क्या आपको नत्था याद है? फिल्म पीपली लाइव के पीपली गांव का नत्था जिसके खुदकुशी की तारीख की खबर तमाशा बन जाती है. एक किसान ने खुदकुशी की ठानी तो सिस्टम हिल गया. 2010 में आमिर खान ने जिस गांव से प्रेरणा लेकर फिल्म पीपली लाइव बनाई और जिस किरदार से नत्था का किरदार प्रभावित हुआ आजतक की टीम उसी गांव में पहुंची.
चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 200 किलोमीटर दूर बैतूल जिले के पास एक छोटा सा गांव है सेसरा, जहां रहते हैं पीपली लाइव के नत्था उर्फ कुंजी लाल मालवीय. साल 2003 में कुंजी लाल मालवीय ने अपने मरने की भविष्यवाणी की थी और सेहरा गांव में अपने घर के ठीक सामने छोटे से मंदिर में जाकर बैठ गए थे. इलाके में पहली बार किसी इंसान के मरने की भविष्यवाणी की खबर जंगल में आग की तरह फैली और मीडिया प्रशासन सहित सरकार का डेरा इस गांव में मेला लेकर बैठ गया.
कुंजी लाल मालवीय अब 90 साल के हो चुके हैं. उम्र शरीर पर हावी हो चुकी है इसलिए शरीर ज्यादा चल फिर नहीं पाता. कुछ याद आता है तो किस्से बयां करते हैं कि कैसे उन्होंने अपने मरने की भविष्यवाणी कर दी. कुंजीलाल बताते हैं कि उनके पुरखे उनके पिता और उन्हें कुंडली पढ़ने आती है और 75 साल की उम्र में उन्होंने अपने मरने का अंदेशा हुआ लेकिन बात एक पत्रकार के जरिए लीक हो गई और हंगामा हो गया.
घटना के 7 साल बाद आमिर खान ने इन्हीं कुंजी लाल मालवीय की कहानी के आधार पर पीपली लाइव बनाई और नत्था का किरदार सजाया. सेहरा गांव के निवासी राम लखन आज भी उस घटना को याद करते हैं और बताते हैं, "उस समय गांव में शहरी चहल-पहल भर गई थी. कुंजी लाल के घर की आस-पास की कच्ची छतों पर लोग चढ़ गए थे."
कुंजी लाल के गांव में अब बहुत कुछ बदल गया है. गांव में पक्की सड़कें बन गई हैं, स्कूल बन गए हैं, आंगनवाड़ी केंद्र भी बन गए हैं और प्राथमिक स्वास्थ्य की भी व्यवस्था हो गई है. इसीलिए कुंजीलाल अपने सुबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खुलकर तारीफ करते हैं. दादा कुंजीलाल मामा शिवराज से बिल्कुल नाराज नहीं हैं. वे कहते हैं, "पहले के मुकाबले उनके गांव और पूरे बैतूल की तस्वीर अब बदल गई है. शिवराज ने 15 साल राज किया लेकिन अच्छा काम किया."
लेकिन असली जिंदगी के नत्था के इस गांव में उनकी उम्र के कई ऐसे लोग भी हैं जो शिवराज सरकार से खासा नाराज हैं. पेड़ के पास लगी बुजुर्गों की पंचायत में बैठे 78 साल के दादा परशुराम कहते हैं, "इस बार भी सब आकर कह रहे हैं बिजली बिल माफ हो जाएगा, कर्जा माफ हो जाएगा सब माफ हो जाएगा, इतना पानी दे देंगे कि घर डूब जाएगा. सालों से ऐसा सुनते हुए आ रहे हैं लेकिन ऐसा हुआ कुछ भी नहीं न कर्जा माफ हुआ ना पानी मिला. पिछली बार भी यही कहा था लेकिन कुछ भी नहीं किया. हर बार आश्वासन देते हैं लेकिन करते कुछ नहीं करते. 15 साल से है वह लेकिन उन्हें कुछ नहीं किया."

