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2024 से पहले महाराष्ट्र की सत्ता पर कब्जा बीजेपी के लिए क्यों जरूरी था? समझें समीकरण

बीजेपी ने ढाई साल के बाद महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी की है. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं तो बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बने हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो गई है, जिसका सियासी फायदा भी उसे मिल सकता है. यह महा विकास अघाड़ी के लिए राजनीतिक तौर पर बड़ा झटका है.

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एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस
एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा संसदीय सीटें
  • मोदी के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को मिलेगी अब रफ्तार

महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर ढाई साल के बाद सरकार बना ली है तो ढाई साल पहले बनी महा विकास अघाड़ी सरकार का अंत हो गया है. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं तो बीजेपी नेता देंवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बने हैं. बीजेपी-शिंदे खेमा ने बहुमत की परीक्षा पास करने से लेकर विधानसभा स्पीकर तक अपना बना लिया है.   

2024 से पहले बीजेपी के लिए महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी करना एक बड़ी सियासी मजबूरी बन गई थी. माना जाता है कि इसी चलते बीजेपी ने हर हाल में उद्धव सरकार का तख्ता पलट कर अपनी वापसी की इबारत लिखी. इसके पीछे महाराष्ट्र के सियासी समीकरण से लेकर मिशन 2024 से पहले विपक्षी दल कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना के सियासी प्रयोग को ध्वस्त करने की रणनीति रही. ऐसे में ठाकरे परिवार के सबसे करीबी रहे शिंदे को साधकर ऐसी सियासी बिसात बिछाई गई, जिसके आगे मराठा क्षत्रप शरद पवार और उद्धव ठाकरे की एक नहीं चल सकी. 

महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें

उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाला राज्य महाराष्ट्र है. महाराष्ट्र में कुल 48 संसदीय सीटें है, जिसके चलते सियासी तौर पर काफी अहम है. 2019 में बीजेपी ने 23, शिवसेना ने 18, एनसीपी ने 4, कांग्रेस ने एक, AIMIM ने एक और निर्दलीय सांसद जीतने में कामयाब रहा. बीजेपी और शिवसेना एक-दूसरे के विरोधी बन चुके हैं. ऐसे में 2024 के चुनाव में बीजेपी महाराष्ट्र की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाना चाहती है, लेकिन उद्धव ठाकरे के अगुवाई वाले महा विकास अघाड़ी के सत्ता में रहते हुए ये संभव नहीं था. ऐसे में बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी करना एक सियासी मजबूरी बन गया था. 

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विपक्षी गठबंधन की प्रयोगशाला

साल 2019 के चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था, लेकिन सीएम की कुर्सी को लेकर पेच फंस गया था. ऐसे में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने हाथ मिला लिया था जबकि एक दूसरे के वैचारिक विरोधी थे. यह बीजेपी को रोकने के लिए महाराष्ट्र में विपक्ष का एक सियासी प्रयोग था. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तीनों दल मिलकर महाराष्ट्र में लड़ने की तैयार कर रहे थे. इसी स्थिति में बीजेपी के लिए काफी बड़ी सियासी चुनौतियों का सामना करना पड़ता.

यही वजह रही कि बीजेपी 2024 से पहले कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना गठबंधन के प्रयोग के जवाब में एक विकल्प देना था. ऐसे में उद्धव के सबसे मजबूत सिपहसलार शिंदे को साधकर महा विकास अघाड़ी का प्रयोग को ध्वस्त कर दिया.

सियासी प्रयोगों को बीजेपी ने किया ध्वस्त

बता दें कि 2014 के बाद जितने भी विपक्षी दलों के सियासी प्रयोग पीएम मोदी के खिलाफ किए गए, बीजेपी ने उन सभी को सफल नहीं होने दिया. 2015 में सबसे पहले बिहार में बीजेपी और मोदी के खिलाफ नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस एक साथ आकर महागठबंधन बनाया था, जिसे चुनाव में सफलता मिली और सरकार भी बनाई, लेकिन 2017 में बीजेपी ने नीतीश कुमार को साथ मिलकर महागठबंधन के फॉर्मूले को फेल कर दिया.

