रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत के कार्यकाल को एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है. सरकार के एक आधिकारिक आदेश के अनुसार, अब वे 31 मई 2026 तक डीआरडीओ के प्रमुख पद पर बने रहेंगे. यह फैसला केंद्र सरकार की नियुक्ति समिति (Appointments Committee of the Cabinet) ने सोमवार को लिया.
यह डॉ. कामत को मिला दूसरा कार्यकाल विस्तार है. उन्हें पहले भी मई 2024 में एक वर्ष का विस्तार दिया गया था, जो 31 मई 2025 तक के लिए था. अब यह नया विस्तार 1 जून 2025 से शुरू होकर अगले वर्ष 31 मई तक प्रभावी रहेगा या जब तक कोई नया आदेश न आ जाए, जो भी पहले हो.
दरअसल, डॉ. समीर वी. कामत को डीआरडीओ में सुधार लाने वाले प्रमुख अधिकारी के रूप में जाना जाता है. वे संगठन को अधिक परिणामोन्मुखी (result-oriented) बनाने और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्राथमिकता देने वाली सरकार की रणनीति के मुख्य कार्यान्वयनकर्ता हैं.
डॉ. कामत ने 1985 में आईआईटी खड़गपुर से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक (ऑनर्स) किया और 1988 में अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी से मैटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने 1989 में डीआरडीओ में वैज्ञानिक के रूप में कार्यभार संभाला.
सामरिक सामग्री विकास में अहम योगदान
डॉ. कामत ने डीआरडीओ में कई महत्वपूर्ण रक्षा सामग्री कार्यक्रमों का नेतृत्व किया. इनमें उच्च शक्ति वाले इस्पात, टाइटेनियम और निकल मिश्र धातुएं, टंगस्टन आधारित पेनिट्रेटर, फ्यूज्ड सिलिका रैडोम, सैनिकों के लिए कवच और स्टील्थ मटेरियल्स शामिल हैं. ये सभी सामग्रियां डीआरडीओ की आधुनिक रक्षा प्रणालियों में प्रयोग की जा रही हैं.
नौसैनिक तकनीकों के विकास में अग्रणी
उन्होंने नौसेना के लिए भी कई अत्याधुनिक प्रणालियों का विकास करवाया है. इनमें हल्के टॉरपीडो, एंटी-टॉरपीडो डिकोय सिस्टम, स्वचालित अंडरवॉटर वाहन, सोनार सिस्टम और पनडुब्बियों के लिए फ्यूल सेल आधारित एयर-इंडिपेंडेंट प्रपल्शन (AIP) तकनीक शामिल है.
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. कामत भारतीय राष्ट्रीय अभियांत्रिकी अकादमी (INAE) और इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया (IEI) के फेलो हैं. उन्हें आईआईटी-खड़गपुर द्वारा डिस्टिंग्विश्ड एलुमनाई अवार्ड, इस्पात मंत्रालय से मेटलर्जिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड और डीआरडीओ से साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड भी मिल चुका है.
डॉ. कामत ने अब तक 180 से अधिक शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित किए हैं. उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी नेतृत्व, डीआरडीओ को स्वदेशी रक्षा विकास की दिशा में नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है.