मध्य प्रदेश में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां नरेंद्र यादव नामक एक व्यक्ति ने ब्रिटेन के प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट ए.जॉन कैम की पहचान चुराकर न केवल अपने नियोक्ता को धोखा दिया, बल्कि मेडिकल जर्नल्स को भी गुमराह किया. यादव ने न केवल फर्जी नाम और पते के तहत शोध पत्र प्रकाशित किए, बल्कि दूसरों के काम को अपने नाम से छापा. इतना ही नहीं, वह भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म पुरस्कार, पाने की लालसा भी रखता था.
इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (ओएसआईएनटी) टीम ने पाया कि यादव ने 2020 और 2022 में प्रकाशित कम से कम दो रिसर्च पेपर्स में लगभग पूरी सामग्री, फोटो और चार्ट 2016 और 2011 में प्रकाशित रिसर्च पेपर से चुराए. इन्हें यहां देख सकते हैं.
ये दोनों रिसर्च पेपर जयपुर के इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस एंड डायग्नोसिस रिसर्च और अमेरिका के बायोमेडिकल एंड ट्रांसलेशनल साइंस में प्रकाशित हुए थे.
फर्जी प्रोफाइल और दावे
यादव ने अपने ORCID प्रोफाइल (https://orcid.org/0000-0002-8824-1532) में दावा किया कि उन्होंने 2020 से 2023 के बीच पांच शोध पत्र लिखे या उनमें योगदान दिया. इनमें से चार पत्रों में जर्मनी के क्लिनिकम नूर्नबर्ग हॉस्पिटल को उनके पत्राचार का पता बताया गया. उनके ऑनलाइन उपलब्ध रिज्यूमे में भी यही दावा किया गया कि वह वहां काम कर रहे हैं. हालांकि, जब इंडिया टुडे ने अस्पताल से संपर्क किया, तो प्रेस अधिकारी इसाबेल लाउर ने स्पष्ट किया, “न तो एन. जॉन कैम नाम का कोई व्यक्ति और न ही नरेंद्र विक्रमादित्य यादव हमारे यहां कभी कार्यरत रहा. यह पहचान की चोरी या फर्जी दावे का मामला लग रहा है. ”
यादव को इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी जर्नल का “एग्जीक्यूटिव एडिटर” भी बताया गया, जिसमें उनका पता फिर से क्लिनिकम नूर्नबर्ग हॉस्पिटल ही दर्ज था.

सोशल मीडिया पर फर्जीवाड़ा
यादव का एक्स अकाउंट (@njohncamm) तब सुर्खियों में आया जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय ने उनके एक फर्जी पोस्ट को रीपोस्ट किया, जिसमें फ्रांस में दंगों को नियंत्रित करने के लिए “बुलडोजर” भेजने की बात कही गई थी. फॉरेंसिक जांच में पता चला कि यह अकाउंट उसी ईमेल एड्रेस (n*******m@icloud.com) से रजिस्टर्ड था, जो उनके एक रिसर्च पेपर के साथ कॉन्टेक्ट के तौर पर दर्ज था.
पद्म पुरस्कार पाने की थी चाहत
यादव की हिम्मत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020 में एक महिला, दिव्या रावत, ने उन्हें पद्म पुरस्कार के लिए नामांकित किया था. गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, इस नामांकन में दिल्ली को उनका निवास स्थान बताया गया. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दिव्या रावत को उनकी पत्नी बताया गया है, जो उनके द्वारा स्थापित कुछ कंपनियों में सह-निदेशक भी थीं.
यादव ने कई कारोबारी प्रयास किए, लेकिन सभी असफल रहे. 2015 में, उन्होंने कानपुर, उत्तर प्रदेश में ब्राउनवाल्ड हॉस्पिटल्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड की और उसी नाम से पेटेंट के लिए आवेदन भी किया. ब्रिटेन में, उन्होंने जॉन कैम हॉस्पिटल्स लिमिटेड और जॉन कैम हेल्थकेयर लिमिटेड नाम से दो कंपनियां रजिस्टर्ड कीं, जिनमें दिव्या रावत निदेशक थीं.
2019 में, हैदराबाद पुलिस ने यादव को ब्राउनवाल्ड हॉस्पिटल्स द्वारा शहर के पौलोमी हॉस्पिटल के अधिग्रहण के बाद डॉक्टरों को वेतन न देने और गलत तरीके से रोकने के आरोप में गिरफ्तार किया था.
दमोह एसपी श्रुत कीर्ति सोमवंशी के अनुसार, यादव ने पुलिस को बताया कि उनकी दो डिग्रियां फर्जी थीं, हालांकि उनकी एमबीबीएस डिग्री (उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय से) असली थी. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी छवि और प्रभाव बढ़ाने के लिए नाम बदला. दमोह के मिशन हॉस्पिटल में यादव ने केवल 43 दिनों तक काम किया, जिसमें उन्होंने 13 मरीजों का ऑपरेशन किया. इनमें से सात की कथित तौर पर मृत्यु हो गई.

नियुक्ति पर सवाल
यादव को मिशन हॉस्पिटल ने भोपाल की एक छोटी भर्ती एजेंसी के जरिए नियुक्त किया था. अस्पताल ने एजेंसी पर साख की जांच में विफलता का आरोप लगाया, जबकि एजेंसी के एक कर्मचारी ने दावा किया कि अस्पताल ने बिना उनकी जानकारी के यादव को नियुक्त किया ताकि उनकी फीस न देनी पड़े. यह मामला न केवल मेडिकल क्षेत्र में फर्जीवाड़े की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि डॉक्टरों की भर्ती और उनकी साख की जांच की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाता है.