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इसके बाद दूसरा प्रयोग 2018 में कर्नाटक में हुआ. कर्नाटक चुनाव के बाद बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन बीजेपी ने आपरेशन लोट्स के जरिए 2019 में विपक्षी एकता को तोड़ दिया. वहीं, महाराष्ट्र में बीजेपी ने उसी फार्मूले को दोहारा और महा विकास अघाड़ी के भविष्य की रणनीति को फेल कर दिया. इस तरह बीजेपी ने अपने खिलाफ खड़े होने वाले किसी भी सियासी प्रयोग को राजनीतिक मॉडल के तौर पर खड़े होने नहीं दिया. 

मोदी का ड्रीम प्रोजक्ट बुलेट ट्रेन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन में महाराष्ट्र की उद्धव सरकार से सहयोग नहीं मिल रहा था. मोदी सरकार ने बुलेट ट्रेन की घोषणा 2015 में की थी और  2017 में शिलान्यास किया गया. उस वक्त उम्मीद जताई गई थी कि अगस्त 2022 में देश की पहली बुलेट ट्रेन चलेगी, लेकिन अब यह डेडलाइन बढ़ गई है. ठाकरे सरकार लगातार इस प्रोजेक्ट में रोड़े अटका रही थी, जिसके चलते बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी करना एक मजबूरी बन गया था.

बीजेपी ने शिंदे के अगुवाई में सरकार बनाई है, जिसके बाद बुलेट ट्रेन की काम को रफ्तार मिलेगी. शिंदे-फडणवीस ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पिछली सरकार के आरे में मेट्रो 3 कार शेड के निर्माण पर रोक लगाने और इसे 102 एकड़ के कांजुरमार्ग प्लॉट में स्थानांतरित करने के फैसले को भी पलट दिया. इस वजह से बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए उम्मीदें बढ़ गई हैं. 
 
हिंदुत्व पर बीजेपी का एकाधिकार

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देश में बीजेपी के अलावा शिवसेना ही इकलौती पार्टी है, जो खुद को 'हिंदुत्व पार्टी' कहने में कभी संकोच नहीं किया. दोनों ही दल खुलकर हिंदुत्व की राजनीति करती हैं. इसी के चलते बीजेपी और शिवसेना लंबे समय तक साथ रहे, लेकिन 2019 में सीएम पद को लेकर दोस्ती टूट गई. शिवसेना ने अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिला लिया. इसके बाद से शिवसेना अब यह जताने की कोशिश कर रही है कि उसकी पूर्व सहयोगी बीजेपी का हिंदुत्व से कोई नाता नहीं. बीजेपी भी कहती रही उसका हिंदुत्व अलग है और शिवसेना के हिंदुत्व को 'मौकापरस्त' बताती है, क्योंकि उसने कांग्रेस जैसी पार्टी के साथ गठबंधन किया. 

एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत करने के बाद उद्धव पर यही आरोप लगाया था कि हिंदुत्व के एजेंडे और बाल ठाकरे के रास्ते से हट गए हैं. उद्धव को कहना पड़ा कि हिंदुत्व से शिवसेना ने कभी समझौता नहीं किया. वहीं, बीजेपी ने उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल ही नहीं किया बल्कि शिवसेना के दो तिहाई विधायकों को भी उद्धव के खिलाफ खड़ा कर दिया है. इस तरह शिवसेना को दो गुटों में बंट गई हैं, जिसमें से शिंदे का गुट बीजेपी के साथ हैं. इस तरह बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति में अपना एकाधिकार जमा दिया है. 

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देश की आर्थिक राजधानी मुंबई

देश में सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र मुंबई है, जिसके चलते सभी सियासी पार्टियां महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए बेताब रहती है. महाराष्ट्र ही एक बड़ा राज्य है, जिसका राजनीतिक लिहाज के साथ-साथ आर्थिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है. महा विकास अघाड़ी के सत्ता में रहते हुए बीजेपी ने फाइनैंशियल पावरहाउस कहे जाने वाले महाराष्ट्र से एक्जीक्यूटिव कंट्रोल खो दिया था. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से महाराष्ट्र की सत्ता में बीजेपी को जल्द से जल्द वापसी करना महत्वपूर्ण बन गया था. बीजेपी ने शिंदे के जरिए उद्धव का तख्तापलट कर महा विकास अघाड़ी के हाथों से फाइनैंशियल राज्य की सत्ता छीनकर बड़ा सियासी झटका दिया है, जिसे विपक्षी दलों को उभरना मुश्किल होगा. 

 

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