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टूटने लगा AI का जादू...सर्च गिरे, शेयर लड़खड़ाए, क्या संकट में है 12 ट्रिलियन डॉलर का बूम?

बैंक ऑफ इंग्लैंड की रिपोर्ट में AI कंपनियों की अत्यधिक बढ़ी हुई वैल्यूएशन और कर्ज के खतरे पर चेतावनी दी गई है. MIT के सर्वे के अनुसार 95% AI पायलट प्रोजेक्ट्स ने कोई रिटर्न नहीं दिया. बड़ी टेक कंपनियां जैसे Meta अब महंगी चिप्स की जगह सस्ती विकल्पों की ओर बढ़ रही हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि AI बबल पहले ही बन चुका है और अब इसका फटना समय की बात है, जिससे निवेशकों के लिए अनिश्चितता बढ़ गई है.

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फूटने लगा AI का बुलबुला (Credit: Freepik)
फूटने लगा AI का बुलबुला (Credit: Freepik)

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को लेकर पिछले दो सालों में जिस तरह का जुनून दिखा, वो अब सुस्त पड़ता दिखाई दे रहा है. 'AI निवेश' के लिए गूगल सर्च 50% से ज्यादा गिर चुके हैं. Nvidia जैसी टेक दिग्गज कंपनियों के शेयर लड़खड़ा रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या 12 ट्रिलियन डॉलर की ये AI बूम वाकई मजबूत जमीन पर खड़ी है?

'बबल' जैसा पैटर्न
गूगल ट्रेंड्स के डेटा से साफ दिखता है कि 'AI स्टॉक्स' में दिलचस्पी अचानक चरम पर पहुंची और फिर कुछ ही दिनों में आधी रह गई. ये वही ग्राफ है जो अक्सर सट्टेबाजी वाले बुलबुलों जैसे अचानक धीमी चढ़ना, फिर तेज उछाल, और फिर अचानक काफी तेज गिरावट में दिखता है. 

सर्च में आई इस गिरावट के साथ ही शेयरों में भी कमजोरी शुरू हो गई. Nvidia जो $4.4 ट्रिलियन के मार्केट कैप के साथ AI बूम का चेहरा बनी. वो अक्टूबर के $207 के हाई से गिरकर दिसंबर की शुरुआत में $181 के आसपास यानी 12% की गिरावट आ गई.

फिलाडेल्फिया सेमीकंडक्टर इंडेक्स भी नवंबर के पहले तीन हफ्तों में 13% गिरा. बिटकॉइन तक 30% तक फिसल गया जो आम तौर पर निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता का संकेत माना जाता है.

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मार्केट कैप की कहानी

AI आधारित कंपनियों में असाधारण मात्रा में पैसा दौड़ा है. Nvidia, जो कुछ साल पहले तक क्रिप्टो स्लोडाउन से जूझ रही $300 बिलियन की कंपनी थी, दुनिया की सबसे कीमती कंपनी बनने की दहलीज पर आ गई. वहीं Apple ($4.2 ट्रिलियन) और Microsoft ($3.6 ट्रिलियन) उसके करीब हैं.

इन तीन कंपनियों की कुल वैल्यू करीब $12.3 ट्रिलियन है जितनी जापान, जर्मनी और भारत की अर्थव्यवस्थाओं को जोड़कर भी नहीं होती. और इनमें से ज्यादातर वृद्धि सिर्फ दो सालों में हुई है. ऐसी तकनीक पर जिसका असली फायदा अभी भी 'वादा' ज्यादा है, 'हकीकत' कम.

लेकिन अब दरारें दिख रही हैं 

बैंक ऑफ इंग्लैंड की नई रिपोर्ट कहती है कि इस साल S&P 500 में जो भी तेजी दिखी, उसका दो-तिहाई हिस्सा सिर्फ AI कंपनियों की वजह से था. यानी AI स्टॉक्स को हटा दें तो 2025 की रैली लगभग गायब हो जाती है. रिपोर्ट में 'अत्यधिक बढ़ी हुई वैल्यूएशन' और कर्ज में डूबी AI कंपनियों के बॉन्ड पर शुरुआती खतरे के संकेतों की भी बात की गई है.

AI बूम: जमीन पक्की या सिर्फ उम्मीदें?

MIT के एक सर्वे में सामने आया कि AI के 95% पायलट प्रोजेक्ट्स ने कोई रिटर्न नहीं दिया. गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई तक कह चुके हैं कि अगर बुलबुला फूटता है तो 'कोई कंपनी इससे पूरी तरह सुरक्षित नहीं है.' हालांकि dot com दौर की तुलना में फर्क यह है कि आज की AI कंपनियां असली मुनाफा पैदा कर रही हैं. फिर भी बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर एंड्रयू बैली ने साफ कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि सबकी जीत होगी.

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इसी बीच खबर आई कि Meta अब Nvidia की महंगी चिप्स के बजाय गूगल की सस्ती TPU चिप्स लेने पर विचार कर रही है. ये साफ संकेत है कि बड़ी टेक कंपनियां भी बेतहाशा AI खर्च पर अब ब्रेक लगा रही हैं.

डॉट-कॉम बबल जैसी गूंज

1990 के दशक के अंत में इंटरनेट कंपनियां वादों पर चढ़ीं और 2000 में बुरी तरह ध्वस्त हो गईं. आज फर्क सिर्फ पैमाने का है. 2000 में टेक सेक्टर का S&P 500 में हिस्सा 30% था. आज सिर्फ तीन AI कंपनियां मिलकर इंडेक्स का करीब 25% हिस्सा हैं. विशेषज्ञों का सवाल ये नहीं कि AI बबल फटेगा या नहीं, ज्यादातर मानते हैं कि बबल तो पहले ही बन चुका है. अब सवाल ये है कि जब ये बबल फटेगा तो होगा क्या? सर्च ट्रेंड बता रहे हैं कि आम निवेशक पीछे हट रहा है. संस्थागत निवेशक भी ऐसा ही करते हैं या नहीं, अब यही अगला बड़ा सवाल है.

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