तेलंगाना में जाति जनगणना को लेकर गठित जनगणना स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के उपाध्यक्ष रहे कांचा इलैया मंगलवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में चल रहे इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ के मंच पर थे. कांचा इलैया ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ के मंच पर कहा कि तेलंगाना जाति जनगणना, केवल जाति जनगणना नहीं थी. उन्होंने कहा कि यह सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक जाति सर्वे था.
उन्होंने जाति व्यवस्था में लैंगिक असमानता को जातिगत असमानता से भी ज्यादा गंभीर बताया और कहा कि जातिगत जनगणना के तेलंगाना मॉडल में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक के साथ ही महिलाओं की स्थिति को भी देखा गया. कांचा इलैया ने कहा कि हमने महिलाओं की समग्र स्थिति पर गौर किया है. उन्होंने कहा कि चाहे वे ब्राह्मण हों, दलित हों या आदिवासी, हर जाति-समुदाय में लैंगिक असमानता जातिगत असमानता से कहीं अधिक चौंकाने वाली है.
कांचा इलैया ने आगे कहा कि सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि इस देश में विकास जमीन के स्वामित्व से कम, शिक्षा के साथ ही आवागमन और रोजगार से अधिक तय होता है. उन्होंने कहा कि भारत मे व्यक्तिगत कल्याणवाद आज भी काम नहीं करेगा. यह एक जातिगत सांस्कृतिक कल्याणवाद है. कांचा इलैया ने कहा कि सभी 242 जातियों में ज़मीन विकास का आधार नहीं. विकास का आधर शिक्षा, आवागमन, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में रोज़गार है.
उन्होंने आदिवासियों, ओबीसी, दलितों और ऊंची जातियों के लिए अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया. इस विषय पर चर्चा के दौरान मंच पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अंबुमणि रामदास, बीजेपी के पूर्व सांसद राकेश सिन्हा, तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष एन रामचंदर राव और कांग्रेस के एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक विकास प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय समन्वयक के राजू भी मौजूद थे. क्या जातिगत जनगणना समाज में समानता का भाव ला सकती है? इस सवाल पर अंबुमणि रामदास ने कहा कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है.
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उन्होंने कहा कि भारत सरकार आज जातियों के जिन आंकड़ों पर निर्भर है, वह 90 साल पुराने हैं. बिना आंकड़े के सामाजिक न्याय नहीं हो सकता. अंबुमणि रामदास ने रोहिणी कमीशन का भी जिक्र किया और कहा कि 2017 में गठित इस कमीशन ने यह पाया कि ओबीसी के कुल 2633 समुदायों में से केवल 10 समुदाय 24.94%, 38 समुदाय 25%, 102 समुदाय 25%, 506 समुदाय 22.5%. उन्होंने कहा कि 656 समुदाय ही ओबीसी के लिए नौकरी के कुल अवसरों में 97.5 फीसदी पर कब्जा कर लेते हैं.
राज्यों में जाति सर्वे महत्वपूर्ण- रामदास
अंबुमणि रामदास ने आगे कहा कि ओबीसी वर्ग के 1977 समुदाय केवल 2.5% अवसरों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. 983 ओबीसी समुदाय ऐसे भी हैं, जिनके पास न कोई जॉब है, ना ही शिक्षा तक पहुंच. उन्होंने देश में जाति जनगणना को जरूरी बताते हुए कहा कि राज्यों में भी जाति सर्वे बहुत महत्वपूर्ण है. सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लेकर हर राज्य के अपने मानदंड हैं. अंबुमणि रामदास ने बिहार के जातिगत सर्वे की रिपोर्ट का भी उल्लेख किया और कहा कि इस सर्वे में पता चला कि 67 लाख परिवारों के पास मकान नहीं है और 94 लाख परिवारों की मासिक आय 6000 रुपये से भी कम है.
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उन्होंने आगे कहा कि जाति जनगणना को केवल आरक्षण से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. जाति जनगणना कल्याणकारी योजनाएं तैयार करने, आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के संदर्भ में है और आरक्षण इस दिशा में सकारात्मक कार्रवाई का एक हिस्सा है. के राजू ने जाति जनगणना को समानता का संवैधानिक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जरूरी बताया और कहा कि जातियों को लेकर सटीक आंकड़े के बिना बनाई गई नीतियां समाज में असमानता दूर नहीं कर सकतीं. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना के आंकड़े नीतियां बनाने में सरकार के लिए मददगार होंगे.
समानता में जाति व्यवस्था बाधा- के राजू
के राजू ने कहा कि समानता के मामले में हमारा संविधान सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन जाति व्यवस्था के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है. उन्होंने यह भी कहा कि जाति व्यवस्था धन, अवसर और पावर के वितरण को प्रभावित करती रही है. इसकी वजह से समानता की तरफ समाज की प्रगति प्रभावित हुई है. के राजू ने आगे कहा कि जब तक आप यह नहीं समझते कि अलग-अलग समुदायों के बीच संपत्ति, अवसर और पावर का वितरण कैसे होता है, तब तक आप समानता हासिल नहीं कर पाएंगे. इसके लिए जाति जनगणना जरूरी है.