पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुईं ममता बनर्जी की नजर अब दिल्ली के सिंहासन पर है. ममता बनर्जी बंगाल के अपने दुर्ग को दुरुस्त करने के बाद अपनी पार्टी टीएमसी का बंगाल से बाहर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने में जुटी हैं ताकि 2024 में मजबूती के साथ अपनी दावेदारी पेश कर सकें. इस मिशन के तहत ममता इन दिनों अलग-अलग राज्यों में रैलियां करके मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर रही हैं.
वरिष्ठ पत्रकार जयंत घोषाल अपनी नई किताब 'ममता बियॉन्ड 2021' (हार्पर कॉलिन्स इंडिया) में लिखते हैं कि कोलकाता से दिल्ली की दूरी 1,564 किलोमीटर से भी ज्यादा है. ऐसे में दिल्ली का सफर तय करने के लिए गैर बीजेपी दलों के साथ बड़ी सावधानी के साथ बातचीत और फिर गठबंधन की दिशा में ममता ने कदम बढ़ा दिए हैं. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर टीएमसी के साथ हैं. अब वो इसी मुहिम में जुटे हैं कि 2024 में पीएम मोदी के विकल्प के रूप में ममता बनर्जी को विपक्ष के चेहरे के तौर पर कैसे पेश कर सकें.
2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए ममता बनर्जी को कठिन लड़ाई लड़नी होगी. मंजिल तक पहुंचने के उनके रास्ते में कई रोड़े हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर अपना सफर तय करना होगा. दो साल बाद उन्हें विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए पहले क्षेत्रीय दलों का विश्वास जीतना होगा. इसके बाद ही आगे की लड़ाई होगी. एक के बाद एक जीत हासिल कर रही, मोदी लहर पर सवार बीजेपी को मात देना आसान नहीं रहने वाला.
2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल को गढ़ बनाने को बेताब बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए राज्य में 18 संसदीय सीटें जीती थीं. 2014 में उसे महज दो सीटें मिली थीं. ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री और बंगाल की तीन बार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी पार्टी को अब पहले से कहीं अधिक मजबूती से बंगाल के रण में उतारना होगा. 2024 के रोडमैप के लिए अपने घर को मजबूत रखना ही होगा.
जयंत घोषाल अपनी नई किताब में बनर्जी के 2024 के टारगेट का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं कि ममता बनर्जी की निगाहें अब दिल्ली की सत्ता पर टिकी हैं. ममता तेजतर्रार होने के साथ-साथ अनुभवी भी हैं. वह अपनी ताकत जानती हैं और साथ ही अपनी कमजोरियों से भी वाकिफ हैं. इसीलिए अपने सियासी लक्ष्य को हासिल करने के लिए धीरे-धीरे और बहुत ही सावधानी के साथ कदम बढ़ा रही हैं. वे क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बिठाने में जुटी हैं. 2021 में बंगाल का चुनाव नतीजा इसका सबूत है.
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2014 में प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे. लोकसभा चुनाव के बाद के दिनों और महीनों में मोदी ने जो सही किया, उसे रेखांकित करते हुए जयंत घोषाल लिखते हैं कि नरेंद्र मोदी 2014 के चुनाव के लिए प्रचार करते समय विभिन्न प्रकार की मीडिया की शक्ति का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे. विज्ञापन और पीआर कंपनियों के जरिए उन्होंने अपनी छवि का निर्माण किया. पीएम मोदी ने गुजरात सीएम रहते हुए 2014 में प्रशांत किशोर को साथ लेकर बीजेपी के चुनाव अभियान को सफल बनाया था. उसी तर्ज पर ममता बनर्जी ने 2021 में पश्चिम बंगाल में वैसा ही करिश्मा दोहरा दिया. घोषाल का तर्क है कि बंगाल की जीत ने ममता बनर्जी को देश में एकमात्र ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया, जो नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सकती हैं.
