दिल्ली में नक्सली कमांडर मांडी हिडमा की मौत के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बाद पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था. शनिवार को इस मामले में बड़ी अदालती कार्रवाई हुई. पटियाला हाउस कोर्ट ने 23 में से 22 आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. यह प्रदर्शन कर्तव्य पथ और संसद मार्ग - दोनों इलाकों में हुए थे.
जज अरिदमन सिंह चीमा की अदालत में छह आरोपियों को पेश किया गया. इनमें पांच बालिग और एक ने नाबालिग होने का दावा किया. पुलिस ने दो दिन की कस्टडी मांगी, लेकिन कोर्ट ने दलीलों को पर्याप्त नहीं माना और याचिका खारिज कर दी.
संसद मार्ग पर गिरफ्तार 17 आरोपियों पर आरोप है कि उन्होंने पुलिसकर्मियों के साथ धक्का-मुक्की की, नक्सल हिडमा के समर्थन में नारे लगाए और पेपर पाउडर स्प्रे किया. पुलिस ने कोर्ट में वीडियो दिखाया जिसमें कुछ लोग स्प्रे करते नजर आए. पुलिस ने कहा कि प्रदर्शन प्रदूषण पर था, फिर नक्सली नारे क्यों लगे?
पुलिस की दलील: पूरी तैयारी से आए थे आंदोलनकारी
पुलिस ने कहा कि इन लोगों को चार बार रोका गया, लेकिन वे आगे बढ़ते रहे. उनका कहना था कि हिरासत मिलने से नक्सल लिंक की पड़ताल की जा सकेगी. पुलिस ने यह भी कहा कि हिरासत में दुर्व्यवहार की आशंका नहीं है, क्योंकि जांच अभी शुरुआती स्तर पर है.
बचाव पक्ष का तर्क: ये छात्र हैं, FIR में नक्सलवाद का जिक्र नहीं
आरोपियों के वकील ने कहा कि ये पढ़े - लिखे छात्र हैं, जिन्होंने जल–जंगल–जमीन और प्रदूषण को जोड़कर अपनी बात रखी. FIR में कहीं भी नक्सलवाद का जिक्र नहीं है, इसलिए इन्हें अपराधी जैसा बर्ताव न मिले.
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अदालत का निर्णय: तीन दिन की न्यायिक हिरासत
दिल्ली में रविवार को हुए प्रदर्शन से जुड़े दो एफआईआर दर्ज की गई हैं. एक कर्तव्य पथ पर हुई घटना के लिए और दूसरी पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में.
दोनों एफआईआर मिलाकर कुल 17 आरोपियों को तीन दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है. अब इन्हें 27 नवंबर को दोबारा अदालत में पेश किया जाएगा.
कर्तव्य पथ वाली एफआईआर में छह आरोपी थे, जिनमें से पांच को दो दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया. एक आरोपी को सेफ हाउस में रखा गया है क्योंकि अदालत उसकी उम्र की जांच करवा रही है.
दिल्ली पुलिस का कहना है कि वे आगे की हिरासत तभी मांगेंगे जब जब्त किए गए मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की रिपोर्ट मिल जाएगी.
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आरोपियों का कहना है कि हिरासत में उन्हें पीटा गया, धमकाया गया और कुछ महिला प्रदर्शनकारियों ने तो यह तक कहा कि पुरुष पुलिसकर्मियों ने उन्हें गलत तरीके से छुआ. अदालत ने पुलिस को बाहर भेजकर आरोपियों से बंद कमरे में बात की, जहां उन्होंने अपने चोट के निशान भी दिखाए. एक आरोपी के मेडिकल सर्टिफिकेट में गर्दन की चोट दर्ज थी, हालांकि पुलिस ने उसे पुरानी चोट बताया.