मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन अब राजनीतिक शक्ल लेने लगा है. कांग्रेस जहां इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार को घेरकर किसान विरोधी ठहराने में लग गई है, वहीं सरकार कांग्रेस पर गलतबयानी करने का आरोप लगा रही है.
राज्य में कई स्थानों पर बांध व उद्योगों के लिए भूमि का अधिग्रहण चल रहा है. इन कार्रवाइयों के खिलाफ आंदोलन व सत्याग्रहों का दौर जारी है. इसकी बड़ी शुरुआत खंडवा के ओंकारेश्वर व हरदा के इंदिरा सागर बांध प्रभावितों द्वारा किए गए जल सत्याग्रह से हुई. खंडवा व हरदा में किसानों ने एक पखवाड़े तक जल सत्याग्रह किया और आखिर में सरकार को आंदोलनकारियों के पास जाकर उनकी मांगें सुननी पड़ी. इसके बाद कई जगह जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी.
पिछले दिनों डिंडोरी के बिलगांव में बांध निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई हुई तो किसान सड़क पर उतर आए और विरोध दर्ज कराया. इसी तरह छिंदवाड़ा में पेंच परियोजना के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ा और आंदोलनकारियों के साथ उनके समर्थन में आई सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को गिरफ्तार करना पड़ा था. इसी कड़ी में एक बड़ा आंदोलन कटनी जिले में चल पड़ा है, यहां किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ चिता सत्याग्रह चलाया. प्रशासन की कार्रवाई से क्षुब्ध होकर सुनिया बाई ने आत्महत्या कर ली, इतना ही नहीं एक नौजवान ने आत्महत्या की कोशिश की. आंदोलनकारियों पर लाठी बरसाई गई और उन्हें जेल भेज दिया गया.
इस बीच, कटनी के आंदोलन और पुलिस कार्रवाई पर कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सरकार पर किसानों पर दमनात्मक कार्रवाई करने का आरोप लगाया. उन्होंने सरकार को किसान विरोधी करार देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफा तक मांग लिया है.
एक तरफ कांग्रेस राज्य सरकार पर हमला कर रही है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सहयोगी दल जनता दल (युनाइटेड) कटनी आंदोलन का खुलकर समर्थन कर रहा है. जद(यू) के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद यादव मुख्यमंत्री चौहान को कम्पनियों का मुख्य कार्यपालन अधिकारी बता रहे हैं. कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों पर सरकार की ओर से उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सफाई दी है. उनका कहना है कि सरकार किसानों के साथ है, मगर कुछ लोग राजनीतिक लाभ उठाने के लिए जमीन अधिग्रहण को तूल दे रहे हैं.
राज्य में विधानसभा चुनाव में भले ही एक वर्ष का वक्त हो मगर राजनीतिक दलों की पैंतरेबाजी तेज हो गई है. कांग्रेस जमीन अधिग्रहण के मसले पर सरकार को घेरने की पूरी तैयारी में है, वहीं भाजपा इसकी तोड़ खोजने में लग गई है. इसकी वजह यह है कि अगर कांग्रेस अपनी कोशिशों में सफल हो गई तो सरकार की किसान हितैषी होने के दावों पर बट्टा लगना तय है.