जयंत घोषाल ममता बनर्जी की राजनीति में एक बदलाव की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर को काम पर रखा, जो कॉरपोरेट उत्साह के साथ चुनाव अभियान चलाने के लिए जाने जाते हैं. इससे पहले ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस को 'गरीबों की पार्टी' के रूप में पेश करती रही थीं.
बंगाल चुनाव में प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के सलाहकार बने तो उन्होंने बीजेपी को निशाने पर लेते हुए उसे बाहरी लोगों की पार्टी के रूप में ब्रांड किया. दूसरी ओर ममता की ब्रांडिंग 'बंगाल की बेटी' के रूप में की गई. ममता बनर्जी पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बारे में यही कहतीं 'गुजरात के रहने वाले भाजपा के दो सबसे बड़े नेता'. घोषाल लिखते हैं कि हाथ से बुनी सफेद साड़ी, रबर की सैंडल और साधारण रहन सहन ने ममता बनर्जी की राजनीतिक अपील को और बढ़ा दिया.
घोषाल लिखते हैं कि प्रशांत किशोर की मदद से ममता बनर्जी ने बीजेपी के हमले का मुकाबला करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति बनाई. जिस तरह महात्मा गांधी की उस दौर में बनी छवि उनकी विशेष पोशाक के बिना अधूरी होती, ममता बनर्जी ने भी अपनी ऐसी ही छवि बनाई.
घोषाल कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी बंगाल में व्हाट्सएप के माध्यम से अपने संदेश फैलाने में सफल रही थी. उस समय तक ममता बनर्जी को सोशल मीडिया की पूरी क्षमता का एहसास नहीं था और भाजपा की इस रणनीति को वो ठीक से समझ नहीं पाईं. वहीं, 2021 में प्रशांत किशोर और उनकी टीम की मदद से टीएमसी ने मीडिया और सोशल मीडिया पर मजबूती से काम किया. इसका फायदा भी चुनाव में उसे मिला.
अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए ममता बनर्जी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में जुटी हैं. टीएमसी ने गोवा विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन ममता बनर्जी के सामने 2024 के अपने सपने को साकार करने के लिए अपनी पार्टी को 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के बहुमत तक ले जाने की चुनौती है.
घोषाल कहते हैं कि ममता बनर्जी अन्य बड़े राज्यों में विस्तार से पहले पश्चिम बंगाल में टीएमसी को और अधिक मजबूत करना चाहती है. ममता का पहला लक्ष्य दूसरे राज्यों से पहले बंगाल की 18 सीटों पर वापस कब्जे का है. जयंत घोषाल कहते हैं कि टीएमसी का फोकस किसी धूम-धड़ाके और अव्यावहारिक विस्तार योजना की बजाय धीरे-धीरे रणनीति के तहत ममता बनर्जी की नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में स्वीकार्यता बढ़ाने पर है.
ममता बनर्जी के लिए आगे का रास्ता राज्यों और केंद्र में भाजपा की विफलताओं को उठाने से निकलेगा. घोषाल कहते हैं कि कोरोना महामारी के दो साल, अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दे ममता बनर्जी के लिए एक मौका हैं जिनसे वे एक चुनौती के रूप में खड़ी हो चाहती हैं. यहां तक कि देश के कई क्षत्रप नेता बंगाल चुनाव के बाद उन पर अपना विश्वास जताने लगे हैं. लेकिन क्या 2024 में ममता बनर्जी के केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए इतना काफी है?
222 पेज की किताब में जयंत लिखते हैं कि कई भाजपा और आरएसएस नेता भी अब मानते हैं कि 2024 में ममता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. जैसा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने 2021 में किया था. यह करना बड़ी भूल होगी. ममता बनर्जी को भी खुद को व्यापक रूप से स्वीकार्य नेता बनाने के लिए कई और कदम उठाने होंगे, जो नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में उन्हें खड़ा कर सकें.