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'नालंदा में सिर्फ 10% ही खुदाई हुई, कई पहलू छिपे हैं...', बोले इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'नालंदा: इसने दुनिया को कैसे बदल दिया' मौज़ू पर आयोजित एक परिचर्चा के दौरान डेलरिम्पल ने कहा, "यह चौंकाने वाला है कि 21वीं सदी में भी बिहार में इस स्थल के पुरातात्विक अवशेषों के उत्खनन कार्य में ज्यादा धन नहीं लगाया गया है."

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नालंदा विश्वविद्यालय (फाइल फोटो)
नालंदा विश्वविद्यालय (फाइल फोटो)

मशहूर लेखक और इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने मंगलवार को कहा कि नालंदा यूनिवर्सिटी के प्राचीन अवशेषों का सिर्फ 10 फीसदी ही उत्खनन किया गया है और बाकी की खोज की जानी बाकी है. उन्होंने वहां एक संग्रहालय बनाने की बातें कही है, जो भारतीय सभ्यता का विशाल और भव्य स्मारक होगा. एजेंसी के मुताबिक, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'नालंदा: इसने दुनिया को कैसे बदल दिया' मौज़ू पर आयोजित एक परिचर्चा के दौरान डेलरिम्पल ने कहा, "यह चौंकाने वाला है कि 21वीं सदी में भी बिहार में इस स्थल के पुरातात्विक अवशेषों के उत्खनन कार्य में ज्यादा धन नहीं लगाया गया है."

नालंदा विश्वविद्यालय या नालंदा महाविहार के खंडहर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं, जिसे 2016 में प्रतिष्ठित दर्जा मिला था. उन्होंने कहा, "यह याद रखना चाहिए कि नालंदा का केवल 10 फीसदी हिस्सा ही खोदा गया है, जबकि 90 फीसदी हिस्सा अभी भी खोजा जाना बाकी है."

नई किताब में क्या है?

डेलरिम्पल, जिनकी नई किताब "द गोल्डन रोड: हाउ एनशिएंट इंडिया ट्रांसफॉर्म्ड द वर्ल्ड" प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता का पता लगाती है. उन्होंने कहा कि नालंदा के शैक्षणिक प्रांगणों का डिज़ाइन आधुनिक ऑक्सब्रिज कॉलेजों (यूके में) में देखा जा सकता है.

डेलरिम्पल ने कहा, "यह भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे बड़ा लम्हा था. कौन जानता था कि वहां ऐसे असाधारण अवशेष मिल सकते हैं. यह और भी असाधारण है कि एक सरकार जो अपनी प्राचीन सभ्यता को अहमियत देती है, उसने और ज्यादा उत्खनन कार्य के लिए फंड उपलब्ध नहीं कराया है." उन्होंने कहा कि उत्खनन कार्य जारी रखा जाना चाहिए. 

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मौजूदा वक्त में, बिहार की राजधानी पटना से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित नालंदा खंडहरों में एक साधारण इमारत में एक साइट संग्रहालय है. डेलरिम्पल ने विद्वानों, शोधकर्ताओं और इतिहास से जुड़े लोगों की सभा में कहा, "यह भारतीय सभ्यता का एक विशाल, भव्य स्मारक होना चाहिए."

UNESCO की वेबसाइट के मुताबिक, नालंदा महाविहार स्थल में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 13वीं शताब्दी तक के मठवासी और शैक्षणिक संस्थान के पुरातात्विक अवशेष शामिल हैं. इसमें स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षणिक भवन) और प्लास्टर, पत्थर और धातु से बनी महत्वपूर्ण कलाकृतियां शामिल हैं. नालंदा भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है. यह 800 वर्षों की निर्बाध अवधि में ज्ञान के संगठित प्रसारण में लगा हुआ है.

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