पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के मंत्रियों और राजनयिकों ने दुनिया भर के टीवी चैनलों पर इंटरव्यू देकर भारत के खिलाफ एक झूठा नैरेटिव युद्ध छेड़ दिया. वही पुराना कश्मीर राग अलापते हुए उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि भारत और पाकिस्तान के बीच असल मुद्दा 'आतंकवाद' नहीं, बल्कि 'कश्मीर' है. इस दौरान पाकिस्तान के तीन कैबिनेट मंत्री- इशाक डार, ख्वाजा आसिफ और अत्ताउल्लाह तरार- और पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो ने अमेरिका, ब्रिटेन, मिडल ईस्ट और यूरोप के लोकप्रिय चैनलों पर कम से कम 25 इंटरव्यू दिए.
भारत को पहलगाम हमले के बाद वैश्विक समर्थन मिला. हालांकि कई पूर्व राजनयिकों का मानना है कि 22 अप्रैल से 7 मई तक भारतीय दूतावासों की ओर से विदेशों में मीडिया पर उतनी आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं आई जिससे पाकिस्तान को झूठा नैरेटिव फैलाने का मौका मिल गया. रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी ने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अब आतंकवाद नहीं, बल्कि कश्मीर को मुद्दा बना रही है.'

'स्थानीय मीडिया से नहीं जुड़ पाए भारतीय दूतावास'
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने 59 सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल दुनिया की प्रमुख राजधानियों में भेजने का फैसला किया है ताकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की सच्चाई को सामने लाया जा सके. पूर्व राजदूत राजीव डोगरा और अनिल त्रिगुणायत मानते हैं कि 'भारत को अपने कम्युनिकेश कैंपेन में और आक्रामक रुख अपनाना चाहिए था'. आजतक की OSINT (ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस) टीम ने 24 G20 देशों में स्थित भारतीय दूतावासों के एक्स (X) हैंडल का विश्लेषण किया. सनद रहे, G20 देशों की वैश्विक GDP में 85% हिस्सेदारी है.
हालांकि विदेश मंत्रालय (MEA) ने नई दिल्ली में विदेशी राजदूतों को ब्रीफिंग दी लेकिन विश्लेषण से पता चलता है कि G20 देशों में अधिकांश भारतीय दूतावासों ने न तो स्थानीय मीडिया से संवाद किया और न ही कोई कार्यक्रम आयोजित किया, जिससे जनता की राय को भारत के पक्ष में मोड़ा जा सके- चाहे वो पहलगाम हमला हो या 7 मई को पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर भारत की जवाबी कार्रवाई.
'बेहद जरूरी है संवाद'
पूर्व राजनयिकों के अनुसार, 'किसी देश का संदेश प्रभावी तरीके से पहुंचाने के लिए दूतावासों को कई स्तरों पर काम करना होता है. मेजबान देशों के विदेश मंत्रालय से बातचीत, वहां के नेताओं व सांसदों से मुलाकात, मीडिया के जरिए जनसंपर्क और सार्वजनिक कार्यक्रम जैसे प्रार्थना सभाएं या प्रदर्शन आयोजित करना.'
राजीव डोगरा कहते हैं, 'टीवी पर आना और प्रमुख अखबारों के संपादकों से बातचीत करना बेहद जरूरी है. यदि कोई मजबूत भारतीय समुदाय है, तो उनसे जुड़ें. यदि व्यापारिक संबंध हैं, तो व्यापारिक समुदाय से बात करें. सबसे जरूरी बात- त्वरित प्रतिक्रिया दें.'
75% से अधिक दूतावासों ने नहीं दिया इंटरव्यू
आजतक की OSINT टीम ने G20 के 24 देशों (भारत को छोड़कर) और यूरोपीय संघ व अफ्रीकी संघ के शीर्ष 5-5 देशों में स्थित भारतीय दूतावासों की सोशल मीडिया (एक्स) गतिविधियों का विश्लेषण किया. रिपोर्ट के अनुसार, 75% से अधिक दूतावासों ने न तो मीडिया इंटरव्यू दिए, न पॉडकास्ट में हिस्सा लिया, और न ही किसी अखबारों में लेख लिखा. इन देशों में अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, साउथ कोरिया, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, नीदरलैंड्स, मिस्र, नाइजीरिया और मोरक्को जैसे देश शामिल हैं.
PMO और विदेश मंत्रालय के ट्वीट को किया रीट्वीट
13 दूतावासों- जैसे ब्राज़ील, फ्रांस और इटली- ने 22 अप्रैल से 16 मई के बीच कोई सार्वजनिक कार्यक्रम या भारतीय समुदाय से संवाद नहीं किया. 12 दूतावासों ने न तो मीडिया से संपर्क किया, न ही कोई पब्लिक इवेंट किया. अधिकतर दूतावास सिर्फ विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय या अन्य सरकारी एजेंसियों की पोस्ट्स को रीपोस्ट करते रहे. कुछ देशों में पोस्ट्स हिंदी में की गईं- जो कि स्थानीय जनता के साथ संवाद के लिहाज से एक बड़ी चूक मानी गई.

कुछ दूतावासों का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका स्थित भारतीय दूतावास ने 'terrorism', 'Pahalgam', 'Kashmir' या 'Pakistan' जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए सिर्फ तीन पोस्ट कीं. हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन में स्थित भारतीय राजदूतों ने क्रमशः तीन और चार इंटरव्यू दिए.
सक्रिय रहा अल्जीरिया का दूतावास
एक दिलचस्प बात यह रही कि अपेक्षाकृत छोटे अफ्रीकी देश अल्जीरिया में भारत का दूतावास बेहद सक्रिय रहा. राजदूत स्वाति विजय कुलकर्णी के नेतृत्व में दूतावास ने सोशल मीडिया पर एक विशेष अभियान चलाया, अरबी और फ्रेंच में पोस्ट की गईं और जिन्होंने भारत के साथ एकजुटता दिखाई, उन्हें व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद दिया गया. उन्होंने तीन सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए और एक मीडिया इंटरव्यू भी दिया.
7 मई के बाद बदली भारत की कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी
7 मई के बाद भारत की कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी में बड़ा बदलाव देखने को मिला. महिला अधिकारियों ने प्रेस को ब्रीफिंग दी और पाकिस्तानी एयरबेस पर हुए नुकसान की सैटेलाइट तस्वीरें भी जारी की गईं. राजदूत अनिल त्रिगुणायत कहते हैं, 'ऑपरेशन सिंदूर के जरिए हमने दुनिया को दिखा दिया कि हम अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम हैं. यह एक सशक्त संदेश था.'
डोगरा और त्रिगुणायत दोनों मानते हैं कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने दृष्टिकोण को स्थापित करने के लिए सक्रिय और आक्रामक कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी अपनानी चाहिए. राजदूत त्रिगुणायत कहते हैं, 'अंतरराष्ट्रीय मीडिया के कुछ हिस्सों का एजेंडा पहले से तय होता है, लेकिन इसके बावजूद हम अपनी कहानी दुनिया को बेहतर ढंग से बता सकते थे. मैं लंबे समय से यह सुझाव देता आया हूं कि भारत को संकट के समय ही नहीं, शांति के समय में भी 'रणनीतिक संचार के विशेष दूत' नियुक्त करने चाहिए.'