scorecardresearch
 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर दायर जनहित याचिका खारिज की, कहा- ऐसे मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश न करें

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण से जुड़ी जनहित याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि जहां सीधे प्रभावित लोग खुद अदालत आ सकते हैं, वहां जनहित याचिकाएं स्वीकार नहीं होंगी. कोर्ट ने माना कि जनहित के नाम पर कई लोगों द्वारा याचिकाएं दायर करना असली जनहित नहीं है. अदालत ने स्पष्ट किया कि हस्तक्षेप केवल गुण-दोष और आपत्तियों के आधार पर ही किया जाएगा.

Advertisement
X
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग रोकना जरूरी है (Photo: Representational)
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग रोकना जरूरी है (Photo: Representational)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण से जुड़ी एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि वह याचिका के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी और केवल जनहित याचिका के आधार पर ही इसे खारिज किया जाता है.

हाईकोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में सीधे प्रभावित व्यक्ति खुद अदालत आ सकते हैं, वहां जनहित याचिकाओं को हतोत्साहित करना जरूरी है. अदालत ने कहा कि जनहित के नाम पर अलग-अलग लोगों द्वारा कई आवेदन दायर करना सही नहीं है, इसलिए ऐसे मामलों में याचिकाओं की बहुलता को रोकना ही असली जनहित है.

कोर्ट ने कहा कि यह व्यापक रूप से माना जाता है कि जनहित याचिका की शुरुआत इस सोच से हुई थी कि समाज के किसी भी वर्ग की आवाज़ दबनी नहीं चाहिए और उनके मुद्दे अदालत तक पहुंचने चाहिए. किसी व्यक्ति की मनचाही सोच या केवल तर्कपूर्ण मुद्दों को सामने रखना, जनहित याचिका का आधार नहीं हो सकता.

हाईकोर्ट ने कहा कि हम इस जनहित याचिका पर विचार करने के पक्ष में नहीं हैं और इसे हस्तक्षेप की स्वतंत्रता के साथ खारिज किया जाता है. किसी भी हस्तक्षेप का निर्णय उसके गुण-दोष और उठाई गई आपत्तियों के आधार पर किया जाएगा.उच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं लिखना चाहिए.

Advertisement

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम की पीठ ने कहा कि वास्तविक प्रभावित पक्ष यानी ओबीसी समुदाय के लोग पहले ही हाईकोर्ट में याचिकाएँ दाखिल कर चुके हैं, इन याचिकाओं पर 22 सितंबर को सुनवाई होगी.कोर्ट ने कहा कि इस चरण पर यह जनहित याचिका पूरी तरह गलत है. प्रभावित पक्षों को चुनौती देने का अधिकार है, न कि किसी अन्य व्यक्ति को.

याचिकाकर्ता अधिवक्ता विनीत विनोद धोत्रे ने दलील दी कि वे अनुसूचित जाति वर्ग से हैं, इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य है, लेकिन एडवोकेट जनरल बिरेन्द्र सराफ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सरकार का निर्णय एससी समुदाय से जुड़ा हुआ नहीं है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement