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लॉकडाउन: भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित इस गांव के बुजुर्गों को मिला तालीम का तोहफा

बुजुर्गों की क्लास में जब टीचर उनसे सवाल करता है तो ऐसे जवाब सुनने को मिलते हैं- माई नेम इज शोकनाओला, आई एम फाइन थैंक यू, आई एम 69 ईयर्स ओल्ड....माई नेम इज़ रिंगाला, आई एम फाइन थैंक यू, आई एम 79 ईयर्स ओल्ड....

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इन बुजुर्गों की उम्र 66 से 79 साल के बीच है
इन बुजुर्गों की उम्र 66 से 79 साल के बीच है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मणिपुर के कामजोंग जिले के एक गांव मेंं हुई ऐसी पहल
  • 20 बुजुर्ग लोगों को लॉकडाउन में शिक्षा का उपहार मिला

कोविड-19 की दूसरी लहर में देश के तमाम राज्यों में लोगों को स्वास्थ्य के साथ-साथ कई और दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा. लॉकडाउन में सारी गतिविधियों पर ब्रेक की वजह से आर्थिक परेशानियां भी इनमें शामिल रहीं. लेकिन इस दौरान मणिपुर के कामजोंग जिले के एक गांव से एक अच्छी खबर भी आई. भारत-म्यांमार के बॉर्डर पर स्थित चाट्रिक खुल्लेन गांव में 20 बुजुर्ग लोगों को लॉकडाउन में शिक्षा का उपहार मिला.  

इन बुजुर्गों की उम्र 66 से 79 साल के बीच है. कामजोंग जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव में बुजुर्गों ने लॉकडाउन के दौरान बेसिक पढ़ाई के साथ पहली बार अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल सीखा.  

बुजुर्गों की क्लास में जब टीचर उनसे सवाल करता है तो ऐसे जवाब सुनने को मिलते हैं-  माई नेम इज शोकनाओला, आई एम फाइन थैंक यू, आई एम 69 ईयर्स ओल्ड....माई नेम इज़ रिंगाला, आई एम फाइन थैंक यू, आई एम 79 ईयर्स ओल्ड.... 

इन 20 बुजुर्गों को अंग्रेजी की वर्णमाला के साथ 1 से लेकर 1000 तक गिनती, रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्द सिखाए जा रहे हैं. इन्होंने अपना नाम लिखना भी पहली बार सीखा. 

बुजुर्गों को शिक्षित करने की इस मुहिम को शुरू करने के पीछे नॉन प्राफिट ट्रस्ट ‘जेमसन हाओरेई’ है.  इस ट्रस्ट से जुड़े 28 साल के सोरीनाथन हाओरेई बुजुर्गों को साक्षर बनाने में जुटे हैं. इन बुजुर्गों में सोरीनाथन की दादी शोकानाओला हुंग्यो भी शामिल हैं. चाट्रिक खुल्लेन गांव भारत-म्यांमार बॉर्डर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां करीब 100 घरों में 600 लोग रहते हैं.  

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सोरीनाथन ने आजतक को फोन पर बताया, “मैं जब दिल्ली से लौटा तो देखा कि गांव में बहुत सारे बुजुर्ग अकेले रहते हैं. उनके बच्चे शादी के बाद कहीं और सैटल हो गए हैं. अकेलापन ऐसे बुजुर्गों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है. ऐसे में मैंने उनके लिए दोस्ताना और आनंद देने वाला माहौल तैयार करने की कोशिश की जिससे साथ ही उन्हें जेहनी तौर पर भी संतोष मिल सके.”  

सोरीनाथन के मुताबिक इन 20 बुर्जुगों में से सिर्फ एक ही ने कक्षा 4 तक पढ़ाई की है. इनमें से अधिकतर ने कभी स्कूल का मुंह ही नहीं देखा. सोरीनाथन ने बताया, “मेरे पिता जेमसन हाओरेई सामाजिक कार्यकर्ता थे. उनकी सोच को आगे बढ़ाने के लिए ही ये नॉन प्रॉफिट ट्रस्ट बनाया गया और अब गांव के बुजुर्गों को बुनियादी शिक्षा देने की कोशिश की जा रही है. मैंने अपने गांव से ही ये शुरुआत की है.” 

बुजुर्गों के लिए क्लास सुबह 6 बजे से ही शुरू हो जाती है. सोरीनाथन कहते हैं कि ये क्लास सिर्फ बुनियादी शिक्षा से ही संबंधित नहीं होती, इससे बुजुर्गों को अकेलेपन से निजात दिलाकर खुशी देने की भी कोशिश की जाती है. कोई नया शब्द सीख कर या लिख कर उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती है. सोरीनाथन ने गांव के बच्चों के लिए भी इस साल फरवरी में एक स्कूल शुरू किया.  चाट्रिक खुल्लेन गांव कोविड-19 मुक्त गांव हैं. पिछले साल भी इस गांव से कोई कोरोना केस सामने नहीं आया था. 

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