बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी (OBC) प्रमाणपत्र दिए जाने के खिलाफ दाखिल की गई जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में प्रभावित पक्ष नहीं है और ऐसी याचिकाएं सिर्फ मुकदमों की संख्या बढ़ाने का काम करती हैं.
मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम ए. अंखड की खंडपीठ ने कहा कि यह याचिका भ्रमित है. अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून में दुर्भावना (Malice in law) का मुद्दा केवल वही व्यक्ति उठा सकता है जो सीधे प्रभावित हुआ हो, जबकि इस मामले में याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति से हैं और सरकारी प्रस्ताव (GR) का अनुसूचित जातियों से कोई संबंध नहीं है.
महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल डॉ. बीरेन्द्र साराफ ने अदालत को बताया कि इस विषय पर अब तक सात याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं. 29 अगस्त से मुंबई में मराठा आंदोलन के चलते राज्य सरकार ने 2 सितंबर को हड़बड़ी में जीआर जारी किया था, जिसके बाद जारंगे पाटिल और आंदोलनकारियों ने धरना खत्म किया.
साराफ ने बताया कि यह जीआर केवल उन मराठा व्यक्तियों पर लागू होता है, जो दावा करते हैं कि उनकी उत्पत्ति कुनबी समुदाय से हुई है. ऐसे मामलों में जांच की प्रक्रिया तय की गई है.
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उनकी लड़ाई जाति से संबंधित नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर जीआर जारी किया गया है. हालांकि पीठ ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया और कहा कि जब पहले से ही कई प्रभावित व्यक्ति इस विषय पर उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल कर चुके हैं, तो जनहित याचिका के नाम पर और मामले दाखिल करना अदालतों का बोझ बढ़ाना है.
पीठ ने कहा कि PIL का उद्देश्य उन वर्गों की आवाज अदालत तक पहुंचाना है, जिनकी बात समाज में दब जाती है. केवल व्यक्तिगत विचार या बहस करने योग्य मुद्दा उठाकर PIL दायर करना उचित नहीं है. अदालत ने टिप्पणी की, “जनहित याचिकाओं के नाम पर एक ही विषय पर बार-बार मामले दाखिल करना सार्वजनिक हित में नहीं है. ऐसी मुकदमेबाजी अदालतों के लिए बोझ है. इसलिए यह PIL खारिज की जाती है. हां, याचिकाकर्ता चाहे तो लंबित रिट याचिकाओं में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सकते हैं.”
अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि वह इस समय सरकार के 2 सितंबर को जारी प्रस्ताव (GR) की मेरिट्स पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी.