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महाराष्ट्र निकाय चुनाव में 'फ्रेंडली फाइट' की आड़ में घमासान? CM फडणवीस के बयान से सियासी हलचल तेज

अकोला में मीडिया से बात करते हुए फडणवीस ने साफ कहा कि हम महायुति के तौर पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन जहां गठबंधन संभव नहीं होगा वहां 'फ्रेंडली फाइट' होगी. हालांकि यह शब्द जितना सौम्य दिखता है, इसके मायने उतने ही सख्त माने जा रहे हैं.

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महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है. इस बार मुद्दा है स्थानीय निकाय चुनाव और उसमें भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस का 'फ्रेंडली फाइट' वाला बयान. अकोला में मीडिया से बात करते हुए फडणवीस ने साफ कहा कि हम महायुति के तौर पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन जहां गठबंधन संभव नहीं होगा वहां 'फ्रेंडली फाइट' होगी. हालांकि यह शब्द जितना सौम्य दिखता है, इसके मायने उतने ही सख्त माने जा रहे हैं.

दरअसल, राजनीतिक भाषा में फ्रेंडली फाइट का मतलब होता है कि दो सहयोगी दल एक ही सीट पर चुनाव लड़ते हैं लेकिन एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले या तीखा प्रचार नहीं करते. पर इसका व्यावहारिक असर सीधा वोट बैंक पर पड़ता है और गठबंधन की एकता सवालों के घेरे में आ जाती है.

क्यों चिंता में शिंदे और अजित पवार?

महाराष्ट्र में अगले चार महीनों में 29 महानगरपालिका, 257 नगरपालिका और 26 जिला परिषदों के चुनाव प्रस्तावित हैं. इनमें मुंबई, ठाणे, नागपुर, पुणे, संभाजीनगर, नासिक जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं.

शिंदे गुट चाहता है कि ठाणे, मुंबई जैसे इलाकों में उसे ज्यादा सीटें मिलें, क्योंकि इन क्षेत्रों में उसका जनाधार मजबूत है. अजित पवार की एनसीपी पश्चिम महाराष्ट्र में, खासकर पुणे में अपनी पकड़ के चलते ज्यादा हिस्सेदारी चाहती है. लेकिन बीजेपी की स्थानीय इकाइयां, खासकर मुंबई, नागपुर, पुणे में गठबंधन से इतर अपने दम पर चुनाव लड़ने का मन बना रही हैं.

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फडणवीस के बयान के सियासी मायने

देवेंद्र फडणवीस का यह कहना कि गठबंधन कहां हो और कहां नहीं, इसका फैसला पार्टी अध्यक्ष, कार्याध्यक्ष और चुनाव समिति करेगी, एक संकेत है कि लोकल लेवल पर बीजेपी को खुली छूट मिल सकती है. यह उन सीटों पर सीधा संदेश है जहां शिंदे गुट या एनसीपी भी मजबूत हैं कि अगर सहमति नहीं बनी तो मुकाबला 'मैत्रीपूर्ण' रूप में सही, पर होगा जरूर.

चुनाव से पहले अंदरूनी खींचतान

बता दें कि बीजेपी राज्य में अपने विस्तार की मंशा से समझौता नहीं करना चाहती. शिंदे और अजित पवार को आशंका है कि फ्रेंडली फाइट के बहाने बीजेपी उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में सेंधमारी कर सकती है. इस बीच राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह फ्रेंडली फाइट चुनावी रणनीति है या आने वाले समय में महायुति के भीतर शक्ति संतुलन की लड़ाई?

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