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मजदूर आंदोलन के प्रतीक बाबा आढाव नहीं रहे, 95 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

पुणे के वरिष्ठ समाजसेवी और मजदूर आंदोलन के सबसे प्रभावी चेहरों में शामिल बाबा आढाव का 95 साल की उम्र में निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे.

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माथाड़ी कानून के प्रमुख सूत्रधार बाबा आढाव का निधन (Photo: ITG/ shibimol)
माथाड़ी कानून के प्रमुख सूत्रधार बाबा आढाव का निधन (Photo: ITG/ shibimol)

महाराष्ट्र के पुणे के जाने-माने समाजसेवी और मजदूर आंदोलन की सबसे मजबूत आवाज़ रहे डॉ. बाबा आढाव का बुधवार रात 95 साल की उम्र में निधन हो गया. पिछले लगभग बारह दिनों से उनकी तबीयत नाजुक थी और उन्हें पुना हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था. डॉक्टरों के लगातार इलाज के बावजूद उनकी हालत सुधर नहीं सकी और रात 8:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे असीम और अंबर आढाव शामिल हैं.

अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान कई सामाजिक कार्यकर्त्ता, नेता और नागरिक उनसे मिलने पहुंचे थे. वरिष्ठ नेता शरद पवार ने भी अस्पताल जाकर उनकी स्थिति की जानकारी ली थी. रिक्षा पंचायत के पदाधिकारी और उनके लंबे समय के साथी नितिन पवार ने बताया कि शुरू में थोड़ी सुधार की उम्मीद बनी थी, लेकिन बाद में किडनी फेल हो गई और अंत में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. 

उनका पार्थिव शरीर गुरुवार सुबह पुणे मार्केट यार्ड के हमाल भवन में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा. शाम को वैकुंठ स्मशानभूमि में बिना किसी धार्मिक विधि के अंतिम संस्कार किया जाएगा - यही उनकी इच्छा थी.

बाबा आढाव का जन्म 1 जून 1930 को पुणे में हुआ था. पढ़ाई के बाद उन्होंने आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में काम शुरू किया, लेकिन शहर के बाजारों में मजदूरों की कठिन ज़िंदगी देखकर उन्होंने डॉक्टर की प्रैक्टिस छोड़ दी. 1955 में उन्होंने हमाल पंचायत की स्थापना की, जिसने मजदूरों के वेतन, हक़, सुरक्षा और सम्मान को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया. इसी संघर्ष का नतीजा था कि 1969 में महाराष्ट्र माथाड़ी, हमाल और श्रमजीवी कामगार अधिनियम लागू हुआ जो असंगठित मजदूरों के लिए भारत का पहला बड़ा कानून माना जाता है.

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बाबा आढाव के निधन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दुख जताया है. 

यह भी पढ़ें: 'अगर आदेश को चुनौती नहीं दी है तो कमेंट न करें', पुणे कोर्ट ने राहुल गांधी को दिया निर्देश

उन्होंने सिर्फ मजदूर आंदोलन ही नहीं, कई सामाजिक अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ‘एक गांव–एक पानी का स्रोत’ आंदोलन, कष्ट की रोटी योजना, रिक्षा पंचायत, मोलकरीण संगठन और कई अन्य पहलें उनकी सोच और नेतृत्व का हिस्सा रहीं. अपने आंदोलन और संघर्ष के कारण उन्हें 53 बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी पीछे कदम नहीं रखा.

बाबा आढाव सिर्फ एक समाजसेवक नहीं थे, बल्कि वह उन दुर्लभ लोगों में थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मजदूरों, गरीबों और कमजोरों के हक के लिए समर्पित कर दी. उनका जीवन, सोच और संघर्ष आज भी समाज को दिशा देने वाला बड़ा प्रेरणास्त्रोत हैं.

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