गांव के लोगों की शिकायत है कि पिछली बार वोट मांगने जो नेता जी आए वह मतदान होने के बाद दोबारा कभी दिखाई भी नहीं पड़े. इसी गांव के रहने वाले अनुज का कहना है, "नेता जी को वोट पड़ने के अगले दिन बाद से गांव में किसी ने नहीं देखा कभी लौटकर नहीं आए इस गांव में आज तक नहीं दिखाई पड़े. अब तो रोज रोज दिखाई पड़ रहे हैं. अपना काम कराने उनके घर जाओ तो भले वह घर में रहे कहते हैं दिल्ली घूम रहे भोपाल घूम रहे हैं अमेरिका घूम रहे हैं. वोट पड़ने के बाद कभी दिखाई नहीं पड़ते."
इसी गांव के किसान रामकिशोर का कहना है की फसल जो वही बेचने पर लागत भी नहीं निकलती नतीजा परिवार 2 जून की रोटी खुशी से नहीं खा पाता और जिंदगी बस घाटे में चलती है. रामकिशोर कहते हैं कि 3 साल से खेती में जितना लगाया उसकी लागत भी नहीं निकल पा रही है इसलिए बैंक से कर्जा लेते हैं और मजदूरी करके चुकाते हैं.
गांव के युवाओं में भी खासी नाराजगी है और बेरोजगारी उनके सामने सबसे बड़ा मुद्दा है. बीएससी कर रहे दीपक और बीसीए कर रहे संतोष का कहना है कि उन्हें अभी से अपने भविष्य को लेकर चिंता हो रही है. संतोष और दीपक का कहना है कि गांव के मुश्किल से 10% युवाओं को ही रोजगार मिल पाया और ऐसे में पढ़ने लिखने के बाद उनके पास कोई काम होगा या नहीं होगा इस बात की फिक्र है. इन दोनों युवाओं का मानना है कि शिवराज की सरकार ने रोजगार पर ध्यान नहीं दिया और इसलिए इस चुनाव में यह दोनों युवा बदलाव की बात कर रहे हैं.
बेरोजगारी के अलावा सेहरा गांव की सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की कमी है. सेहरा गांव की आखिरी कोने पर महिलाओं की लंबी कतार, सड़क पर रखें प्लास्टिक के डिब्बे और गगरियां और साथ ही ट्यूबवेल की पाइप से बहता पानी शिवराज सरकार के विकास के दावों की पूरी कलई खोल रहा है. जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए वह बच्चे सर पर पानी से भरा हुआ बर्तन ले जाते नजर आते हैं ताकि प्यास बुझे. बदहाली इतनी कि पानी भी रोज मयस्सर नहीं है.
औरतें कहती हैं कि काम धाम छोड़कर इसी ट्यूबवेल के पाइप के पास आपस में लड़ते झगड़ते पानी भरने आती हैं जोकि रोज नसीब नहीं होता. पानी एक दिन आता है तो अगले दिन नहीं ऐसे में जिसके हिस्से जितना मिल जाए वह किस्मत वाला.
आजतक से बातचीत करते हुए लक्ष्मी ने कहा, "यह ट्यूबवेल भी फरवरी-मार्च तक ही चलता है और ठंडी में भी पीने का पानी रोज नहीं मिलता. बच्चों को भी मदद के लिए आना पड़ता है और कई बार लाइन इतनी ज्यादा होती है कि औरतें आपस में ही झगड़ पड़ती हैं. हर बार चुनाव में वादा करके जाते हैं कि पीने का पानी देंगे लेकिन सालों से यहां कुछ नहीं बदला."
ऐसा नहीं है कि बैतूल के एक छोटे से गांव में कुछ नहीं हुआ है. कई बुनियादी सुविधाएं गांव में पहुंच गई हैं, लेकिन पीने का पानी और दो रोटी के लिए रोजगार अब भी सबसे बड़ी समस्या है जिसके लिए यह गांव रोज संघर्ष करता है. यही संघर्ष अब उन्हें चुनावी वायदे में हर बार की तरह पूरा करने का लालच देता है लेकिन सिस्टम की बेरुखी यह गांव वाकिफ है.
“ To get latest update about Madhya Pradesh elections SMS MP to 52424 from your mobile . Standard SMS Charges Applicable ”