बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने मंगलवार को चोरी और आपराधिक धमकी के आरोपी एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि हर मामले में आपराधिक इतिहास को एक तयशुदा मानक (straight jacket formula) की तरह लागू नहीं किया जा सकता. अदालत ने मामले को निजी स्वामित्व विवाद वाला बताते हुए इसे सिविल प्रकृति का मामला माना, जिसमें सिविल परिणाम निहित हैं.
न्यायमूर्ति अद्वैत एम. सेठना की एकल पीठ निलेश हराल नामक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ महाराष्ट्र के धुले (शहर) पुलिस स्टेशन में चोरी, जबरन घुसपैठ और अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी.
दरअसल, 30 मार्च 2025 को दर्ज एफआईआर में एक दुकानदार ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने जिनमें निलेश हराल भी शामिल है, उसकी दुकान का ताला तोड़कर सामान उठा लिया और दुकान पर कब्जा कर लिया. हराल ने कथित तौर पर दावा किया कि दुकान उसकी है और उसके खिलाफ पहले से कई केस हैं, इसलिए वह शिकायतकर्ता को कुछ भी करने की छूट देता है, लेकिन दुकान खाली नहीं करेगा.
गौरतलब है कि इस दुकान को लेकर हराल और शिकायतकर्ता के बीच दो सिविल मुकदमे पहले से लंबित हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल कार्यवाही में आरोपी दुकान पर काबिज है और वादी (शिकायतकर्ता की पत्नी) को अदालत से कोई स्थगन आदेश (stay) नहीं मिला है. अभियोजन पक्ष ने भी इन तथ्यों से इनकार नहीं किया, लेकिन आरोपी के आपराधिक इतिहास का हवाला दिया.
न्यायमूर्ति सेठना ने कहा, "अदालत को हर मामले में आपराधिक पृष्ठभूमि को एक जैसे तरीके से लागू नहीं करना चाहिए. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या प्राथमिक दृष्टि से मामला बनता है और उस केस की परिस्थितियां क्या हैं. जहां एक ओर दुकान पर कब्जा विवादित है और सिविल मुकदमे लंबित हैं, वहीं एफआईआर में दर्ज आरोपों के घटक इस स्तर पर स्पष्ट नहीं हो रहे हैं."
न्यायालय ने यह भी ध्यान दिया कि आरोपी के खिलाफ दो अन्य मामले दर्ज हैं, जिनमें से एक में वह बरी हो चुका है और दूसरे में उसे पहले ही अग्रिम जमानत मिल चुकी है. इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने निलेश हराल को अग्रिम जमानत दे दी. अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मामले को समग्र दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है.