पर अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों को भी जोड़ा.

निष्क के उद्देश्य को उजागर करने के लिए, उन्होंने ग्रंथों में इसके संदर्भों के साथ ही मंडी के होर्ड से 40 सिक्कों का विश्लेषण किया . उन्होंने दर्शाया कि निष्क हड़प्पा सभ्यता के परिपक्व चरण और उसके बाद के वैदिक युग के दौरान मुद्रा, व्यापार की संपत्ति, अनुष्ठान की भेंट, और स्टेटस सिंबल के रूप में कार्य करता था, जो भौगोलिक विस्तार में मेल खाता है.

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भारतीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर ‘निष्क’ के मायने

निष्क को भारत के सबसे शुरुआती सोने के सिक्कों के रूप में माना जाता है जो सिंधु-सरस्वती सभ्यता और वैदिक संस्कृतियों के लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाते थे. ये स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पारंपरिक कथा को चुनौती देता है. ये हड़प्पा और वैदिक अर्थव्यवस्था की हमारी समझ को भी नया आकार देता है. यह प्रारंभिक भारतीय धातु विज्ञान की जानकारी की परिष्कृतता, व्यापार नेटवर्क और सोने पर रखे गए उच्च सांस्कृतिक मूल्य को हाइलाइट करता है.

निष्क गले में पहनें तो मनके की तरह लगते थे, लेकिन व्यापार और लेन-देन की मुद्रा की तरह काम करते थे (Image: MarudharArts)

पद्म भूषण अवार्डी पुरातत्वविद कैलाश नाथ दीक्षित ने गुरुवार को लेक्चर के बाद कहा कि मणि के काम से प्रेरित भविष्य की खुदाई और अध्ययन भारत की प्राचीन आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास में और अधिक अंतर्दृष्टि उजागर कर सकते हैं. बीआर मणि ने हमारी पीढ़ी की आंखें खोल दी हैं और आने वाली पीढ़ियां उनके काम से बहुत कुछ सीखेंगी. उन्होंने आगे कहा कि ये खोज भारतीय इतिहास को देखने के तरीके को बदल देती है. नेशनल म्यूजियम में संरक्षण की डायरेक्टर शिल्पा रतुरी ने कहा कि जैसा कि मणि ने कहा कि निष्क क्रिप्टो की तरह नहीं है, जो सिर्फ लेन-देन में रहता है. ये प्राचीन भारतीयों के लिए एक मूर्त संपत्ति थी.

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